बिलासपुर, मई 2025।
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर हाईकोर्ट ने एक 21 साल पुराने मामले में अहम फैसला सुनाते हुए चार किसानों को गैर-इरादतन हत्या के मामले से दोषमुक्त कर दिया है। यह मामला वर्ष 2004 में एक युवक की बिजली करंट से मौत का था, जिसे थ्रेशर मशीन में लाइन जोड़ने के लिए बुलाया गया था।
मामले के अनुसार, सीतापुर थाना क्षेत्र के तेलईधार गांव के निवासी शमीम खान एवं अन्य तीन किसानों ने अपने खेत में गेहूं की मड़ाई के लिए थ्रेशर मशीन लगाई थी। मई 2004 में उन्होंने गांव के शाहजहां नामक युवक को मशीन में बिजली कनेक्शन जोड़ने के लिए बुलाया। दोपहर के समय शाहजहां बिजली के खंभे पर चढ़ा और करंट लगने से झुलस कर नीचे गिर गया। उपचार के लिए उसे सीतापुर अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां से रायपुर ले जाते समय उसकी मौत हो गई।
घटना के बाद सीतापुर पुलिस ने जांच कर किसानों के खिलाफ आईपीसी की धारा 304ए (लापरवाही से मृत्यु) के तहत मामला दर्ज किया और न्यायालय में चालान पेश किया। वर्ष 2008 में अंबिकापुर की न्यायिक दंडाधिकारी प्रथम श्रेणी की अदालत ने चारों किसानों को छह-छह माह की सजा और 400 रुपये के अर्थदंड से दंडित किया। इसके खिलाफ सत्र न्यायालय में अपील की गई, लेकिन 2010 में वह भी खारिज कर दी गई।
इसके बाद किसानों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिस पर सुनवाई करते हुए मई 2025 में कोर्ट ने उन्हें दोषमुक्त कर दिया।
हाईकोर्ट का तर्क:
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि मृतक शाहजहां न तो प्रशिक्षित इलेक्ट्रीशियन था और न ही यह कार्य उसे करने के लिए किसी प्रकार का दबाव डाला गया था। वह एक वयस्क और संवेदनशील व्यक्ति था, जिसे बिजली के खतरों की सामान्य जानकारी होना स्वाभाविक है। इसके बावजूद उसने स्वयं ही खंभे पर चढ़कर लाइन जोड़ने का प्रयास किया, जो उसकी खुद की लापरवाही थी।
कोर्ट ने यह भी माना कि गवाहों के बयान सुनी-सुनाई बातों पर आधारित थे और मृतक के पास आवश्यक योग्यता न होने के बावजूद उसने खुद से यह काम करना स्वीकारा। इसलिए उसकी मौत के लिए याचिकाकर्ता किसान उत्तरदायी नहीं ठहराए जा सकते।
कानूनी प्रतिनिधित्व:
याचिकाकर्ता किसानों की ओर से अधिवक्ता सुश्री अनुभूति मरहास और सुश्री श्रेया जायसवाल ने प्रभावशाली पैरवी की, जिसके चलते हाईकोर्ट ने न्यायसंगत निर्णय देते हुए किसानों को राहत दी।
यह फैसला ऐसे मामलों में एक नजीर बन सकता है, जहां दुर्घटनाएं लापरवाही के बजाय स्वयं पीड़ित की जिम्मेदारी का परिणाम होती हैं। हाईकोर्ट के इस निर्णय से यह स्पष्ट होता है कि बिना पर्याप्त प्रशिक्षण और जानकारी के खतरनाक कार्य करना व्यक्ति की अपनी जिम्मेदारी है और दूसरों को इसका दोष नहीं दिया जा सकता।