Thursday, June 19, 2025
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कोयला लेवी और डीएमएफ घोटाले में फंसे अफसरों को सुप्रीम कोर्ट से सशर्त जमानत, लेकिन जेल से बाहर नहीं आ पाएंगे…

रायपुर ।  छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित कोयला लेवी घोटाले में शामिल प्रमुख आरोपी आईएएस रानू साहू, राज्य सेवा संवर्ग की अधिकारी सौम्या चौरसिया और कारोबारी सूर्यकांत तिवारी को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस दीपांकर दत्ता की डिवीजन बेंच ने इन्हें सशर्त अंतरिम जमानत दी है। हालांकि यह जमानत भी कई कड़ी शर्तों के साथ दी गई है, जिनमें सबसे अहम शर्त यह है कि जमानत के बाद वे छत्तीसगढ़ में नहीं रह सकते।

कोर्ट ने गवाहों को प्रभावित किए जाने की आशंका जताते हुए यह शर्त लगाई है। बावजूद इसके, इन आरोपियों की जेल से रिहाई अभी संभव नहीं है क्योंकि उनके खिलाफ ईओडब्ल्यू (आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा) और एसीबी (भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो) द्वारा दर्ज अन्य मामलों में जांच और चार्जशीट लंबित हैं।

डीएमएफ घोटाले में भी संगीन आरोप

हाल ही में ईओडब्ल्यू और एसीबी की जांच में सामने आए डीएमएफ (जिला खनिज न्यास निधि) घोटाले ने राज्य की ब्यूरोक्रेसी और राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। इन दोनों एजेंसियों ने आईएएस रानू साहू, सौम्या चौरसिया, सूर्यकांत तिवारी सहित 9 लोगों के खिलाफ स्पेशल कोर्ट में चार्जशीट दायर की है।

लगभग 6000 पन्नों की इस चार्जशीट में बताया गया है कि कैसे इन अधिकारियों और अन्य लोगों ने संगठित गिरोह की तरह काम करते हुए करोड़ों रुपए की अनियमितताएं कीं। चार्जशीट में आरोप है कि डीएमएफ की राशि से जुड़े टेंडर प्रक्रियाओं में भारी भ्रष्टाचार हुआ। टेंडर जारी करने, स्वीकृति दिलाने और कार्यादेश पाने के बदले में भारी कमीशन वसूला गया।

राजनीतिक संरक्षण और सफेदपोश ठेकेदार

जांच एजेंसियों का यह भी कहना है कि इस पूरे भ्रष्टाचार के नेटवर्क में राजनीतिक दलों से जुड़े सफेदपोश ठेकेदार भी शामिल थे। ये ठेकेदार अफसरों और नेताओं की मिलीभगत से न केवल मनचाहे टेंडर हासिल करते थे, बल्कि भ्रष्टाचार के एवज में मिलने वाली रकम का एक हिस्सा राजनीतिक संरक्षण के बदले देते थे। इन लोगों को भरोसा दिया गया था कि किसी भी कानूनी पचड़े में वे उन्हें “संभाल” लेंगे।

आगे की राह

अब जबकि सुप्रीम कोर्ट से सशर्त जमानत मिल चुकी है, इन आरोपियों के भविष्य को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं। एक तरफ जहां भ्रष्टाचार के मामलों में राज्य की छवि धूमिल हुई है, वहीं दूसरी ओर न्यायपालिका की सख्ती से यह संकेत भी गया है कि भ्रष्टाचार के मामलों में अब कोई भी ‘अछूत’ नहीं रहा।

सवाल यह भी उठता है कि क्या इस घोटाले की जांच और गहरी जाएगी? क्या अन्य उच्च स्तर के अधिकारियों या राजनेताओं की भूमिका भी सामने आएगी? इन तमाम सवालों के जवाब आने वाले समय में ही मिलेंगे, लेकिन इतना तय है कि यह मामला छत्तीसगढ़ की राजनीति और प्रशासनिक ढांचे पर गहरा असर डालने वाला है।

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