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एनएमसी बिल: मेडिकल छात्रों को बड़ी राहत, निजी चिकित्सा कॉलेजों में नहीं चलेगी फीस की मनमानी…

भविष्य में देश में मेडिकल शिक्षा की दिशा और दशा को नियंत्रित करने वाले राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (नेशनल मेडिकल कमीशन-एनएमसी) विधेयक पर संसद ने मुहर लगा दी। राज्यसभा पिछले हफ्ते ही इस विधेयक पर मुहर लगा चुकी है। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और द्रमुक के वाकआउट के बीच सोमवार को लोकसभा ने भी इस पर मुहर लगा दी।

एनएमसी फिलहाल देश में मेडिकल शिक्षा को नियंत्रित कर रहे बोर्ड ऑफ गवर्नर्स (बीओजी) की जगह लेगा। पिछले साल सरकार ने भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरी और मेडिकल शिक्षा के विस्तार में रोड़ा बन चुकी भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआइ) को निलंबित कर बीओजी का गठन किया था। इस विधेयक के कानून बन जाने के बाद चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र में इंस्पेक्टर राज खत्म हो जाएगा।

लोकसभा में स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्री हर्षवर्धन ने विधेयक के प्रावधानों को लेकर विपक्ष की ओर से उठाए गए मुद्दों का विस्तार से जवाब दिया। उन्होंने कहा कि एनएमसी देश में मेडिकल के छात्रों और डाक्टरों की सभी हितों का संरक्षण और संवर्धन करेगा। इससे देश के मेडिकल कॉलेजों और वहां के छात्रों की कमी दूर करने में भी सफलता मिलेगी।

हर्षवर्धन ने बताया कि पिछले पांच साल में सरकार के प्रयास से एमबीबीएस की लगभग 35 हजार और पीजी की 17 हजार सीटें बढ़ाई जा चुकी हैं। देश में एम्स समेत सभी मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस में नामांकन सिर्फ एक परीक्षा, जिसका नाम एनआइआइटी (नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेस टेस्ट) रखा गया है, होने से छात्रों की परेशानी कम होगी।

निजी मेडिकल कॉलेजों में 50 फीसदी सीटों को अनियंत्रित छोड़ने से मनमानी फीस वसूले जाने की आशंकाओं को खारिज करते हुए हर्षवर्धन ने कहा कि देश में एमबीबीएस की मौजूदा लगभग 80 हजार सीटों में से लगभग 60 हजार सीटों पर फीस सरकार की ओर से निर्धारित की जाएगी।

उन्होंने बताया कि लगभग 80 हजार सीटों में आधी सीटें सरकारी मेडिकल कॉलेजों की हैं, जिनकी फीस बहुत कम होती है। वहीं बाकी बची लगभग 40 हजार सीटों में से 20 हजार के लिए फीस निर्धारण सरकार करेगी। यही नहीं, यदि राज्य सरकारें चाहें तो निजी मेडिकल कॉलेजों के लिए छोड़ी गई 50 फीसदी सीटों पर फीस को नियंत्रित कर सकती हैं और इसके लिए मेडिकल कॉलेजों के साथ समझौता कर सकती हैं।

एमबीबीएस छात्रों को देनी होगी एक्जिट परीक्षा

एमबीबीएस पास करने के बाद छात्रों को मेडिकल की प्रैक्टिस करने के लिए एक्जिट परीक्षा देनी होगी। इस एक्जिट परीक्षा को लेकर सांसदों के गलतफहमी को दूर करते हुए हर्षवर्धन ने कहा कि इस परीक्षा के बाद डाक्टरों को कोई परीक्षा नहीं देनी होगी। इसमें आने वाले अंक के आधार पर उनका नामांकन पीजी में हो जाएगा। पीजी के लिए अलग से होने वाली एनआइआइटी की परीक्षा स्वत: खत्म हो जाएगी।

एक्जिट परीक्षा में पास होने वाले छात्रों को प्रैक्टिस करने का अधिकार मिल जाएगा। इसमें फेल होने वाले छात्रों को अगले साल दोबारा यह परीक्षा देने का मौका होगा। यही नहीं, परीक्षा में अपना रैंक सुधारने की इच्छा रखने वाले छात्र भी दोबारा यह परीक्षा दे सकते हैं। विदेशों से पढ़ाई कर आने वाले एमबीबीएस के छात्रों को भी भारत में प्रैक्टिस करने के लिए अलग से परीक्षा नहीं देनी होगी, बल्कि एक्जिट परीक्षा को ही क्लीयर करना होगा।

विपक्ष ने विधेयक को गरीब विरोधी बताया

लोकसभा में कांग्रेस दल के नेता अधीर रंजन चौधरी ने विधेयक को गरीब विरोधी बताते हुए इसे स्थायी समिति में भेजने की मांग की, जिसे हर्षवर्धन ने ठुकरा दिया। हर्षवर्धन का कहना था कि 2017 में पेश होने के बाद यह विधेयक दो बार संसदीय समिति में जा चुका है। यही नहीं मौजूदा विधेयक में संसदीय समिति के अधिकांश सुझावों को भी शामिल किया जा चुका है।

विपक्ष की ओर से विधेयक में कई संशोधन प्रस्तावित किए गए, लेकिन वे स्वीकृत नहीं हो सके। प्रस्तावित संशोधनों के अमान्य किये जाने से नाराज कांग्रेस सांसदों ने सदन से वाकआउट किया।

‘एनएमसी विधेयक दूरदर्शी कदम है और इतिहास में यह मोदी सरकार के सबसे बड़े सुधार के रूप में दर्ज होगा- हर्षवर्धन, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री।’

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