बिलासपुर के सिरगिट्टी थाने के अंतर्गत हाल ही में घटी एक घटना ने सूदखोरी के बढ़ते जाल और इसके खतरनाक प्रभावों को उजागर किया है। सिरगिट्टी थाने के एफआईआर के अनुसार, एक सूदखोर ने अपने गुर्गों के जरिए अपहरण कर अवैध वसूली का मामला सामने लाया। यह मामला न केवल व्यक्तिगत त्रासदी को उजागर करता है, बल्कि पूरे शहर में सूदखोरी के गहरे जड़ जमाए जाने का प्रमाण है।
सिरगिट्टी क्षेत्र और इसके आस-पास के अन्य इलाकों में सूदखोरी एक संगठित अपराध का रूप ले चुकी है। छोटे कर्मचारी, जिनमें रेलवे, बिजली विभाग और एसईसीएल के कर्मचारी और अन्य आमलोग भी शामिल हैं, इस जाल में फंसते जा रहे हैं। सूदखोर 15% से 25% तक के ऊंचे ब्याज पर पैसे उधार देते हैं। बदले में, वे उधारकर्ताओं के बैंक दस्तावेज़, पासबुक, एटीएम कार्ड और स्टांप पेपर अपने कब्जे में रख लेते हैं।
यहां तक कि उधार की गई राशि का कई गुना अधिक वसूलने के बाद भी सूदखोर अपना शिकंजा नहीं छोड़ते। उधार लेने वाले लोगों को अक्सर अपनी संपत्ति या आय का बड़ा हिस्सा गंवाना पड़ता है। यह धंधा स्लम बस्तियों और मध्यम वर्गीय परिवारों में विशेष रूप से सक्रिय है, जहां जरूरतमंद लोग मजबूरी में इस जाल में फंस जाते हैं।
गुर्गों और बाउंसर का इस्तेमाल
सूदखोर न केवल कागजी कार्यवाही से उधारकर्ताओं को फंसाते हैं, बल्कि उनके गुर्गे और बाउंसर धमकाने और वसूली के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। शहर के कई इलाकों में यह देखा गया है कि इन गुर्गों का नेटवर्क बहुत मजबूत है, जो छोटी बस्तियों और जरूरतमंद लोगों को निशाना बनाता है।
कानून और प्रशासन की नाकामी
शहर में अवैध सूदखोरी का यह गोरखधंधा प्रशासन और कानून-व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है। कई मामलों में, पीड़ितों को धमकाया जाता है और उनकी शिकायतें दर्ज नहीं की जातीं। जो मामले उजागर होते भी हैं, वे भी प्रभावशाली दबाव और भ्रष्टाचार के कारण दबा दिए जाते हैं।
समाज पर प्रभाव
इस प्रकार की सूदखोरी न केवल आर्थिक नुकसान पहुंचाती है, बल्कि लोगों की मानसिक स्थिति पर भी गहरा असर डालती है। लोग कर्ज के बोझ तले दबकर आत्महत्या जैसे कदम उठाने को मजबूर हो जाते हैं। सूदखोरी के कारण घरेलू हिंसा, पारिवारिक टूट और समाज में असुरक्षा की भावना बढ़ रही है।
समाधान की दिशा में कदम
- सख्त कानून और कार्रवाई: प्रशासन को अवैध सूदखोरी के खिलाफ सख्त कदम उठाने चाहिए और इन मामलों की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए।
- जनजागरूकता: समाज में सूदखोरी के दुष्परिणामों और कानूनी अधिकारों के प्रति जागरूकता फैलाना बेहद जरूरी है।
- माइक्रोफाइनेंस विकल्प: जरूरतमंदों को सरकारी या मान्यता प्राप्त संस्थानों से सस्ते कर्ज उपलब्ध कराने की व्यवस्था करनी चाहिए।
- सामाजिक समर्थन: पीड़ितों को मानसिक और आर्थिक सहयोग देने के लिए एनजीओ और सामाजिक संस्थाओं को सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।
सिरगिट्टी की घटना ने सूदखोरी के गहरे संकट को उजागर किया है। यह एक ऐसी समस्या है, जिसे केवल कानूनी कार्रवाई और जनसहयोग से ही खत्म किया जा सकता है। समाज को मिलकर इस जाल से खुद को और दूसरों को बचाने की दिशा में कदम उठाने होंगे। जब तक प्रशासन और जनता इस समस्या को गंभीरता से नहीं लेंगे, तब तक सूदखोरी का यह अंधकार शहर की बुनियाद को कमजोर करता रहेगा।