Wednesday, July 2, 2025
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कृषि कानूनों पर किसानों के साथ आए नवजोत सिंह सिद्धू, नज़्म सुना बोले- तख्त गिराए जाएंगे, ताज उछाले जाएंगे…

केंद्र सरकार के तीनों कृषि कानून के खिलाफ दिल्ली से सटी सीमा पर पिछले कई दिनों से जारी किसान आंदोलन खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। किसान केंद्र सरकार से जहां तीनों कानून को वापस लेने की मांग कर रहे हैं तो वहीं, सरकार उनमें संशोधन करने की बात कह रही है। इस बीच, आंदोलन कर रहे किसानों को देशभर से समर्थन मिल रहा है। पंजाब के पूर्व मंत्री और कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू ने नज्म सुनाकर किसानों का समर्थन किया है। दरअसल, उन्होंने जो नज़्म सुनाई है, वह मशहूर शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की है।

किसानों से जुड़े एक वीडियो को ट्वीट करते हुए नवजोत सिंह सिद्धू ने कहा कि अब डेरे दिल्ली में डाले जाएंगे। तख्त गिराए जाएंगे, ताज उछाले जाएंगे। वीडियो में सिद्धू कह रहे हैं, ‘दूध को भट्ठी पर रखो तो दूध का उबलना निश्चित है और किसान में आक्रोश जगा दो तो सरकारों का तख्त-ओ-ताज उछलना निश्चित है। दरबार-ए-वतन में जब एक दिन सब जाने वाले जाएंगे, कुछ अपनी कज़ा (मौत) को पहुंचेंगे, कुछ अपनी सज़ा को पाएंगे। ऐ खाक नशीनों उठ बैठो, अब वक्त कहां आ बैठा है। जब तख्त गिराए जाएंगे और ताज उछाले जाएंगे। बढ़ते चलो, चलते भी चलो। बाजू भी बहुत है और सिर भी बहुत। चलते चलो, अब डेरे दिल्ली में डाले जाएंगे। तख्त गिराए जाएंगे, ताज उछाले जाएंगे।”

पूर्व सांसद और मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने जिस वीडियो को अपने ट्विटर हैंडल पर शेयर किया है, उसमें किसान आंदोलन की कुछ तस्वीरें हैं। वीडियो में बताया गया है कि केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन कर रहे हैं। वीडियो में किसानों के ऊपर पुलिस द्वारा चलाए गए वॉटर कैनन की भी तस्वीरें हैं। वहीं, कई तस्वीरों में पुलिस और किसानों की भिड़ंत भी देखी जा सकती है।

https://twitter.com/sherryontopp/status/1335475478228942849?s=19

क्यों मशहूर है फ़ैज़ की यह नज्म?

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की यह नज्म आंदोलन के दौरान काफी सुनाई पड़ती रहती है। फिर चाहे, वह भारत हो या पाकिस्तान, विभिन्न प्रकार के आंदोलन में प्रदर्शनकारी इस नज्म को गुनगुनाते हैं। दरअसल, यह कविता फैज ने साल 1979 में सैन्य तानाशाह जिया-उल-हक के संदर्भ में लिखी थी और पाकिस्तान में सैन्य शासन के विरोध में लिखी थी। फैज अपने क्रांतिकारी विचारों के कारण जाने जाते थे और इसी कारण वे कई सालों तक जेल में रहे थे। वहीं पिछले साल, आईआईटी-कानपुर के छात्रों ने जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों के समर्थन में परिसर में शांतिमार्च निकाला था और मार्च के दौरान उन्होंने फ़ैज़ की यह कविता गाई थी। बाद में इस पर बवाल मच गया था।

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