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इंटरव्यू / मां कहती थीं- तुम्हें जो सम्मान मिला है, उससे खुद को बड़ी मत समझना: लता मंगेशकर

लताजी का आज 91वां जन्मदिन है, इस मौके पर दैनिक भास्कर ने उनसे बातचीत की

स्वर कोकिला लता दीदी को 2001 में भारत रत्न दिया गया था, अब ‘डॉटर ऑफ द नेशन’ पुरस्कार नवाजा जाएगा

मुंबई . स्वर कोकिला लता मंगेशकर का आज 28 सितंबर 91वां जन्मदिन है। फिल्म संगीत में 70 साल के अभूतपूर्व योगदान पर प्रधानमंत्री ने 6 सितंबर को ट्वीट कर उन्हें  ‘डॉटर ऑफ द नेशन’ का खिताब देने की घोषणा की थी। इंदौर में जन्मीं लताजी ने गाने की शुरुआत 1940 में की। तब वे महज 11 साल की थीं।

1943 में मराठी फिल्म ‘गजाभाऊ’ में उन्होंने हिंदी गाना ‘माता एक सपूत की दुनिया बदल दे’ को आवाज दी। यह उनका पहला गाना है। 2001 में उन्हें भारत रत्न और 1989 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार भी मिला। लता जी सरल-निर्मल हैं, सम्मानित इतनीं कि सब उन्हें ‘दीदी’ कहकर पुकारते हैं। वह अमूमन मीडिया से दूरी ही बनाकर रही हैं पर भास्कर से उन्होंने अपनी जिंदगी के इस खास मौके पर खास चर्चा की। लता मंगेशकर से की गई विशेष बातचीत…

सवाल: संगीत शिखर पर पहुंचकर कैसा महसूस होता है?
लता:
 देखिए, मैं इसे ऊंचाई नहीं समझती हूं। यह मेरे माता-पिता का आशीर्वाद है। भगवान की कृपा से जो कुछ मिला है, वह सब उनका ही है। मुझे सिर्फ अहसानमंद होना चाहिए कि यह उन्होंने दिया है। मैं यही सोचती हूं। देखिए, इंसान को आनंद तब मिलता है, जब घर में सब आनंदमय हों, सुखी हों। मेरे जो भाई-बहन हैं या जो उनके बच्चे हैं, वे खुश रहें। दूसरा, अगर कोई गाना मुझे अच्छा लगे, उसे अच्छा गाया, उसकी रिकॉर्डिंग अच्छी हो गई, तब भी मुझे खुशी मिलती है।

सवाल: इतनी लोकप्रियता सहेजकर रखने का राज?
लता:
 मुझे ही नहीं, हम सब भाई-बहन को पिताजी से शिक्षा मिली है। उसके बाद हमारी मां 94 साल तक रहीं। मां हमेशा कहती थीं कि तुमको जो सम्मान मिला है, उससे खुद को बहुत बड़ी सिंगर मत समझो। तुम एक साधारण इंसान हो। तुमको जो दे रहा है, वह भगवान है। यह पिताजी के आशीर्वाद से मिल रहा है। इसमें तुम सुख मानो कि यह उनकी कृपा से मिला है। मेरे कोई कमाल काम करने से मिला है, ऐसा नहीं है। यही हम सीखते रहे और उसी रास्ते पर चलते रहे।

सवाल: सोशल मीडिया पर आप सक्रिय रहती हैं, आखिर कहां से इतनी जानकारियां जुटा लेती हैं?
लता:
 मैं पढ़ती हूं या टीवी देखती हूं, तब मालूम होता है। आजकल लोग कहते हैं कि टीवी में बढ़ा-चढ़ाकर बताते हैं। अखबार में भी ज्यादा लिखते हैं, जो हुआ भी नहीं है। लेकिन मैं सोचती हूं कि किसी ने 100 बातें बताई हैं, ताे उसमें से 50 तो ठीक होंगी। मैं सच्ची बात कहती हूं,मीडिया से जरा दूर ही रहती हूं। ज्यादा मिलना या टीवी पर बार-बार जाना और इंटरव्यू देने से दूर रहती हूं।

सवाल: इसकी कोई खास वजह?
लता:
 नहीं, खास वजह नहीं है, पर खुद को हर जगह नहीं दिखाना चाहती। क्योंकि बाद में लोग कहने लगते हैं कि पेपर उठाओ, टीवी देखो तो वही नजर आ रहे हैं। यह मुझे पसंद नहीं। अपने घर में शांति से रहें, यह मुझे ज्यादा अच्छा लगता है।

सवाल: किस तरह से घर पर गाती और रियाज करती हैं? संगीत को कितना समय देती हैं?
लता:
 समय तो बहुत कम दे पाती हूं। जितना रियाज होना चाहिए, उस मुकाबले थोड़ा सा कर लेती हूं।

सवाल: आपके प्रशंसकों में पंडित नेहरू, इंदिरा गांधी, अटलबिहारी वाजपेयी, नरेंद्र मोदी आदि सभी रहे हैं। कभी आपका गाना सुनकर नेहरू जी की आंखों में आंसू भी आ गए थे। आज आपको इस शिखर पर देखकर उनकी क्या प्रतिक्रिया होती?
लता: नेहरू जी अगर होते, तब उनको खुशी होती। वे वाकई मेरे साथ बहुत इज्जत और प्यार से पेश आते थे। इसमें कोई शक नहीं। इंदिरा जी भी बहुत प्यार से मिलती थी। जैसे कोई अपना मिलने आया हो, उनका मिलने का ऐसा तरीका होता था। अटलजी और बाकी सभी लोग मेरे साथ अच्छे रहे हैं। इन महापुरुषों से जब मिलती, तब मन में यह विचार होता था कि इससे ज्यादा बढ़कर उनके साथ बातें नहीं करनी है, क्योंकि वे एक अलग जगह पर हैं। मैं एक आम इंसान हूं।

सवाल: आपकी बहन मीना मंगेशकर-खडीकर ने आपके ऊपर ‘दीदी और मैं’ किताब लिखी है। इसकी प्रस्तावना अमिताभ बच्चन ने लिखी है। उनसे जुड़ी कोई बात और याद शेयर करेंगी?
लता:
 देखिए, अमित जी बहुत बड़े आर्टिस्ट हैं। उनकी पूरी फैमिली भी वैसी ही है। मैं उनके घर पर कई बार गई हूं। मैं इतना जानती हूं कि वे बहुत शरीफ इंसान हैं। बहुत लोगों की हेल्प भी करते हैं। मेरा सौभाग्य है कि उनके पिताजी से भी मिली हूं। उनसे मुलाकात नरेंद्र शर्मा के यहां हुई थी। वे भी बड़े कवि थे। मैं उनको पिताजी कहती थी। मैंने बातों-बातों में बच्चन साहब से कहा कि आपकी किताबें और रचनाएं पढ़ी हैं। तब उन्होंने कहा- ‘अच्छा! तुमने यह सब पढ़ा है!’ मैंने कहा- जी हां, मैं पढ़ती हूं। मुझे बहुत अच्छा भी लगता है, इसलिए आज आपसे मिलकर बहुत खुशी हो रही है। तब वे बहुत भावुक हो उठे।

सवाल: 29 सितंबर को ‘दीदी और मैं’ किताब का विमोचन हो रहा है। इस किताब मेें आपकी जिंदगी में आए उतार-चढ़ाव के बारे में उल्लेख हैं, इन उतार-चढ़ाव के बारे में बताएंगी?
लता: जिंदगी में उतार-चढ़ाव तो बहुत हुए हैं। मीना बहुत छोटी थी, उसको तो बहुत याद है। यह देखकर ताज्जुब होता है। उसने बहुत सारी बातें किताब में लिखी हैं, जो मुझे याद नहीं है। मैं 13 साल की थी, तब से उतार-चढ़ाव देख रही हूं। तब से मैंने फिल्मों में काम करना शुरू किया। पिताजी की डेथ के बाद ही एक फिल्म में काम किया। फिर वहां से कोल्हापुर गई। वहां एक कंपनी में परमानेंट आर्टिस्ट थी, तब फिल्मों में ज्यादातर बच्चों के रोल करती थी। हीरो और हीरोइन की बहन का रोल बहुत सारी फिल्मों में किया। मैंने 1947 में हिंदी फिल्म में गाना शुरू किया, उसके बाद तो सब जानते ही हैं। काफी हद तक हमारा बचपन कुछ अलग था।

भास्कर: अच्छा, सुना है कि आप कुछ टीवी सीरियल भी देखती हैं? 
लता: जब से ‘सीआईडी’ शुरू हुआ, तब से देखती थी। हमारे घर में सभी देखते थे। वह हमें पसंद भी था। अभी ‘सीआईडी’ इन लोगों ने बंद कर दिया है, हालांकि वह बहुत लोगों को पसंद है। अभी एक चैनल पर वह आता है, पर उसमें थोड़े-से लोग हैं। वह जो ग्रुप था, वह तो टूट गया।

सवाल: जिस तरह आज गाने बन रहे हैं, रीमिक्स हो रहे हैं। लोग आज की फिल्में देखते हैं, पर गाना पुराने सुनना पसंद करते हैं, इन सब पर क्या कहेंगी?
लता:
 पुराने गाने वाकई बहुत अच्छे थे। मतलब जितने लोगों ने गाए हैं और जितना बनाया गया है, जितने म्यूजिक डायरेक्टर थे, अब उनमें से कोई नहीं बचा। गाने वालों में देखिए, अभी जितने बड़े-बड़े सिंगर थे- किशोर कुमार, मुकेश जी, मन्ना डे साहब, तलत महमूद ये सब अभी नहीं हैं। एक सामर्थ्य खाली पड़ा है। मैंने तो फिल्मों में गाना बंद ही कर दिया है। आशा भी कम गाती हैं। अब क्या बनता है, वह हमें मालूम नहीं। एक-दो सिंगर के नाम सुनने में आते हैं। मैंने उनको सुना भी है। सुनिधि चौहान, श्रेया घोषाल अच्छा गाती हैं। सोनू निगम हैं, जो गाना जानते हैं, अच्छा गाते हैं। रीमिक्स मुझे पसंद नहीं हैं। इससे अच्छी चीजें बनती नहीं हैं। सिंगर को गाने के लिए नया कुछ मिलता नहीं है।

सवाल: जन्मदिन पर सुनते ही सबसे पहले मन में क्या बातें आती हैं?
लता:
 सुनेंगे तो हंसेंगे। जन्मदिन जब होता है, तब ऐसा लगता है कि अपनी जिंदगी का एक साल और गया। तब कोई खुशी नहीं होती है। लगता है कि चलो एक साल था, हमारा बिगड़ गया। हमने एक साल खो दिया। मैं एक ही बात चाहती हूं कि उम्र बढ़ती है या बर्थडे होता है, तब दूसरों के लिए कुछ कर सकूं। हेल्प कर सकूं या किसी को कुछ कमी पड़ रही है, तब उसे पूरा कर सकूं।

सवाल: क्या यही वजह है आप धूमधाम से जन्मदिन नहीं मनाती हैं?
लता: जी हां, मैं कभी नहीं मनाती हूं, क्योंकि मुझे जन्मदिन मनाना अच्छा नहीं लगता है। इस साल भी ऐसा ही होगा कि मैं जन्मदिन मना नहीं सकती। घर में सबकी बड़ी इच्छा थी, पर सब जानते हैं कि उस दिन अमावस्या और श्राद्ध का आखिरी दिन है। उस दिन हम अपने पितृरों की पूजा करते हैं, उन्हें खिलाते हैं। फिर उस दिन तो अपना बर्थडे मनाना तो पागलपन है।

  • ’मैं अपनी खुशी के लिए थोड़ा-बहुत गा लेती हूं, पर वह गैर-फिल्मी ज्यादा होता है। फिल्म में तो कभी-कभार ही, एकाध गाना गाती हूं, पर ऐसा नहीं जैसा पहले काम करती थी। संगीत मेरी जिंदगी है। मैं संगीत के बगैर कुछ भी नहीं हूं। घर में गा और सुन लेती हूं। नए और अच्छे-अच्छे गायकाें को सुनती हूं तो और ज्यादा खुशी होती है।’  – लता मंगेशकर

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