Thursday, December 26, 2024
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सड़क चौड़ीकरण में आदिवासियों की जमीन अधिग्रहण करने के मामले में समाज ने सरकार पर लगाया गंभीर आरोप

बिलासपुर।ताज़ाख़बर36गढ़:- रतनपुर सीमा क्षेत्र के लिम्हा नवापारा में 4 लेन सड़क चौड़ीकरण के नाम पर आदिवासियों की जमीन अधिग्रहित किये जाने का विरोध शुरू हो गया है। ग्रामीणों का कहना है कि चौड़ीकरण के नाम पर सड़क की एक तरफ जमीन ली जा रही है। यह जमीन आदिवासियों की है जिसे टोल नाका बनाने के लिए उनकी और कृषि जमीन का चिन्हांकन किया गया है। इससे ऐसा लगता है कि आदिवासी होने के कारण उन्हें यह सजा दी जा रही है।

मालूम हो कि लिम्हा नवापारा के करीब एक दर्जन से अधिक ग्रामीण कलेक्टर जनदर्शन में पहुंचे जहां उन्होंने कलेक्टर पी दयानंद के नाम ज्ञापन सौंप कर पक्षपात न होने की गुहार लगाई है। जिसमे उन्होंने 4 लेन चौड़ीकरण के लिए ली जा रही जमीन पर आपत्ति जताई है। ग्रामीण लखन सिंह उइके, वेदराम, भागवत प्रसाद ने बताया कि राष्ट्रीय राजमार्ग की 4 लेन सड़क चौड़ीकरण के संबंध में जब उन्हें जानकारी मिली तो उन्होंने 31 मार्च को आपत्ति दर्ज कराई थी। इस आपत्ति का निराकरण किए बिना ही 28 अप्रैल को ग्रामीणों को बिना सूचना दिए सर्वे कर दिया गया। उनका आरोप है कि सड़क चौड़ीकरण के लिए नयापारा आवास बस्ती का गलत तरीके से सर्वे किया गया है। यह सर्वे उनकी बस्ती को उजाड़ने की साजिश है। जबकि गांव में रेल लाइन का भी सर्वे किया गया था, जिसमें पूरी कृषि भूमि आ रही है। उनका कहना है कि दोनों सर्वे में आदिवासियों की ही जमीन आ रही है। उनका परिवार पूरी तरह से कृषि पर ही निर्भर है। उनकी जमीन पर सड़क और रेल लाइन निकल गई तो उनके सामने भूखों मरने की नौबत आ जाएगी ग्रामीणों ने जिला प्रशासन से गुहार लगाई है कि सड़क चौड़ीकरण के लिए ऐसा सर्वे किया जाए, जिससे उनकी निजी भूमि कम से कम प्रभावित हो, ताकि उनकी आजीविका का साधन बना रहे। ग्रामीणों ने बताया कि जिस स्थान पर टोल नाका के लिए सर्वे किया गया है, वहां उनकी निजी भूमि आ रही है। करीब 1 किमी चौड़ा टोल नाका बनाने की योजना है। उन्होंने इस टोल नाके को बनाने के लिए सरकारी जमीन का विकल्प दिया है। उन्होंने बताया कि प्रस्तावित जगह से 1 किमी आगे या फिर पांच किमी पीछे पर्याप्त मात्रा में सरकारी जमीन है। यहां पर टोल नाका बनाया जाता है तो किसी भी आदिवासी किसान की कृषि भूमि प्रभावित नहीं होगी। ग्रामीणों ने जिला प्रशासन को उनकी मांग पर एक माह के अंदर विचार कर पूरी करने की बात कही है। ग्रामीणों का कहना है कि यदि उनकी मांग नहीं मानी गई तो वे आंदोलन के लिए बाध्य होंगे जिसकी पूरी जवाबदारी प्रशासन की होगी।

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