दिल्ली की एक अदालत ने कहा है कि प्रेस को कोई ऐसी टिप्पणी करने, आलोचना करने या आरोप लगाने का विशेषाधिकार नहीं है जो किसी नागरिक की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के लिए पर्याप्त हो।
कोर्ट ने कहा कि पत्रकारों को अन्य नागरिकों के मुकाबले अधिक स्वतंत्रता प्राप्त नहीं है। अदालत ने याद दिलाया कि पत्रकारों का दायित्व अधिक है क्योंकि उनके पास सूचना के प्रसार का अधिकार है।
अदालत ने एक पत्रिका के प्रबंध संपादक को उस व्यक्ति के खिलाफ निन्दात्मक लेख लिखने से रोक दिया जिसने आरोप लगाया है कि उसकी मानहानि हुई।
इसने पत्रिका के संपादक तथा एक अन्य व्यक्ति को निर्देश दिया कि वे याचिकाकर्ता को ‘प्रतीकात्मक क्षतिपूर्ति’ के रूप में क्रमश: ३० हजार और २० हजार रुपये अदा करें।
अतिरिक्त जिला न्यायाधीश राज कपूर ने कहा कि पत्रकार किसी अन्य व्यक्ति से बेहतर स्थान वाले व्यक्ति नहीं हैं। प्रेस को संविधान के तहत किसी नागिरक के मुकाबले कोई विशेषाधिकार प्राप्त नहीं हैं।
अदालत ने कहा कि प्रेस को टिप्पणी करने, आलोचना करने या किसी मामले में तथ्यों की जांच करने के कोई विशेषाधिकार प्राप्त नहीं हैं तथा प्रेस के लोगों के अधिकार आम आदमी के अधिकारों से ऊंचे नहीं हैं।
असल में, पत्रकारों के दायित्व ऊंचे हैं। आम आदमी के पास सीमित साधन एवं पहुंच होती है। शेयर दलाल एवं एक आवासीय सोसाइटी के सदस्य याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि मानहानिकारक शब्दों का इस्तेमाल कर उसकी छवि खराब करने के लिए दिसंबर २००७ में पत्रिका में एक लेख प्रकाशित किया गया।
जब उसने प्रतिवादियों को कानूनी नोटिस भेजा तो उन्होंने माफी मांगने की जगह फिर से मानहानि करने वाले शब्दों को इस्तेमाल कर मानहानि की।
हालांकि पत्रिका के संस्थापक एवं प्रबंध संपादक ने अदालत से कहा कि व्यक्ति का नाम लेकर कोई मानहानि का लेख नहीं लिखा गया और पत्रिका व्यक्ति से जुड़े दायरे में नहीं बांटी गई।
दूसरे प्रतिवादी उसी हाउसिंग सोसाइटी के तत्कालीन अध्यक्ष एवं निवासी ने आरोप लगाया कि व्यक्ति गैर कानूनी गतिविधियों में शामिल है और कहा कि उसने वहां अनधिकृत अतिक्रमण को हटाने के लिए दीवानी वाद दायर किया था।
अदालत ने हालांकि कहा कि दोनों प्रतिवादियों की मिलीभगत थी और उन्होंने पत्रिका में ऐसे लेख प्रकाशित किए जो प्रकृति में मान को नुकसान पहुंचाती है।