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सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा…कहीं भी काम करने की कसम खाई तो तैनाती पर ऐतराज क्यों

(ताज़ाख़बर36गढ़) सुप्रीम कोर्ट ने आर्मी सर्विस कोर (एएससी) के सैन्य अधिकारियों की ऑपरेशनल यूनिट में र्पोंस्टग के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि इससे उनके किसी मौलिक अधिकार का हनन नहीं हुआ है।

जस्टिस आर.एफ. नारीमन और इंदु मलहोत्रा की पीठ ने यह आदेश एएससी के एक मेजर, लेफ्टिनेंट और एक सिपाही की रिट याचिका पर दिया। पीठ ने कहा कि इन्होंने कमीशन के दौरान शपथ खाई थी कि वे जल, थल, नभ, देश, विदेश में कहीं भी सेवा के लिए तत्पर रहेंगे। ऐसे में वे र्पोंस्टग का आदेश मानने से कैसे मना कर सकते हैं।

गैर-युद्धक होने से कम प्रमोशन की दलील
याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर ये याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया था एएससी, ईएमई और अन्य छोटी कोर नान ऑपरेशनल यूनिटें/फारमेशन हैं। उन्होंने कहा कि जब नान ऑपरेशनल (गैर-युद्धक) होने के कारण उन्हें काफी कम प्रमोशन दिया जाता है तो तैनाती के मामले में भी यह बात देखी जाए।

मेडिकल छोड़ कोई गैर-युद्धक कर्मी नहीं
केंद्र सरकार ने याचिका का विरोध किया और कहा कि स्थानांतरण सेवा का अभिन्न अंग है और कर्मचारी को यह अधिकार नहीं है कि वह अपनी पसंद की जगह पर र्पोंस्टग मांगे। केंद्र ने कहा कि सेना में मेडिकल कोर को छोड़कर कोई भी नान ऑपरेशनल या गैरयुद्धक कर्मचारी नहीं होता। हर कर्मचारी और अधिकारी को कमीशन के समय शपथ दिलवाई जाती है कि वह जल, थल, नभ और विदेश में सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहेगा। इस कसम के अनुसार, कर्मचारी कहीं भी सेवा करने के लिए कर्तव्यबद्ध है।

कमीशन के साथ शपथ
मैं (नाम) ईश्वर को साक्षी मानकर शपथ लेता हूं कि मैं संविधान, स्थापित कानून के लिए प्रतिबद्ध रहूंगा, संघीय भारत की नियमित सेना में काम के लिए कर्तव्यबद्ध रहूंगा तथा जहां कहीं भी देश, विदेश, जल, थल और नभ में मुझे आदेशित किया जाएगा मैं जाऊंगा। मैं संघीय भारत के राष्ट्रपति और अपने से उच्च किसी भी अधिकारी की कमांड का पालन करूंगा, चाहे इसमें मेरी जान भी क्यों न चली जाए।

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