Wednesday, December 18, 2024
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छत्तीसगढ़ नगरीय निकाय चुनावों में खर्च सीमा बढ़ी: पार्षद प्रत्याशियों को मिलेगी अधिक वित्तीय स्वतंत्रता, देखिए आदेश…

छत्तीसगढ़ में आगामी नगरीय निकाय चुनावों के लिए सरकार ने पार्षद प्रत्याशियों के चुनाव खर्च की सीमा में बढ़ोतरी कर दी है। नगरीय प्रशासन विभाग द्वारा जारी गजट नोटिफिकेशन के अनुसार, प्रत्याशियों को अब पिछली बार की तुलना में अधिक खर्च करने की अनुमति दी गई है। यह कदम बढ़ती महंगाई और चुनाव प्रचार की बदलती आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है।

राज्य सरकार ने तीन लाख या उससे अधिक जनसंख्या वाले नगर निगमों के लिए खर्च की सीमा 8 लाख रुपये निर्धारित की है, जबकि तीन लाख से कम जनसंख्या वाले नगर निगमों में यह सीमा 5 लाख रुपये होगी। पहले यह सीमा क्रमशः 5 लाख और 3 लाख रुपये थी। इस बदलाव से बड़े नगर निगमों के प्रत्याशियों को अपने प्रचार अभियान के लिए अधिक संसाधनों का इस्तेमाल करने की अनुमति मिलेगी।

इसी तरह, नगर पालिका परिषद के पार्षद प्रत्याशियों के लिए खर्च सीमा 2 लाख रुपये तय की गई है, जबकि नगर पंचायत के प्रत्याशी 75 हज़ार रुपये तक खर्च कर सकेंगे। यह सीमा पहले के मुकाबले अधिक है, जिससे इन क्षेत्रों के प्रत्याशियों को भी राहत मिलेगी।

नगरीय निकाय चुनावों में प्रचार और जनसंपर्क के तरीकों में लगातार बदलाव हो रहे हैं। डिजिटल प्रचार, जनसभाएं, रोड शो और अन्य माध्यमों के बढ़ते महत्व को देखते हुए प्रत्याशियों को अधिक वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता महसूस होती है। इसके अलावा, महंगाई की दर भी बढ़ रही है, जिससे प्रचार सामग्री और अन्य खर्चों का बजट बढ़ता जा रहा है।

यह निर्णय प्रत्याशियों को इन नई आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद करेगा, जिससे वे अपने प्रचार को और व्यापक बना सकेंगे। बढ़ी हुई खर्च सीमा से उन्हें अपने वार्ड के अधिक से अधिक मतदाताओं तक पहुँचने में आसानी होगी।

संभावित लाभ और चुनौतियां
इस नई खर्च सीमा से प्रत्याशियों को आर्थिक रूप से राहत मिलेगी, खासकर उन क्षेत्रों में जहां चुनाव अभियान का खर्च अधिक होता है। बढ़ी हुई सीमा से राजनीतिक दल और निर्दलीय प्रत्याशी अपने वार्ड में प्रभावी ढंग से प्रचार कर सकेंगे।

हालांकि, इसका एक पहलू यह भी है कि चुनाव खर्च की अधिकतम सीमा बढ़ने से पैसे की भूमिका चुनावों में और बढ़ सकती है। इससे आर्थिक रूप से सक्षम प्रत्याशी छोटे और सामान्य प्रत्याशियों पर हावी हो सकते हैं। यह सुनिश्चित करना जरूरी होगा कि चुनाव आयोग द्वारा खर्च पर निगरानी की प्रक्रिया को और कड़ा किया जाए ताकि चुनाव निष्पक्ष और पारदर्शी बने रहें।

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