अखलाख खान/बिलासपुर। छत्तीसगढ़ में चुनावी बिसात बिछ चुकी है। बिल्हा विधानसभा के लोग भी चुनावी रंग में रंगने लगे हैं। यहां की जनता की खासियत यह है कि अब तक हुए चुनाव में यहां की जनता ने दोबारा उसी चेहरा को विधानसभा नहीं भेजा है। यानी कि हर चुनाव में जनता ने चेहरा बदला है। अब तक हुए चुनाव में जनता के सामने दो ही भाजपा और कांग्रेस विकल्प थे, लेकिन इस बार चार विकल्प सामने हैं। भाजपा-कांग्रेस के साथ ही अब आम आदमी पार्टी और जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ जे सामने हैं। समस्याएं पुरानी हैं, जिसे सुलझाने के लिए हर बार जनता विधायक चुनती है, लेकिन किसी ने भी अब तक उनकी समस्याओं का हल नहीं निकाला।
ये हैं मुद्दे
मुआवजा: इस चुनाव में फसल बीमा का मुआवजा बड़ा मुद्दा होगा। सरकार ने सोसाइटियों के माध्यम से कर्ज लेने वाले किसानों के बैंक खाते से प्रीमियम की राशि कटवा दी थी। बीते खरीफ सीजन में बिल्हा विधानसभा क्षेत्र में 15 पैसे से भी कम फसल हुई थी। इसके बाद भी किसानों के खाते में एक से दो रुपए मुआवजा राशि डाली गई थी। इससे किसानों के मन में सरकार के प्रति खासा आक्रोश है। क्षेत्र के किसान स्थानीय प्रशासन से लेकर जिला प्रशासन तक मुआवजा के लिए गुहार लगा चुके हैं, लेकिन चौपट फसल के एवज में उन्हें पर्याप्त मुआवजा नहीं मिल सका।
आवास: प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण के क्रियान्वयन को लेकर भी जनता आक्रोशित हैं। दरअसल, हितग्राहियों के खाते में राशि तो जा रही है, लेकिन पर्दे के पीछे से ठेका प्रथा चल रही है। किसी भी ग्रामीण को खुद आवास बनाने नहीं दिया जा रहा है। यहां तक कि मटेरियल तक की सप्लाई ठेकेदारों के माध्यम से कराई जा रही है। ठेकेदार ग्रामीणों को कम मटेरियल देकर गुणवत्ताविहीन आवास बनवा रहे हैं। निर्माण के चंद दिनों बाद कहीं का प्लास्टर उखड़ रहा है तो किसी आवास की दीवारों में दरारें आ रही हैं।
पानी: बिल्हा विधानसभा क्षेत्र के गांवों में पानी एक विकराल समस्या है। चाहे पेयजल हो फिर सिंचाई… जनता को हर बार जलसंकट का सामना करना पड़ता है। हालांकि भाजपा सरकार के 15 साल के कार्यकाल में क्षेत्रों में करोड़ों रुपए खर्च करके ढेरों एनीकट बनाए गए हैं, लेकिन हर गर्मी में एनीकट पानी के लिए तरसते रहता है। भू-जल इतना नीचे चला जाता है कि हैंडपंप, बोर के गले सूख जाते हैं। बीते गर्मी की बात करें तो बिल्हा विधानसभा में भीषण जलसंकट पड़ा था। इस दौरान कई गांवों के लोगों को दूसरे गांवों से पेयजल तक ढोना पड़ा था। यहां के 80 प्रतिशत खेतों में सिंचाई की सुविधा नहीं है। हालांकि किसानों के लिए अब अरपा भैंसाझार परियोजना के तहत नहर निकाली जा रही है, लेकिन इससे कब पानी मिलेगा, यह भविष्य के गर्भ में है।
बेरोजगारी: बेरोजगारी की तुलना में सरकार रोजगार देने में नाकाम रही है। युवाओं का भरोसा जीतने के लिए सरकार ने मोबाइल बांटे, पर उसी समय बेरोजगारों ने आंदोलन शुरू कर दिया था। यही आंदोलन बिल्हा विधानसभा में भी हुआ। आंदोलनकारी युवाओं का कहना था कि मोबाइल से उनका भविष्य नहीं बनने वाला, उन्हें रोजगार चाहिए। युवाओं के इस गुस्से को भुनाने के लिए विपक्षी सारी पार्टियां उनके साथ हो गई थीं।
राशन: पीडीएस के राशन में कटौती से ग्रामीणों काफी नाराजगी है। बता दें कि एक साल पहले तक हर बीपीएल राशन कार्ड पर 35 किलो चावल दिया जा रहा था। अब एक सदस्य को मात्र सात किलो चावल दिया जा रहा है। राशन कार्ड से कई सदस्यों के नाम तक काट दिए गए हैं, जिसे जुड़वाने के लिए ग्रामीणों ने काफी मशक्कत की, लेकिन सफलता कुछ लोगों को ही मिली।
शौचालय: बिलासपुर जिले को ओडीएफ घोषित किया जा चुका है। यानी कि पूरे जिला खुले में शौच से मुक्त हो गया है, लेकिन धरातल की सच्चाई अलग कहानी बयां करती है। बिल्हा विधानसभा के अधिकांश गांवों में शौचालय के नाम पर महज सीटें बैठा दी है, इसके दीवार नहीं उठाई गई है, जिसके चलते ग्रामीण चाहकर भी इसका उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। बीते चार महीने से ग्रामीण क्षेत्रीय विधायक, भाजपा के पदाधिकारी से लेकर प्रशासन का दरवाजा खटखटा रहे हैं, लेकिन उनका सुनने वाला कोई नहीं है। अलबत्ता, ग्रामीण इस चुनाव में इसका बदला चुकाने को तैयार हैं।