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सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट सख्त: नेताओं के केस के लिए विशेष कोर्ट पर 18 राज्यों को नोटिस, अभी 12 विशेष अदालत ही बनीं

(ताज़ाख़बर36गढ़) सांसद और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों के ट्रायल के लिए विशेष कोर्ट बनाने के मामले में सुस्त रफ्तार पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई। अदालत ने बुधवार को मामले की सुनवाई करते हुए उत्तरप्रदेश, झारखंड, उत्तराखंड और तमिलनाडु समेत 18 राज्यों के मुख्य सचिवों और हाईकोर्ट के रजिस्ट्रारों से 12 अक्तूबर तक जानकारी मांगी है कि ये कोर्ट क्यों नहीं बनाए जा रहे। 

जस्टिस रंजन गोगोई की पीठ ने कहा कि नेताओं के खिलाफ आपराधिक मामलों से निपटने के लिए विशेष फास्ट ट्रैक अदालतों के गठन की निगरानी की जाएगी। कोर्ट ने यह आदेश भाजपा नेता अश्वनी उपाध्याय की रिट याचिका पर दिए।

पीठ ने कहा कि दिल्ली, जिसने दो विशेष अदालतें गठित कर दी हैं और आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, केरल, तेलंगाना, मध्यप्रदेश, बिहार, बंगाल तथा महाराष्ट्र की ओर से ही जानकारी दी गई है। अन्य राज्यों ने इस संबंध में जानकारी नहीं दी है। पीठ ने केंद्र सरकार से पूछा ऐसे कौन से राज्य हैं, जहां फास्ट ट्रैक कोर्ट नहीं बने, ऐसे कौन से राज्य है, जिन्होंने फास्टट्रैक कोर्ट को लेकर रुचि नहीं दिखाई है। 

इससे पहले हलफनामे में केंद्र ने कोर्ट को बताया कि अभी तक दिल्ली समेत 11 राज्यों से मिले आंकडों के मुताबिक फिलहाल सांसद विधायकों के खिलाफ 1,233 मुकदमे 12 विशेष फास्टट्रैक कोर्ट में ट्रांसफर किए गए है। इनमें से 136 मुकदमों का निपटारा कर दिया गया है।

दूसरी ओर 1,097 मामले अदालतों में लंबित हैं। इस वक्त बिहार में सबसे ज्यादा 249, केरल में 233 मामले और पश्चिम बंगाल में 226 मुकदमे लंबित हैं। इन राज्यों ने 12 फास्ट ट्रैक कोर्ट में 6 सेशन कोर्ट और पांच मजिस्ट्रेट कोर्ट हैं। 

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि अब तक कई राज्यों और हाइकोर्ट ने जन प्रतिनिधियों के खिलाफ गंभीर अपराध वाले मुकदमों की संख्या, स्थिति आदि का ब्योरा नहीं दिया है, जबकि सरकार ने कई बार पत्र भी भेजा है।

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