बिलासपुर। भूमिहीन और आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के लिए भूमि और मकान का अधिकार उनके जीवनयापन का आधार होता है। सरकारी योजनाओं और नीतियों के तहत उन्हें यह अधिकार दिया जाता है ताकि वे समाज में सम्मानपूर्वक जीवन व्यतीत कर सकें। लेकिन अगर इन्हीं अधिकारों का उल्लंघन होता है, तो उनकी स्थिति और अधिक गंभीर हो जाती है। ऐसा ही एक मामला ग्राम लोहर्सी, में सामने आया है, जहाँ एक गरीब भूमिहीन परिवार की भूमि पर अवैध रूप से कब्जा कर लेने का आरोप लगाया जा रहा है।
ग्राम लोहर्सी के निवासी आवेदक अमर नाथ यादव ने प्रशासन से मदद की गुहार लगाई है, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि वर्तमान सरपंच द्वारा उनके परिवार को आवंटित भूमि से अवैध रूप से बेदखल कर दिया गया है। यह भूमि खसरा नं. 1685/5 पर स्थित थी, जिसका क्षेत्रफल 15×25 फीट था और यह उनके पिता, कन्हैया लाल यादव, को भूमिहीन होने के कारण आवंटित की गई थी। परिवार पिछले 40-45 वर्षों से इस भूमि पर निवास कर रहा था। इस दौरान, राज्य सरकार द्वारा वर्ष 2017-18 में मुख्यमंत्री आबादी पट्टा भी आवेदक के नाम पर जारी किया गया।
हालांकि, हाल ही में सरपंच द्वारा बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के इस परिवार को बेदखल कर दिया गया। आवेदक द्वारा आरोप लगाया जा रहा है कि सरपंच ने इस भूमि पर एक सामुदायिक भवन का निर्माण शुरू कर दिया, जो पूरी तरह से गैर-कानूनी और अनैतिक है। इसके अलावा, जब परिवार ने इस अवैध कार्य के खिलाफ आवाज उठाई, तो उन्हें धमकियाँ दी गईं, जिसमें गाँव से निकालने और जान से मारने की धमकी भी शामिल थी।
यह घटना कई कानूनी और नैतिक प्रश्न खड़े करती है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि बिना किसी सूचना और कानूनी प्रक्रिया के किसी गरीब परिवार को उसकी भूमि से बेदखल करना कैसे संभव हो सकता है? राज्य सरकार द्वारा दिए गए पट्टे को मान्यता नहीं देना एक गंभीर प्रशासनिक चूक है।
इसके अतिरिक्त, ऐसे मामले केवल संपत्ति विवाद से अधिक सामाजिक असमानता को उजागर करते हैं। कमजोर वर्गों के पास न तो पर्याप्त आर्थिक संसाधन होते हैं और न ही राजनीतिक ताकत, जिससे वे आसानी से प्रशासनिक और सामाजिक अत्याचार का शिकार बन जाते हैं।