छह साल पहले 10 वर्षीय रितू जो डेंगू से पीड़ित थी, उपचार में लापरवाही की वजह से उसकी जान गई थी। बच्ची के बीमार होने पर पिता प्रमोद चौधरी ने उसे सेंट्रल दिल्ली के रंजीत नगर स्थ्ति एक प्राइवेट अस्पताल में एडमिट कराया था।
इलाज के दौरान रितू को गलत दवाइयां दी गई जिसकी वजह से उसकी सांसे थम गईं। अपनी मृत बेटी को न्याय दिलाने के लिए प्रमोद ने अदालत का दरवाजा खटखटाया। छह साल की लंबी लड़ाई के बाद आखिर प्रमोद के परिवार को न्याय मिला। इलाज में लापरवाही बरतने वाले अस्पताल और उसके दो डॉक्टरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाने में परिवार सफल हो पाया।
नई दिल्ली म्यूनिसिपलल काउंसिल में नौकरी करने वाले प्रमोद चौधरी दस वर्षीय बेटी की मौत की घटना को याद करते हुए बताते हैं कि डॉक्टर ने मेरी बेटी को डेंगू की भारी खुराक देनी शुरू कर दी। मैने 21 अक्तूबर 2011 को उसे अस्पताल में भर्ती कराया था। यहां उसकी हालत सुधरने के बजाय दिन पर दिन बिगड़ती ही जा रही थी। जो इंजेक्शन उसको लगाए जा रहे थे उसने रितू की तकलीफ बढ़ा दी।’
जब रितू की हालत बद से बदतर हो गई तब डॉक्टर ने 25 अक्तूबर को उसे राम मनोहर लोहिया अस्पताल अस्पताल रेफर कर दिया। उसके शरीर के अंगों ने काम करना बंद कर दिया था जिससे अगले ही दिन उसने दम तोड़ दिया।
प्रमोद ने आगे कहा,’मैं चुप बैठने वाला नहीं था, डॉक्टरों की इस लापरवाही की सजा दिलवानी ही थी। मैंने आरटीआई डाली जिससे पता चल सके कि डेंगू के मरीजों का इलाज किस तरह होता है। जो जवाब मेरे पास आया वो मेरी बेटी के इलाज से बिल्कुल ही अलग था। तब ही हम समझ गए कि रितू की जान डॉक्टरों की लापरवाही की वजह से ही गई थी। तब मैंने अदालत में जाने के बारे में सोचा।’
सभी जरूरी कागजात जमा करने के बाद प्रमोद कोर्ट गए। दिल्ली की एक कोर्ट ने 20 अगस्त को दिल्ली पुलिस को तीन महीने के अंदर आरोपियों के खिलाफ क्रिमिनल केस दर्ज करने के आदेश दिए। पुलिस का कहना है कि कोर्ट के आदेशानुसार हमने भारतीय दंड संहिता की धारा 304A/34 के तहत एफआईआर दर्ज कर ली है।