बिलासपुर, छत्तीसगढ़। पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है। यह स्तंभ सच को उजागर करने, भ्रष्टाचार को बेनकाब करने और जनता की आवाज को सत्ता के गलियारों तक पहुंचाने का माध्यम है। लेकिन जब सच बोलने और न्याय की मांग करने वालों की कलम को खामोश कर दिया जाता है, तो यह समाज और व्यवस्था के लिए गहरी चिंता का विषय बन जाता है।
बस्तर के नक्सली इलाके बीजापुर से अपनी जान जोखिम में डालकर पत्रकारिता करने वाले मुकेश चंद्राकर की निर्मम हत्या ने पूरे पत्रकार समाज को झकझोर दिया है। मुकेश ने 30 दिसंबर को एनडीटीवी पर 120 करोड़ की भ्रष्टाचार से जुड़ी सड़क निर्माण की खबर दिखाई थी। यही उनकी “गुस्ताखी” बन गई। उन्हें न केवल धारदार हथियार से तड़पा-तड़पाकर मारा गया, बल्कि उनके शव को सैप्टिक टैंक में छिपाकर प्लास्टर कर दिया गया। यह हत्या अपराधियों का गुरूर और भ्रष्ट सिस्टम का चेहरा बेनकाब करती है।
पत्रकारों की सुरक्षा: सवालों के घेरे में व्यवस्था
यह सिर्फ मुकेश चंद्राकर का मामला नहीं है। 2004 से 2024 के बीच भारत में 80 पत्रकारों की हत्या हो चुकी है। इनमें से आधे से ज्यादा हत्याएं 2014 के बाद हुई हैं। इनमें से हर हत्या में अपराधियों, भ्रष्ट नेताओं और प्रशासन के गठजोड़ की कहानी साफ नजर आती है।
हत्याएं जो सिस्टम के दागदार चेहरे को दिखाती हैं:
वर्ष 2024: दिलीप सैनी फतेहपुर उत्तरप्रदेश, सलमान खान राजगढ़ मध्यप्रदेश, गौरव कुशवाहा मुजफ्फरपुर बिहार, आशुतोष श्रीवास्तव जौनपुर उत्तरप्रदेश, शिव शंकर झा मुजफ्फरपुर बिहार।
वर्ष 2023: बिमल कुमार यादव अररिया रानीगंज बिहार, सुधीर सैनी सहारनपुर उत्तरप्रदेश, धंती हीरा नगाव असम, अब्दुर रहुफ आलमगीर असम
वर्ष 2022: महाशंकर पाठक सुपौल बिहार, गोकुल यादव जुमाई बिहार, सुभाष कुमार महतो बेगूसराय, बुद्धिनाथ झा मधुबनी बिहार, मनीष कुमार सिंह पूर्वी चंपारण, सुलभ श्रीवास्तव प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश।
वर्ष 2021: रमन कश्यप लखीमपुर खीरी उत्तरप्रदेश
वर्ष 2020: राकेश सिंह बलरामपुर उत्तरप्रदेश,
उदय पासवान सोनभद्र उत्तरप्रदेश, सूरज पांडे उन्नाव उत्तरप्रदेश, पराग भुइयां तिनसुकिया असम, इजरायेल मूसा चेन्नई तमिलनाडु, सैय्यद आदिल वहाब भोपाल मध्यप्रदेश, फराज असलम कौशांबी उत्तरप्रदेश, रतन सिंह बलिया फेफाना उत्तरप्रदेश, विक्रम जोशी गाजियाबाद उत्तरप्रदेश, शुभममणि त्रिपाठी उन्नाव।
वर्ष 2019: कुलदीप व्यास बूंदी कोटा राजस्थान, राजेश तोमर शाहजहांपुर उत्तरप्रदेश, चक्रेश जैन छतरपुर (शाहगढ़) मध्य्प्रदेश।
वर्ष 2018: राधेश्याम शर्मा कुशीनगर उत्तरप्रदेश, चंदन तिवारी पथलगढ़ा चतारा झारखंड, संदीप शर्मा मध्यप्रदेश, शुजात बुखारी राइजिंग कश्मीर श्रीनगर जम्मू कश्मीर, अक्षय सिंह (झाबुआ मेघनगर मध्य्प्रदेश) व्यापाल घोटाले कवरेज के दौरान संदिग्ध परिस्थियों में मौत, नवीन निष्चल एव विजय सिंह दैनिक भास्कर भोजपुर (आरा) बिहार, अच्युतानंद (डी डी न्यूज़) कैमरा मैंने दंतेवाड़ा छत्तीसगढ़।
वर्ष 2017: नित्यानंद पांडे (इंडिया अनबाउंड) ठाणे भिवंडी महाराष्ट्र, गौरी लंकेश (लंकेश पत्रिका)बेंगलुरु कर्नाटका, शांतनु भौमिक त्रिपुरा, सुदीप दत्ता भौमिक (स्यन्दन पत्रिका) वनकार्ड बोधिजंग नगर त्रिपुरा, श्याम शर्मा (इंदौर) मध्यप्रदेश, ब्रजकिशोर ब्रजेश समस्तीपुर बिहार, कमलेश जैन (पिपलीया) मध्यप्रदेश, के.जे.सिंह (मोहाली) पंजाब, राजेश मिश्र (गाजीपुर) उत्तरप्रदेश, नवीन गुप्ता (हिन्दुस्थान अखबार) कानपुर बिल्लौर उत्तरप्रदेश, राजेश श्योराण हरियाणा।
वर्ष 2016: करुणा मिश्र (जनादेश टाइम ) सुलतानपुर उत्तरप्रदेश, धर्मेंद्र सिंह रोहतास बिहार, रामचंद्र यादव दरभंगा बिहार, राजदेव रंजन (हिंदुस्तान टाइम) सिवान बिहार, किशोर दवे (जय हिंद) जूनागढ़ गुजरात, तरण मिश्रा जन संदेश, इंद्रदेव यादव उर्फ अखिलेश प्रताप (देवरिया) झारखंड।
वर्ष 2015: संजय पाठक फरीदपुर उत्तरप्रदेश,
हेमन्त यादव चंदौली उत्तरप्रदेश, करुणा मिश्रा उत्तरप्रदेश, संदीप कोठारी, फ्रीलांस,जबलपुर, मध्य प्रदेश,जगेन्द्र सिंह, फ्रीलांस, उत्तर प्रदेश, शाहजहांपुर।
वर्ष 2014: MVN शंकर, आंध्र प्रभा, आंध्र प्रदेश,
तरुण कुमार आचार्य, कनक टीवी, सम्बाद ओडिशा।
ये घटनाएं बताती हैं कि जिन पत्रकारों ने सच को समाज के सामने लाने की कोशिश की, उन्हें खामोश कर दिया गया।
सत्ता और माफिया का गठजोड़
भू-माफिया, खनिज माफिया, राजनीतिक माफिया और प्रशासनिक माफिया जैसे ताकतवर समूह अपने खिलाफ आवाज उठाने वाले पत्रकारों को निशाना बनाते हैं। सत्ता में बैठे भ्रष्ट नेता और अधिकारी इन अपराधियों को संरक्षण देते हैं, जिससे हत्यारे बेखौफ होकर अपनी साजिशों को अंजाम देते हैं।
पत्रकारिता के लिए मौजूदा खतरे
1. फिजिकल असॉल्ट और हत्या: हर साल पत्रकारों पर जानलेवा हमले बढ़ते जा रहे हैं।
2. डराने-धमकाने की राजनीति: ब्लैकमेलिंग के झूठे आरोप और कानूनी फंदों में फंसाने की घटनाएं आम हो गई हैं।
3. न्याय प्रणाली का असफल होना: अब तक मारे गए पत्रकारों के हत्यारों को सजा नहीं मिल पाई है।
4. सामाजिक दबाव: जनता का ध्यान वास्तविक मुद्दों से भटकाने के लिए मीडिया पर भी प्रेशर डाला जाता है।
मजबूत पत्रकार सुरक्षा कानून की आवश्यकता
आज सबसे बड़ी जरूरत है कि पत्रकारों की स्वतंत्रता और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक सशक्त पत्रकार सुरक्षा कानून बनाया जाए। यह कानून निम्नलिखित प्रावधान सुनिश्चित करे:
1. सुरक्षा गारंटी: पत्रकारों और उनके परिवारों के लिए सुरक्षा।
2. स्पेशल कोर्ट: पत्रकारों पर होने वाले हमलों की त्वरित सुनवाई के लिए विशेष अदालतें।
3. स्ट्रिक्ट पेनाल्टी: पत्रकारों के खिलाफ हिंसा करने वालों के लिए कड़ी सजा।
4. फ्रीडम ऑफ प्रेस का संरक्षण: स्वतंत्र और निष्पक्ष रिपोर्टिंग के लिए कानूनन सुरक्षा।
मुकेश चंद्राकर जैसे निर्भीक पत्रकार हमारी आवाज हैं। उनकी हत्या सिर्फ एक व्यक्ति की हत्या नहीं, बल्कि लोकतंत्र पर प्रहार है। ऐसे जाबांज कलमकारों को संरक्षण देने और उनके खिलाफ हो रहे अपराधों को रोकने के लिए समाज और सरकार को जागरूक होना होगा। पत्रकारों की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाए बिना हम सच और न्याय की लड़ाई नहीं जीत सकते।
आज यह सवाल हर नागरिक के सामने है:
क्या हम सच बोलने वालों की आवाज को यूं ही खामोश होते देखते रहेंगे, या उन्हें सुरक्षित और स्वतंत्र माहौल देंगे?