पेट्रोल की बढ़ती कीमतों के साथ ही केन्द्र सरकार के प्रति आमजन की नाराजगी बढ़ रही है, यदि हालात सामान्य नहीं हुए तो केन्द्र सरकार की उपलब्धियों में आग न लगा दे पेट्रोल की बढ़ती कीमतें!
हालांकि पेट्रोल तथा डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी से निशाने पर आई सरकार का कहना कि… वह उपभोक्ताओं के हितों का पूरा ख्याल रखेगी… दोनों ईंधनों की कीमत तीन वर्ष के उच्च स्तर पर पहुंच जाने के बाद पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने इस पर मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ विचार-विमर्श किया और कहा कि यह अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कीमतों में हुई वृद्धि का असर है!
प्रधान का यह भी कहना था कि… सरकार पेट्रोल और डीजल को भी वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के दायरे में लाने पर विचार करेगी जिससे इनके दाम में बहुत ज्यादा अंतर नहीं रह जाएगा… अभी इन्हें जीएसटी से बाहर रखा गया है और पहले की तरह राज्य सरकारें इस पर वैट लगाती हैं जिससे राज्य-दर-राज्य इनकी कीमतों में भारी अंतर देखने को मिलता है!
लेकिन यह जनता की समस्या का समाधान नहीं है… जनता को कारण नहीं, समस्या का निराकरण चाहिए!
पिछले दो महीने में पेट्रोल की कीमत एक बार भी कम नहीं हुई है और यह लगातार बढ़ती हुई तीन साल से ज्यादा के उच्चतम स्तर पर पहुँच गयी है. सरकार ने इस साल 16 जून से देश भर में पेट्रोल-डीजल के दाम रोजाना तय करने शुरू किये थे. इसके पीछे तर्क था कि ग्राहकों को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में दाम में आयी कमी का लाभ तत्काल मिल सकेगा… साथ ही, अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कीमतों में वृद्धि होने से तेल विपणन कंपनियाँ तत्काल दाम बढ़ाकर बोझ ग्राहकों पर डाल देंगी और उन्हें नुकसान नहीं होगा.
देश की सबसे बड़ी तेल विपणन कंपनी ऑयल इंडिया की वेबसाइट पर दी गयी जानकारी के अनुसार इस साल 13 जुलाई के बाद से 61 दिन में पेट्रोल की कीमत एक बार भी कम नहीं की गयी. पेट्रोल की कीमत दिल्ली के लिए 13 जुलाई को 63.91 रुपये तय की गयी थी जो बढ़कर 70.38 रुपये प्रति लीटर पर पहुँच गयी है. इसका मतलब साफ है कि ग्राहकों को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में आये उतार-चढ़ाव का लाभ नहीं मिल सका है!
दिल्ली में पेट्रोल की यह कीमत 15 अगस्त 2014 (72.51 रुपये प्रति लीटर) के बाद का उच्चतम स्तर है. अंतर यह है कि उस समय अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति लीटर से ऊपर थी जो इस समय 55 डॉलर के आसपास है… और यही जनता का सरकार के समक्ष सवाल है कि ऐसा क्यों?
उधर, जानकारों का मानना है कि इससे डीजल और पेट्रोल के दामों में वृद्धि होगी. दरअसल… पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने की खबरों के बीच ये तथ्य भी सामने आया था कि पेट्रोलियम कंपनियों पर 15 हजार से 25 हजार करोड़ का अतिरिक्त भार पड़ेगा जिसे वो ग्राहकों से वसूलना चाहेंगी! दरअसल पेट्रोल-डीजल की कीमतें दो प्रकार के टैक्स से तय होती हैं, एक… केंद्र सरकार की एक्साइज ड्यूटी और दो… राज्य सरकार की ओर से लगाया जाने वाला सेल्स टैक्स या वैट! ये दोनों ऐसे टैक्स हैं जोकि सरकारी राजस्व खजाने के लिए बहुत बड़ा स्रोत हैं… आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि… पेट्रोलियम कीमतों में 45 से लेकर 48 प्रतिशत तक टैक्स का हिस्सा होता है… ऐसे में कीमतों पर नियंत्रण कैसे संभव है?
उधर, कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतें भी निरंतर बढ़ती जा रही है जो… सरकारी दावों की साख न घटा दें!