बिलासपुर।
4 नवम्बर 2025 की शाम 4 बजे बिलासपुर रेलवे स्टेशन के पास जो कुछ हुआ, वह किसी दर्दनाक हादसे से बढ़कर रेल प्रशासन की लापरवाही की पोल खोलने वाली घटना है। एक खड़ी मालगाड़ी से मेमू लोकल ट्रेन की टक्कर — और नतीजा, 11 निर्दोष यात्रियों की मौत, 20 से अधिक घायल। सवाल ये नहीं कि हादसा कैसे हुआ, बल्कि ये है कि इतनी बड़ी दुर्घटना के बाद भी जिम्मेदार कौन, ये तय क्यों नहीं हुआ?
रेल प्रशासन की ‘चुप्पी’ सबसे बड़ा सवाल
दुर्घटना के तीन दिन बाद भी रेलवे के किसी अधिकारी ने यह स्पष्ट नहीं किया कि गलती किसकी थी।
क्या सिग्नल फेल हुआ?
क्या मेमू ट्रेन को गलत लाइन पर जाने की अनुमति दी गई?
या फिर स्टेशन प्रबंधन ने गंभीर लापरवाही की?
रेल प्रशासन की खामोशी अब लोगों के गुस्से में बदल रही है। हर बार की तरह इस बार भी जांच और मुआवजे की घोषणा कर रेलवे अपने कर्तव्य की इतिश्री मान लेता है। लेकिन 11 लाशों का जवाब कौन देगा?
हादसा नहीं, सिस्टम की नाकामी
यह कोई साधारण दुर्घटना नहीं थी — यह रेल सुरक्षा व्यवस्था की सीधी असफलता थी।
बिलासपुर देश के सबसे व्यस्त रेल सेक्शनों में से एक है। ऐसे में खड़ी मालगाड़ी के पास लोकल ट्रेन का इस तरह टकरा जाना सिर्फ “तकनीकी त्रुटि” नहीं हो सकती। यह दिखाता है कि रेल सुरक्षा प्रणाली या तो फेल हो चुकी है या फिर उसे गंभीरता से लिया ही नहीं जा रहा।
“जांच होगी” – वही पुराना राग
रेलवे ने कहा है कि इस मामले की जांच रेलवे सुरक्षा आयुक्त (CRS) के स्तर पर कराई जाएगी। लेकिन जनता का भरोसा अब “जांच रिपोर्टों” पर नहीं, जवाबदेही तय होने पर है।
क्यों हर हादसे के बाद जांच का आश्वासन मिलता है, लेकिन नतीजे कभी सामने नहीं आते?
2018 में कटनी हादसा, 2021 में रायगढ़ दुर्घटना, और अब बिलासपुर — हर बार रेल मंत्रालय ने जांच का वादा किया, लेकिन परिणाम? सिर्फ फाइलों में बंद रिपोर्टें।
मुआवजे से नहीं मिटेगा दर्द
रेलवे ने मृतकों के परिजनों को 10 लाख, गंभीर घायलों को 5 लाख, और सामान्य घायलों को 1 लाख रुपए का मुआवजा घोषित किया है।
लेकिन क्या इन पैसों से वो मां अपने बेटे को वापस पा सकेगी जिसने रोज़गार की तलाश में ट्रेन पकड़ी थी?
क्या इन रुपयों से उस बच्चे का भविष्य लौटेगा जिसने अपने माता-पिता को इस हादसे में खो दिया?
मुआवजा इंसाफ नहीं है — जवाबदेही ही असली न्याय है।
अब वक्त है जिम्मेदारी तय करने का
अब जनता ये जानना चाहती है —
👉 सिग्नल विभाग ने क्या गलती की?
👉 स्टेशन मास्टर ने क्या अलर्ट दिया था?
👉 मेमू ट्रेन ड्राइवर को किस आधार पर क्लियरेंस मिला?
👉 और क्या रेल प्रशासन ने समय रहते कोई तकनीकी जांच की थी?
अगर जवाब “नहीं” है, तो यह हादसा लापरवाही से हुई हत्या (criminal negligence) के सिवा कुछ नहीं।
कब तक चलेगा ‘सिस्टम से बड़ी गलती नहीं’ वाला खेल?
हर बार की तरह इस बार भी रेलवे के बड़े अधिकारी मौके पर जाकर ‘निरीक्षण’ करेंगे, तस्वीरें खिंचवाएंगे, बयान देंगे — और फिर सब सामान्य हो जाएगा।
लेकिन जनता को अब बयान नहीं, जिम्मेदार चाहिए।
रेल प्रशासन को अब तय करना होगा — ट्रैक पर गाड़ियां चलेंगी या लापरवाहियां?


