Friday, October 18, 2024
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बिलासपुर: शासकीय सेवकों के लिए छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: अधूरे इस्तीफे पर नहीं की जा सकती कार्रवाई…

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट द्वारा हाल ही में दिए गए एक महत्वपूर्ण फैसले ने राज्य के सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए नई मिसाल कायम की है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि अधूरे इस्तीफे पर कोई भी कार्रवाई तब तक नहीं की जा सकती जब तक कि संबंधित शर्तों और प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया जाता। यह फैसला शासकीय सेवा से त्यागपत्र देने वाले सरकारी कर्मचारियों के लिए न्याय दृष्टांत साबित हो सकता है, और भविष्य में इस फैसले का अनुसरण किया जाएगा।

यह मामला छत्तीसगढ़ राज्य नागरिक आपूर्ति निगम के उप महाप्रबंधक शैलेंद्र कुमार खम्परिया से जुड़ा हुआ है, जिन्होंने 26 मार्च, 2016 को व्यक्तिगत कारणों का हवाला देते हुए ईमेल के माध्यम से अपना इस्तीफा दिया था। निगम ने यह कहते हुए इस्तीफा अस्वीकार कर दिया था कि ईमेल द्वारा भेजे गए त्यागपत्र में कोई विशिष्ट तिथि नहीं थी और तीन महीने का वेतन जमा नहीं किया गया था, जो इस्तीफे की एक प्रमुख शर्त थी।

हालांकि, सितंबर 2016 में निगम ने खम्परिया का इस्तीफा स्वीकार कर लिया, जिसके बाद खम्परिया ने अक्टूबर 2016 में इस्तीफा वापस लेने का अनुरोध किया। निगम ने इस अनुरोध को अस्वीकार करते हुए उन्हें सूचित किया कि उनका इस्तीफा पहले ही स्वीकार किया जा चुका है। खम्परिया ने इस निर्णय को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट का रुख किया।

हाई कोर्ट की सिंगल बेंच ने खम्परिया के पक्ष में फैसला सुनाते हुए निगम के निर्णय को गैर कानूनी करार दिया। सिंगल बेंच के फैसले में कहा गया कि इस्तीफे की शर्तें पूरी नहीं की गई थीं, इसलिए इस्तीफा प्रभावी नहीं हो सकता। निगम द्वारा बाद में स्वीकृति देना प्रक्रियात्मक रूप से दोषपूर्ण था।

नागरिक आपूर्ति निगम ने सिंगल बेंच के फैसले को डिवीजन बेंच में चुनौती दी। निगम की ओर से तर्क दिया गया कि एक बार इस्तीफा स्वीकार कर लिए जाने के बाद, कर्मचारी को उसे वापस लेने का अधिकार नहीं होता, चाहे उसे स्वीकृति की सूचना दी गई हो या नहीं। उन्होंने दावा किया कि खम्परिया का इस्तीफा प्रभावी हो गया था और तीन महीने का वेतन जमा न करना निगम की जिम्मेदारी नहीं थी।

उप महाप्रबंधक खम्परिया के वकील ने तर्क दिया कि जब इस्तीफा प्रारंभ में अधूरा होने के कारण अस्वीकार कर दिया गया था, तो बाद में उसकी स्वीकृति वैध नहीं हो सकती, खासकर जब तक आवश्यक शर्तें पूरी नहीं की जातीं।

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच, जिसमें चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु शामिल थे, ने यह फैसला सुनाया कि अधूरे इस्तीफे पर कोई भी कार्रवाई नहीं की जा सकती। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस्तीफा तब तक प्रभावी नहीं हो सकता जब तक कि सभी शर्तें और प्रक्रियाएं पूरी नहीं की गई हों। कोर्ट ने यह भी कहा कि एक बार इस्तीफा अस्वीकार कर दिए जाने के बाद, विभाग के अधिकारियों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे सुनिश्चित करें कि इस्तीफे की स्वीकृति के समय सभी शर्तें पूरी की गई हैं या नहीं।

इस फैसले से स्पष्ट है कि बिना निर्धारित प्रक्रियाओं का पालन किए, किसी शासकीय सेवक का इस्तीफा स्वीकार नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने निगम की अपील को खारिज करते हुए खम्परिया के इस्तीफे को अमान्य ठहराया और उनके पक्ष में फैसला सुनाया।

यह फैसला शासकीय सेवकों के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकता है, विशेषकर उन परिस्थितियों में जब वे इस्तीफा देने का निर्णय लेते हैं। यह आदेश न केवल शासकीय सेवाओं में पारदर्शिता और न्यायिक प्रक्रिया के महत्व को दर्शाता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा हो।

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