बिलासपुर। ये जानकर आपको आश्चर्य होगा कि जमीन के पांव भी होते हैं, जो चलकर रोड किनारे आ जाती है और समय के साथ रकबा भी बढ़ते जाता है। ये हम नहीं कह रहे हैं, ये तो बिलासपुर तहसील कार्यालय का रिकार्ड बता रहा है। 1987 में तीन टुकड़ों में जिस 15 डिसमिल जमीन की रजिस्ट्री हुई थी, आज उसका रकबा बढ़कर 24 डिसमिल हो गया है।
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद बिलासपुर तहसील के अंतर्गत जमीन फर्जीवाड़े के कई मामले सामने आए हैं। चाहे मोपका हो, लिंगियाडीह, सरकंडा हो या फिर मंगला। हर जगह जांच बैठी और फर्जीवाड़े का खुलासा भी हुआ, पर कार्रवाई के नाम पर बड़ा कोई निर्णय अब तक नहीं आया है। यही वजह है कि राजस्व अफसर और जमीन दलाल मिलकर अब भी जमीन को खींचकर कभी सड़क किनारे ला रहे हैं तो कभी जमीन का रकबा ही बढ़ा दे रहे हैं। ताजा मामला मंगला का है, जहां पटवारी हल्का नंबर 21/33 में स्थित तीन अलग-अलग खसरा नंबर में 5-5 डिसमिल जमीन की रजिस्ट्री सत्र 1987 में दो व्यक्तियों के नाम पर हुई। इसमें दो जमीन एक व्यक्ति और एक जमीन उसकी मां के नाम पर रजिस्ट्री कराई गई। इस जमीन का 1998 में डायवर्सन हुआ। फिर उस पर निर्माण करा लिया गया। इस बीच महिला की मौत हो गई। अलबत्ता, यह जमीन फौती उठाने पर उसी व्यक्ति के नाम पर चढ़ गई, जिसने 1987 में 5-5 डिसमिल जमीन खरीदी थी। इसके साथ ही उसके नाम पर कुल 15 डिसमिल जमीन चढ़ गई। 2017-18 में उस व्यक्ति ने राजस्व अफसरों के साथ मिलकर खेल खेला। उस समय के बिलासपुर तहसीलदार ने आंख मूंदकर उसका साथ दिया और 5-5 डिसमिल रकबे में 3-3 डिसमिल और चढ़ाने का आदेश जारी कर दिया। मंगला पटवारी ने भी साहब के आदेश का पालन करते हुए रिकार्ड भी दुरुस्त कर दिया। इसके बाद उस व्यक्ति ने अधिक रकबा के साथ यह जमीन उस बिल्डर को बेच दिया, जो जमीन के फर्जीवाड़ा के मामले में पति-पत्नी समेत जेल की हवा खा चुका है।
रात के अंधेरे में होता है निर्माण, सुबह काम बंद
बिल्डर को भी पता है कि यह जमीन विवादित है। इसलिए रजिस्ट्री के बाद उसने वहां का पुराना निर्माण रात के अंधेरे में तोड़ा। अब उस जमीन पर बेसमेंट बनाने के लिए खुदाई की जा रही है। वहां दिन के उजाले में किसी तरह का काम नहीं होता। रात के 10 बजते ही जेसीबी से बेसमेंट निर्माण के लिए खुदाई शुरू की जाती है और सुबह 5 बजे तक यह सिलसिला चलते रहता है। इस बीच जेसीबी और हाइवा के शोरशराबे से आसपास रहने वाले नागरिकों की नींदें उड़ी रहती हैं।
एक नजर इधर भी: किस-किस खसरा नंबर की जमीन की रजिस्ट्री 1987 में हुई… किस तरह से डायवर्सन में किया गया फर्जीवाड़ा… तहसीलदार ने कैसे बढ़ाया जमीन का रकबा… यह जानने के लिए पढ़ते रहिए www.tazakhabar36garh.com