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मस्तूरी विधानसभा: विधायक लहरिया की कार्यशैली से जनता नाराज… कह रहे- चुनाव जिताकर पछता रहे हैं… पढ़िए, गृहग्राम और गोदगांव की ग्राउंड रिपोर्ट…


बिलासपुर/  मस्तूरी विधानसभा के गांवों में मूलभूत सुविधाओं का संकट बना हुआ है। भाजपा सरकार के 15 साल के शासनकाल और कांग्रेस विधायक दिलीप लहरिया के पांच साल के कार्यकाल के बाद भी ग्रामीण राशन, पेंशन के लिए भटक रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि गांव के बेटे दिलीप लहरिया को उन्होंने इस आस से जिताया था, ताकि वह उनकी तकलीफें समझ सकें और उसे तत्काल दूर कर दें, क्योंकि वह खुद भी गांव में रहते हैं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। चुनाव जीतने के बाद वे बिलासपुर शिफ्ट हो गए और वहीं के रहकर हो गए। उनके गृहग्राम धनगवां के ग्रामीण कहते हैं कि विधायक लहरिया सूरज ढलने के बाद आते हैं और सूरज निकलने के पहले ही चले जाते हैं। उनका दर्शन तक दुर्लभ हो गया है। इधर, उनके गोदगांव बकरकुदा के लोगों को भी यही शिकायत है। यहां की सड़कों का नजारा नालियों की तरह है और नालियां सूखी हुई हैं। विधायक के गृहग्राम और गोदगांव का ये हाल है तो विधानसभा क्षेत्र के अन्य गांवों का क्या हाल होगा, इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।

धनगवां: विकास के नाम पर 5 साल में सामुदायिक भवन और एक सीसी रोड

मल्हार से करीब छह किलोमीटर दूर विधायक दिलीप लहरिया का गृहग्राम धनगवां हैं। छत्तीसगढ़ निर्माण के बाद जितनी भी सरकारें आईं और विधायक चुनकर विधानसभा भेजे गए, सभी ने इस गांव की उपेक्षा ही की। जब 2013 में गांव के तबला मास्टर के बेटे और छत्तीसगढ़ी गायककार दिलीप लहरिया को कांग्रेस से टिकट मिला तो ग्रामीणों के चेहरों पर खुशी का ठिकाना नहीं था। चुनाव से पहले ही गांववालों ने मिठाइयां बांटकर खुशी का इजहार किया। ग्रामीणों ने उन्हें दूसरे गांवों की तरफ ध्यान देने की बात कहते हुए खुद ही मोर्चा संभाल लिया। जब रिजल्ट आया तो यहां से बीजेपी को मात्र 17 वोट मिले। शेष वोट लहरिया के हिस्से में गिरे। लहरिया के चुनाव जीतने के बाद गांव में एक साथ होली और दिवाली मनाई गई। ग्रामीणों के अनुसार उन्हें आस थी कि अब गांव का चौतरफा विकास होगा, पर ऐसा नहीं हो सका। चुनाव जीतने के बाद विधायक लहरिया बिलासपुर में शिफ्ट हो गए। पांच साल में वे कई बार धनगवां आए, लेकिन सूरज ढलने के बाद। फिर सूरज उगने से पहले गांव छोड़ गए। उन्होंने बताया कि विधायक ने विकास के नाम पर अपनी निधि से गांव में एक सामुदायिक भवन और एक सीसी रोड बनवाए हैं।

शौचालय बने नहीं और ओडीएफ घोषित

विधायक लहरिया के घर से पांच सौ मीटर दूर स्थित पानठेले पर मौजूद ग्रामीणों से जब पूछा गया कि यहां क्या-क्या विकास हुए हैं तो वे झल्ला गए। एक ग्रामीण हाथ पकड़कर सामने बने शौचालय तक ले गया, जहां शौचालय के नाम पर सिर्फ सीट बिठा दी गई है। इस नजारे को दिखाते हुए ग्रामीणों ने बताया कि कुछ घरों में ऐसे ही शौचालय बनाए गए हैं। शिकायत करने पर न तो ब्लॉक में सुनवाई होती है और न ही जिले में।

आवास, राशन और पेंशन को तरसते ग्रामीण

ग्रामीणों ने बताया कि यहां अधिकतम एक दर्जन परिवार को ही आवास की सुविधा मिली है। ये लोग सरपंच और विधायक के करीबी हैं। राशन और पेंशन घोटाले की शिकायत करते-करते थक गए, पर सुनवाई नहीं हुई। ग्रामीणों का आरोप था कि गांव के बेटे लहरिया की अब ऊंची पहुंच हो गई है। इसलिए वे यहां की शिकायतों को दबवा देते हैं। यहां के हितग्राहियों को तीन-चार माह में एक बार पेंशन और एक बार राशन नसीब होता है।

बकरकुदा: लहरिया के गोदगांव को ‘भागीरथी’ की तलाश

सरकार की योजना के तहत विधायक लहरिया ने मस्तूरी से मल्हार रोड पर स्थित ग्राम पंचायत बकरकुदा को गोद ले लिया है। इसकी जानकारी मिलते ही कांग्रेसी समर्थक बाहुल्य गांव के ग्रामीणों को विकास की उम्मीद की किरण दिखाई। दरअसल, ग्रामीणों को पता है कि विधायक निधि के तहत एक साल में दो करोड़ रुपए मिलते हैं। पांच साल में यहां के लिए विधायक की नजरें 10 प्रतिशत भी इनायत हो गईं तो गांव की तस्वीर बदल जाएगी। मस्तूरी से मल्हार रोड पर स्थित बकरकुदा का मुख्य मार्ग तो चकाचक है, लेकिन अंदर की गलियों की हालत खराब है। जिस वार्ड में उपसरपंच रहते हैं, वहां मिट्‌टी की सड़क है। ऐसे में नाली की बात करना तो बेमानी होगी। उपसरपंच के घर से पांच सौ मीटर आगे मोड़ वाली सड़क पर नालियां जरूर बनाई गईं हैं, पर वो भी आधी-अधूरी। किसी जगह पर नाली की दोनों तरफ दीवार है तो किसी जगह पर एक ओर ही दीवार उठाई गई है। यह नाली पूरी तरह से सूखी हुई है। दरअसल, नाली में गंदा पानी आने के लिए जगह ही नहीं है। करीब 100 मीटर नाली दोनों ओर से पैक है। मोहल्लेवासियों का कहना है कि ऐसी समस्या का सामना करने का वो आदी हो गए हैं। गोद लेने के बाद विधायक से आस थी, जो अब टूट गई है।

ये देखो साहब… ऐसी है सड़क

लौटते वक्त रास्ते में सूटबूट में एक बुजुर्ग मिला। पूछताछ करने पर उन्होंने अपना नाम बताया। गांव में विकास के बारे में जानकारी मांगने पर वे अपने साथ लेकर अपने घर के पास चले गए। उनके घर के सामने कच्ची सड़क दलदल में तब्दील हो गई है। दलदल के बीच ही हैंडपंप है, जिससे 100 से अधिक घरों का गुजारा होता है। उन्होंने कहा कि यह नजारा ही काफी है, गांव का विकास दिखाने के लिए।

बीच-बीच में आते हैं विधायक… कुछ लोगों के साथ बैठक कर चले जाते हैं

महिलाओं का कहना था कि उनके गांव में साल में दो बार विधायक जरूर आते हैं, पर गांव का भ्रमण कभी नहीं किया। वे अपने कुछ चहेतों के घरों में बैठक कर लौट जाते हैं। वे उन्हें वाहन से आते देखती हैं और जाते भी। गांव में शायद ही कोई आम महिला-पुरुष होगा, जिनका हालचाल लहरिया ने पूछा हो। उन्होंने बताया कि गांव में राशन, पेंशन की समस्या पहले से बरकरार है। शौचालय तो बनाए गए हैं, लेकिन किसी में दीवार नहीं उठाई है तो किसी की छत गायब है। दीवार और छत है तो दरवाजे नहीं लगे हैं।

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