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चंद्रशेखर कैसे बना भीम आर्मी का रावण’, जानिए दलित नेता बनने की पूरी कहानी

(ताज़ाख़बर36गढ़) भीम आर्मी के संस्थापक और अध्यक्ष चंद्रशेखर उर्फ रावण के ऊपर से रासुका हटाने के योगी सरकार के फैसले के बाद उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया है। गुरुवार रात करीब 2 बजे जेल से बाहर निकलते ही चंद्रशेखर पुराने रंग में दिखे और ऐलान किया कि 2019 में भाजपा की सत्ता को उखाड़ फेंकेंगे। चंद्रशेखर मई 2017 से राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत जेल में बंद थे। उन्होंने कहा कि मुझे पूरा विश्वास है कि अगले 10 दिनों में भाजपा सरकार मुझे किसी ना किसी आरोप में फिर से फंसाने की कोशिश भी करेगी। आखिर कौन हैं ये चंद्रशेखर उर्फ रावण और क्या है उनकी भीम आर्मी, जिसने बेहद कम समय में ही पश्चिम उत्तर प्रदेश में अपना अच्छा खासा प्रभाव बना लिया। आइए जानते हैं…

सहारनपुर में जातीय हिंसा के दौरान उभरी भीम आर्मी

साल 2017 में सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में दलितों और सवर्णों के बीच हिंसा की एक घटना हुई। इस हिंसा के दौरान एक संगठन उभरकर सामने आया, जिसका नाम था भीम आर्मी। भीम आर्मी का पूरा नाम ‘भारत एकता मिशन भीम आर्मी’ है और इसका गठन करीब 6 साल पहले किया गया था। इस संगठन के संस्थापक और अध्यक्ष हैं चंद्रशेखर, जिन्होंने अपना उपनाम ‘रावण’ रखा हुआ है। शब्बीरपुर में हुई हिंसा के बाद ‘रावण’ ने 9 मई 2017 को सहारनपुर के रामनगर में महापंचायत बुलाई। इस महापंचायत के लिए पुलिस ने अनुमति नहीं दी, लेकिन सोशल मीडिया के जरिए महापंचायत की सूचना भेजी गई।

दलित युवाओं का पसंदीदा संगठन बना भीम आर्मी

सैंकड़ों की संख्या में लोग इसमें शामिल होने के लिए पहुंचे, जिन्हें रोकने के दौरान पुलिस और भीम आर्मी के समर्थकों के बीच संघर्ष हुआ और इसके बाद चंद्रशेखर के खिलाफ मामला दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। संगठन के अध्यक्ष चंद्रशेखर पेशे से वकील हैं। करीब छह साल पहले 2011 में गांव के कुछ युवाओं के साथ मिलकर चंद्रशेखर ने ‘भारत एकता मिशन भीम आर्मी’ का गठन किया था। भीम आर्मी आज दलित युवाओं का एक पसंदीदा संगठन बन गया है। सोशल मीडिया पर भी इस संगठन से बड़ी संख्या में लोग जुड़े हुए हैं। खास बात यह है कि इस संगठन में दलित युवकों के साथ साथ पंजाब और हरियाणा के सिख युवा भी जुड़े हैं। यूपी के सहारनपुर में यह संगठन अपनी खास पहचान बनाए हुए है।

बवाल के बाद बदला संगठन का स्वरूप

जिस समय भीम आर्मी का गठन किया गया था, उस समय इस संगठन का उद्देश्य दलित समाज की सेवा करना और इस समाज की गरीब कन्याओं के लिए धन जुटाकर उनका विवाह कराना था। रामनगर में हुए बवाल के बाद इस संगठन का स्वरूप बदल गया। चंद्रशेखर का कहना है कि जिस दिन यह बवाल हुआ, उस दिन वह परिवार के सदस्यों के साथ अपने गांव छुटमलपुर स्थित घर पर थे। चंद्रशेखर ने बताया कि राजनीतिक दलों को सभी समुदायों के वोटों की ज़रूरत होती है लेकिन कोई भी वास्तव में दलितों की परवाह नहीं करता है। हमारे लोगों पर हर दिन अत्याचार किया जाता है और उनके पास आवाज नहीं है वे पुलिस में नहीं जा सकते क्योंकि वे हमारी बात नहीं सुनते हैं।

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