Saturday, June 28, 2025
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भारतमाला प्रोजेक्ट फर्जीवाड़ा: आत्महत्या से झकझोर गया सिस्टम, निलंबित पटवारी सुरेश मिश्रा ने छोड़ा सुसाइड नोट…

बिलासपुर।
भारतमाला प्रोजेक्ट में हुए करोड़ों के भूमि अधिग्रहण घोटाले में आरोपी बनाए गए निलंबित पटवारी सुरेश मिश्रा ने आत्महत्या कर ली। सेवानिवृत्ति से महज तीन दिन पहले उन्होंने फांसी लगाकर जान दे दी। आत्महत्या से पहले लिखे गए सुसाइड नोट में उन्होंने खुद को निर्दोष बताते हुए आरोप लगाया है कि उन्हें बड़े अधिकारियों ने षड्यंत्रपूर्वक फंसाया।

आखिरी शब्दों में बयानी गई बेबसी

सुरेश मिश्रा ने सुसाइड नोट में लिखा —

“मैं इस घोटाले में दोषी नहीं हूं। मुझे जानबूझकर फंसाया गया है। मेरा इस केस से कोई लेना-देना नहीं है।”

उनका यह बयान जांच और प्रशासनिक कार्रवाई को कठघरे में खड़ा कर गया है।

सेवानिवृत्ति से पहले ही जिंदगी खत्म

सुरेश मिश्रा तखतपुर तहसील के भाड़म गांव में पदस्थ थे। वे 29 जून को सेवानिवृत्त होने वाले थे। लेकिन इससे पहले ही उन्होंने जोकी गांव में स्थित अपनी बहन के फार्महाउस में फांसी लगा ली। मृतक अक्सर उस फार्महाउस पर जाया करते थे।
घटना की सूचना पर पहुंची सकरी पुलिस ने शव को बरामद कर पोस्टमार्टम के लिए मर्चुरी भेज दिया है। पुलिस के मुताबिक, दोपहर 1 बजे के करीब उन्होंने यह आत्मघाती कदम उठाया।

भारतमाला प्रोजेक्ट में हुआ था करोड़ों का घोटाला

भारत सरकार की महत्वाकांक्षी भारतमाला परियोजना के तहत बिलासपुर-उरगा राष्ट्रीय राजमार्ग के लिए भूमि अधिग्रहण किया गया था। इसी में ढेका गांव में अधिग्रहित जमीन के मुआवजे को लेकर फर्जी दस्तावेजों के आधार पर सरकार को करोड़ों का नुकसान पहुंचाया गया।

जांच में पाया गया कि—

  • राजस्व रिकॉर्ड में कूटरचना कर कुछ लोगों के नाम दर्ज किए गए।
  • फिर उनके नाम पर नामांतरण और बंटवारे की प्रक्रिया पूरी की गई।
  • इसी आधार पर अधिग्रहण में अनुचित मुआवजा बांटा गया।

इस मामले में तत्कालीन तहसीलदार डीएस उइके और पटवारी सुरेश मिश्रा को आरोपी बनाया गया था।

25 जून को FIR, 27 जून को आत्महत्या

जांच के बाद 25 जून को तोरवा थाने में दोनों अधिकारियों के खिलाफ FIR दर्ज की गई। FIR के बाद से ही सुरेश मिश्रा तनाव में थे, जिसका अंत इस हृदयविदारक घटना के रूप में सामने आया।

प्रशासनिक कार्रवाई बनी सवालों के घेरे में

इस आत्महत्या ने जांच प्रक्रिया और प्रशासनिक निर्णयों पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। यदि सुरेश मिश्रा बेगुनाह थे, जैसा कि उन्होंने लिखा, तो क्या उन्हें बलि का बकरा बनाया गया? क्या जांच निष्पक्ष और पारदर्शी थी?

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

कानूनी जानकारों के अनुसार:

“यदि आत्महत्या का कारण गलत जांच या प्रशासनिक दबाव साबित होता है, तो जांच एजेंसियों की जवाबदेही तय करना जरूरी होगा।”

अब आगे क्या?

इस घटना के बाद पूरे राजस्व महकमे में सन्नाटा पसरा हुआ है।
विभागीय कर्मचारियों और परिजनों में आक्रोश और शोक दोनों है।
सरकार को चाहिए कि मामले की निष्पक्ष और न्यायिक जांच कराए, ताकि दोषियों को सजा मिले और निर्दोषों की जिंदगी यूं ही न खत्म हो।

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