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बिलासपुर अपोलो अस्पताल में पहली बार हुआ अलग-अलग ब्लड ग्रुप का किडनी ट्रांसप्लांट…मध्यभारत का पहला मामला…

बिलासपुर/ डॉक्टर भगवान तो नही पर भगवान से कम भी नही। अपोलो अस्पताल के डॉक्टरों की टीम ने साबित कर दिखाया है। इस अस्पताल का यह पहला ऑपरेशन था, जिसमें किसी और ब्लड ग्रुप वाले की किडनी ट्रांसप्लांट की गई हो। डॉक्टरों ने तुषार दुबे को उन्हीं की मां की किडनी ट्रांसप्लांट कर बेहद गंभीर परिस्थितियों में एक नई जिंदगी दी है। डॉ सजल सेन सीओबओ अपोलो बिलासपुर की अध्यक्षता में आयोजित यह प्रेस का्रॅफ्रेंस मुख्य रूप से किये गये विशिष्ट गुर्दा प्रत्यारोपण की जानकारी साझा करने के लिये की गई। डॉ सजल सेन ने बताया की भारत वर्ष में किडनी फेलियर की स्थिति काफी चिंताजनक है। अस्पताल का दावा है कि सेंटर इंडिया मे पहला आपरेशन किया गया है।

चकरभाठा के पास ग्राम काडर के रहने वाले तुषार दुबे को कुछ समय पहले किडनी में परेशानी हुई थी। जब उन्होंने जांच कराई तो पता चला की दोनों किडनी खराब हो चुकी हैं, जिन्हें बदलना बहुत जरूरी है। तुषार डेढ साल से अपोलो में डायलिसिस पर थे, लेकिन उनको अपने ब्लड ग्रुप एबी पॉजिटिव का कोई भी किडनी डोनर नहीं मिल रहा था। ऐसे में बेटे को जिंदगी और मौत के बीच देख कर मां ने अपनी किडनी देने की ठानी। इस पर अस्पताल के सीनियर कंसलटेंट डॉ. जिग्नेश पांड्य एवं वरिष्ठ सर्जन डॉ जयंत कानस्कर की टीम ने तय किया की तुषार को अलग ब्लड ग्रुप की किडनी लगाई जाएगी।

एबी पाॅजीटिव है तुषार की मां का ब्लड ग्रुप

तुषार की मां का ब्लड ग्रुप एबी पॉजिटिव है। इसलिए डॉक्टरों ने तुषार के ब्लड से एंटीबॉडीस को निकाला और उसको प्लाज्मा को बदला। ताकि उसका शरीर उसे बिना विरोध किए अपना ले। ये ऑपरेशन 23 नवम्बर को किया गया था और पांच हफ्ते तक उन्हें निगरानी में रखा गया है। डाॅक्टरों ने बताया कि तुषार के शरीर में किडनी सही तरीके से काम कर रही है। उनको अस्पातल से बहुत जल्द छुट्टी भी मिल जाएगी। डॉ. सजल सेन ने बताया की ये बेहद चुनौती भरा काम था, जिसे बहुत गंभीरता से किया गया है।

क्या है किडनी ट्रांसप्लांट?

यह एक ऐसी सजर्री है, जिसमें मरीज को अलग से एक स्वस्थ किडनी लगा दी जाती है। इससे व्यक्ति को डायलिसिस पर रखने की जरूरत नहीं पड़ती है। यह स्वस्थ किडनी या तो एक जीवित व्यक्ति दे सकता है या फिर डॉक्टरों की ओर से प्रमाणित किया हुआ एक ब्रेन डेड व्यक्ति। कोई भी स्वस्थ व्यक्ति, जिसका ब्लड ग्रुप मरीज से मिलता हो या ना भी मिलता हो, 18 से 55 की उम्र के बीच का हो, वह अपनी किडनी दान दे सकता है। किडनी ट्रांसप्लांट के बाद डोनर को एक महीने तक डॉक्टरों की निगरानी में रहना पड़ता है।

कौन से ब्लड ग्रुप के कितने डोनर

– ओ पॉजिटिव ग्रुप वाले किसी को भी ब्लड दे सकते हैं। इनकी संख्या 43 फीसदी है।
– यूनिवर्सल रेसीपिएंट: एबी पॉजिटिव ग्रुप को किसी भी ग्रुप का खून चढ़ सकता है। इनकी संख्या 5 फीसदी है।
– बी पॉजिटिव ग्रुप की संख्या 10 फीसदी और ए पॉजीटिव ग्रुप वालों की संख्या 42 फीसदी है।

चार चरणों में होता है इलाज

प्लाज्मा से एंटीबॉडीज निकालने के लिए चार चरणों में इलाज किया जाता है। इसलिए इलाज आम ट्रांसप्लांट से 3 लाख रुपये महंगा है।

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