बिलासपुर स्थित आत्मानंद तिलक नगर स्कूल में 10वीं और 12वीं के छात्रों को वार्षिक परीक्षा से वंचित किए जाने के फैसले से छात्रों और उनके अभिभावकों में भारी आक्रोश है। स्कूल प्रशासन ने शॉर्ट अटेंडेंस (75% से कम उपस्थिति) का हवाला देते हुए दो दर्जन से अधिक छात्रों को परीक्षा से अपात्र घोषित कर दिया, जिसके बाद अभिभावकों और छात्रों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया।
छात्रों के अभिभावकों का कहना है कि स्कूल प्रबंधन ने परीक्षा से ठीक एक दिन पहले वॉट्सएप पर सूचना भेजकर यह निर्णय सुनाया। इससे छात्रों को न केवल मानसिक आघात लगा है, बल्कि उनके भविष्य को लेकर भी गंभीर चिंता उत्पन्न हो गई है।
छात्रों और उनके परिवारों ने स्कूल प्रशासन, स्थानीय अधिकारियों और नेताओं से गुहार लगाई है। वे मांग कर रहे हैं कि बच्चों को परीक्षा में बैठने का अवसर दिया जाए, क्योंकि अचानक लिए गए इस फैसले से उनका पूरा साल बर्बाद हो सकता है।
स्कूल प्रबंधन का कहना है कि यह निर्णय बोर्ड के दिशानिर्देशों के अनुसार लिया गया है। नियमों के अनुसार, छात्रों को परीक्षा में बैठने के लिए न्यूनतम 75% उपस्थिति आवश्यक है, और जो छात्र इस मानदंड को पूरा नहीं करते, वे परीक्षा में शामिल नहीं हो सकते।
अभिभावकों का कहना है कि बच्चों की उपस्थिति कम होने के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जिनमें स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं, पारिवारिक परिस्थितियाँ और अन्य अनिवार्य कारण शामिल हैं। वे स्कूल प्रशासन से अपील कर रहे हैं कि बच्चों को परीक्षा में शामिल होने का एक और अवसर दिया जाए, ताकि उनके भविष्य पर नकारात्मक प्रभाव न पड़े।
इस पूरे मामले में शिक्षा विभाग की भूमिका अहम होगी। यदि छात्रों को परीक्षा देने की अनुमति नहीं दी जाती, तो यह उनके करियर के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकता है। स्थानीय प्रशासन और शिक्षा विभाग के अधिकारी इस मामले पर क्या रुख अपनाते हैं, यह देखने वाली बात होगी।
स्कूल प्रबंधन का निर्णय नियमों के अनुरूप हो सकता है, लेकिन इसके लागू करने का तरीका छात्रों और अभिभावकों के लिए बड़ा झटका साबित हुआ है। इस मुद्दे को संवेदनशील तरीके से हल करने की आवश्यकता है, ताकि शिक्षा प्रणाली में विश्वास बना रहे और छात्रों का भविष्य सुरक्षित रह सके।