बिलासपुर। मध्यप्रदेश के दमोह में एक डॉक्टर की लापरवाही से हुई मौत ने देशभर में स्वास्थ्य महकमे की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस घटना ने एक और चौंकाने वाला मामला उजागर कर दिया है, जिसमें बिलासपुर के अपोलो अस्पताल में कार्यरत डॉक्टर नरेंद्र विक्रमादित्य की डिग्री पर गंभीर संदेह जताया गया है। बताया जा रहा है कि डॉक्टर विक्रमादित्य के पास न तो एमबीबीएस की मान्यता प्राप्त डिग्री है और न ही वह किसी भी प्रकार का तकनीकी प्रशिक्षण प्राप्त डॉक्टर हैं।
वर्ष 2006 से अपोलो अस्पताल में बतौर कार्डियोलॉजिस्ट कार्यरत डॉक्टर विक्रमादित्य ने कई जटिल ऑपरेशन किए हैं, जिनमें छत्तीसगढ़ विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद शुक्ल का ऑपरेशन भी शामिल है, जिसकी मृत्यु कथित रूप से डॉक्टर की लापरवाही के चलते हो गई थी। यह मामला अब तूल पकड़ता जा रहा है, जब कांग्रेस ने इसे लेकर मोर्चा खोल दिया है।
जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष विजय केसरवानी ने सरकंडा थाना में लिखित शिकायत दर्ज कराई है, जिसमें डॉक्टर नरेंद्र विक्रमादित्य की शैक्षणिक योग्यता की जांच की मांग की गई है। इसके साथ ही उन्होंने अपोलो प्रबंधन से यह स्पष्ट करने को कहा है कि अस्पताल में कार्यरत अन्य डॉक्टरों की डिग्रियां भी सार्वजनिक की जाएं।
आज कांग्रेस भवन में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में विजय केसरवानी ने कहा, “पिछले 18 वर्षों में इस फर्जी डॉक्टर ने न जाने कितने मरीजों का ऑपरेशन किया और कितनों की जान चली गई। ये एक संगठित लापरवाही है, जिसे किसी भी सूरत में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।”
उन्होंने पूर्व विधानसभा अध्यक्ष राजेंद्र शुक्ल के परिवार को दिए गए 20 लाख के मुआवजे की राशि को भी अपोलो अस्पताल से वापस लेने की मांग की है। साथ ही उन्होंने अपोलो अस्पताल के चेयरमैन डॉ. रेड्डी समेत सभी दोषी डॉक्टरों पर हत्या का मामला दर्ज करने की मांग की है।
विजय केसरवानी ने यह भी आरोप लगाया कि अपोलो अस्पताल राज्य के नर्सिंग होम एक्ट का पालन नहीं कर रहा है और गरीब मरीजों को आयुष्मान भारत योजना के लाभ से भी वंचित किया जा रहा है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि जल्द कार्रवाई नहीं हुई, तो कांग्रेस अपोलो अस्पताल के खिलाफ उग्र प्रदर्शन करेगी।
यह मामला न सिर्फ एक डॉक्टर की फर्जी डिग्री का है, बल्कि एक प्रतिष्ठित अस्पताल की कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रश्नचिन्ह भी खड़ा करता है। यदि आरोप सही साबित होते हैं, तो यह चिकित्सा क्षेत्र के लिए एक बहुत बड़ी चूक मानी जाएगी। अब देखना यह है कि प्रशासन इस मामले में कितनी तेजी और निष्पक्षता से कार्रवाई करता है।