इस बात में कोई संदेह नहीं है कि भारत के चुनावों में जाति और धर्म काफी अहम भूमिका निभाते हैं। समाज की इस संरचना के आधार पर टिप्पणीकारों को भी चुनावी भविष्यवाणी करने में सहूलियत होती है। लेकिन इस आधार पर भविष्यवाणी करने में दो तरह की बाधाएं होती हैं।
पहला तो यह कि देश में जातियों का कोई प्रामाणिक और विस्तृत आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। 2011 की जनगणना में भी केवल एससी और एसटी का प्रतिशत बताया गया है। यह भारत की कुल आबादी (1.21 अरब) का 25 फीसदी है। इसके साथ ही 2015-16 में चौथे राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) जैसे अन्य स्रोत भी अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और एससी-एसटी-ओबीसी से इतर व्यक्तियों की जनसंख्या का सर्वेक्षण-आधारित अनुमान देते हैं। हालांकि इन अनुमानों में जातियों का विवरण नहीं है। इसलिए जातीय समीकरण के आधार पर की गईं चुनावी भविष्यवाणियां गलत साबित हो सकती हैं।
जातिगत आधार पर चुनावी भविष्यवाणी करने में दूसरी बाधा जो सामने आती है वह है देश भर में उनकी एकसमान उपस्थिति की अभाव। उदाहरण के लिए, देश भर में एससी की आबादी 17% है। लेकिन राज्यवार देखें तो पंजाब में उनकी आबादी राज्य की कुल आबादी का 32% और गोवा में मात्र 2% ही है। यहां तक कि एक राज्य के अंदर भी इनकी संख्या में भारी अंतर होता है। उदाहरण के लिए देश के एक मात्र मुस्लिम बहुल प्रदेश जम्मू-कश्मीर के कुल 22 जिलों में से पांच में मुसलमानों की आबादी 20 प्रतिशत से भी कम है। सांबा जिले में तो मुसलमानों की आबादी मात्र सात प्रतिशत ही है।
इसी तरह, उत्तर प्रदेश में कुल 19 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है जो मुसलमानों को एक प्रमुख वोट बैंक के रूप में पेश करता है। लेकिन इसमें कई बातें छिपी हुई हैं। तथ्य हैं कि राज्य के कुछ हिस्सों में ही इनकी संख्या ठीक ठाक है। यूपी के 71 जिलों में से 11 में 30 फीसदी से भी अधिक मुसलमान हैं। इनमें रामपुर में मुस्लिम आबादी बहुमत में है और इससे तीन प्रतिशत ही कम आबादी मुरादाबाद में है। इसी तरह छत्तीसगढ़ में कुल 31 प्रतिशत आदिवासी हैं। यह किसी राज्य में आदिवासी आबादी से अधिक है। लेकिन छत्तीसगढ़ के अंदर जांजगीर चंपा जिले में आदिवासियों की आबादी 12 प्रतिशत है तो बीजापुर में यह 80 प्रतिशत है।
कुल मिलाकर यह है कि किसी विशिष्ट समूह का किसी खास क्षेत्र में बहुत अधिक प्रभाव हो सकता है, भले ही पूरे राज्य में उसकी आबादी बहुत ही कम क्यों न हो। इस बात के भी कोई ठोस सबूत नहीं हैं कि किसी विशेष सामाजिक समूह के मतदाता एकजुट होकर मतदान करते हैं। एनएफएचएस का आंकड़ा भी एक ही सामाजिक समूहों के बीच आर्थिक स्तर में क्षेत्रीय भिन्नता को दिखाता है।
एनएफएचएस के सर्वेक्षण में परिवारों को आर्थिक आधार पर पांच वर्गों में विभाजित किया गया है – सबसे गरीब, गरीब, मध्यम, अमीर और सबसे अमीर। बिहार के सीवान, पटना और मुंगेर जिलों में एससी आबादी का 60% से अधिक अमीर या सबसे अमीर श्रेणी में आता है। दूसरी ओर मधेपुरा, सहरसा और सीतामढ़ी जिलों में एससी आबादी का कोई भी हिस्सा इस श्रेणी में नहीं आता है। यह पूरी तरह से स्वीकार्य तथ्य है कि आर्थिक स्थितियों में अंतर होने के आधार पर एक राज्य के भीतर भी समान सामाजिक समूहों के मतदान व्यवहार अलग अलग हो सकते हैं।
इन तथ्यों के बावजूद, एनएफएचएस आंकड़ें हमें उन क्षेत्रों की पहचान करने में मदद कर सकते हैं जहां एक विशेष सामाजिक समूह राजनीतिक परिणामों पर प्रभाव डाल सकता है।बिहार में कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जो ओबीसी के गढ़ हैं। पंजाब में अनुसूचित जातियों की बहुलता वाले कुछ क्षेत्र हैं, छत्तीसगढ़ और ओडिशा में आदिवासी क्षेत्र हैं और पश्चिम बंगाल, केरल, असम और उत्तर प्रदेश में मुस्लिम बहुल इलाके हैं।
संख्या कैसे प्रभावित करती है
जाति और धर्म को लेकर किए जाने वाले आकलन अक्सर गलत होते हैं, क्योंकि इनमें एक राज्य के अंदर भी काफी विविधताएं होती हैं। मसलन जम्मू-कश्मीर में सर्वाधिक मुस्लिम आबादी होना और उत्तर प्रदेश में इनकी संख्या कम होने के आधार पर ही सारा आकलन नहीं किया जा सकता है। क्योंकि जैसा की ऊपर दिया गया है, इनकी संख्या राज्य के अंदर भी अलग अलग हैं।
सामाजिक समूहों का आबादी में हिस्सा
यहां दिए गए चार्ट इस बात को बताते हैं कि किस तरह एक राज्य में किसी जाति या धर्म मानने वाले लोगों की आबादी से उसी राज्य के किसी जिले में उनकी आबादी कहीं ज्यादा है।
अनुसूचित जाति राज्य में % जिला में %
कूच बिहार (प. बंगाल) 23.5 50.2
शहीद भगत सिंह नगर (पंजाब) 31.9 42.5
गंगानगर (राजस्थान) 17.8 36.6
कौशांबी (उत्तर प्रदेश) 20.7 34.7
तिरुवरुर (तमिलनाडु) 20 34.1
अनुसूचित जनजाति
द डांग्स (गुजरात) 14.8 94.7
अलीराजपुर (मध्य प्रदेश) 21.1 89
कारगिल (जम्मू-कश्मीर) 11.9 86.9
लाहौल स्पिति (हिमाचल) 5.7 81.4
बीजापुर (छत्तीसगढ़) 30.6 80
अन्य पिछड़ा वर्ग
पुलवामा (जम्मू-कश्मीर) 7.6 100
कन्याकुमारी (तमिलनाडु) 71.2 96.1
श्रीकाकुलम (आंध्र प्रदेश) 51.8 89.4
मेवात (हरियाणा) 47.9 87.2
उत्तर कन्नड (कर्नाटक) 50.9 85.7
मुस्लिम
शोपियां (जम्मू-कश्मीर) 68.3 98.5
धुबरी (असम) 34.2 79.7
मेवात (हरियाणा) 7 79.2
मालापुरम (केरल) 26.6 70.2
किशनगंज (बिहार) 16.9 68
असमान रूप से बिखरी आबादी
पूरे देश, राज्य के अंदर (जिलों में भी) असमान रूप से फैली जातीय और धार्मिक समूहों की आबादी
अनुसूचित जाति की आबादी
देश भर में अनुसूचित जातियों की आबादी 17% है। लेकिन राज्यवार देखें तो पंजाब में उनकी आबादी राज्य की कुल आबादी का 32% और गोवा में मात्र 2% ही है।
अनुसूचित जनजाति की आबादी
देश भर में अनुसूचित जनजातियों की आबादी 9 प्रतिशत है। लेकिन राज्यों को देखें तो छत्तीसगढ़ में सर्बाधिक 31 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति हैं।
अन्य पिछड़ा वर्ग
देश में अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी 45 प्रतिशत है। लेकिन राज्यवार आबादी देखें तो तमिलनाडु में सर्वाधिक 71 प्रतिशत ओबीसी हैं।
मुस्लिम आबादी
भारत में मुसलमानों की आबादी 13 प्रतिशत है। लेकिन पूरे देश में इनकी आबादी भी समान रूप से नहीं है।