बिलासपुर। न्यायिक प्रणाली के आधुनिकीकरण और पर्यावरणीय उत्तरदायित्व की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, हाल ही में एक विशेष वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सत्र का आयोजन किया गया। इस सत्र की अध्यक्षता छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा ने की, जिसमें न्यायिक बुनियादी ढांचे के डिजिटल परिवर्तन और ई-वेस्ट प्रबंधन जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा हुई।
ई-वेस्ट प्रबंधन की आवश्यकता और दिशा-निर्देश
तकनीकी प्रगति के साथ न्यायालयों में डिजिटल उपकरणों का उपयोग बढ़ा है, जिससे ई-कचरे (ई-वेस्ट) की समस्या भी सामने आई है। स्वच्छ और पर्यावरण अनुकूल न्यायालय बनाने की दिशा में, यह अनिवार्य हो गया है कि ई-वेस्ट का उचित निपटान और पुनर्चक्रण सुनिश्चित किया जाए।
मुख्य न्यायाधीश ने सभी प्रधान जिला न्यायाधीशों को निर्देश दिए कि वे अपने-अपने जिलों में ई-वेस्ट प्रबंधन के लिए एक स्थायी समिति का गठन करें। यह समिति अनुपयोगी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की पहचान कर उनके निस्तारण के लिए कार्ययोजना तैयार करेगी। साथ ही, न्यायालयों में निष्क्रिय हो चुके उपकरणों को पारदर्शी प्रक्रिया के तहत नीलाम करने का भी प्रस्ताव रखा गया, जिससे बेकार हो चुके संसाधनों का सही उपयोग हो सके।
न्यायालयों में डिजिटलीकरण और स्कैनिंग प्रक्रिया
एक अन्य प्रमुख विषय न्यायिक अभिलेखों के डिजिटलीकरण और स्कैनिंग से संबंधित था। न्यायालयों के आधुनिकीकरण के लिए सभी न्यायिक दस्तावेजों का डिजिटल रूप से संग्रह और सुरक्षित स्टोरेज आवश्यक है। इसके लिए प्रत्येक न्यायालय में स्कैनिंग इकाइयों की स्थापना और डिजिटलीकरण प्रक्रिया में प्रशिक्षित कर्मियों की नियुक्ति अनिवार्य होगी।
डिजिटल न्यायालय प्रणाली को प्रभावी बनाने के लिए उचित हार्डवेयर, तेज़ इंटरनेट कनेक्टिविटी और सुरक्षित डेटा प्रबंधन प्रणाली को लागू करने की आवश्यकता पर बल दिया गया। इसके अलावा, सभी लंबित और पूर्ण हो चुके मामलों के अभिलेखों को ऑनलाइन उपलब्ध कराने की योजना बनाई गई, जिससे जानकारी को सुगमता से एक्सेस किया जा सके।
सफल कार्यान्वयन की रणनीति
इस योजना को प्रभावी रूप से लागू करने के लिए न्यायालयों को अपने दैनिक कार्यों में डिजिटल समाधानों को एकीकृत करना होगा। ई-वेस्ट प्रबंधन की निगरानी के लिए जिला मुख्यालयों में विशेष अधिकारियों की नियुक्ति की जाएगी, जो इस पूरी प्रक्रिया की देखरेख करेंगे।
सभी प्रधान जिला न्यायाधीशों को समय-समय पर इन पहलों की प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत करने के निर्देश दिए गए हैं। इस सामूहिक प्रयास से न्यायिक प्रणाली अधिक संगठित, पर्यावरणीय रूप से स्थायी और तकनीकी रूप से उन्नत बनेगी।
यह पहल न्यायिक बुनियादी ढांचे के आधुनिकीकरण और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक बड़ा कदम है। डिजिटलीकरण और सतत ई-वेस्ट प्रबंधन अपनाकर न्यायालय प्रणाली की दक्षता, पारदर्शिता और दीर्घकालिक स्थिरता को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखा गया है। इससे न केवल न्यायालयों का कामकाज आसान होगा, बल्कि यह एक हरित और स्वच्छ न्यायिक व्यवस्था की ओर भी एक महत्वपूर्ण पहल होगी।