वैसे इस देश में ये आम बात है कि डाॅक्टर किसी दवा या फिर कोई मेडिकल रिपोर्ट लिखकर दे तो उसे समझना लोगों के लिए बेहद ही कठिन होता है. इतना ही नहीं कई बार तो ऐसा होता है कि लोग उस दवा के बारे में लाख कोशिश के बावजूद भी समझ ही नहीं पाते. डाॅक्टर की खराब और न समझ में आने वाली राइटिंग को लेकर हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक डॉक्टर पर खराब लिखावट के चलते पांच हजार रुपये जुर्माना ठोका है.
कोर्ट के मुताबिक इसकी वसूली उसके वेतन से की जाएगी. कोर्ट ने डॉक्टर को तीन हफ्ते के भीतर जुर्माना अवध बार एसोसिएशन की लाइब्रेरी में जमा करने का आदेश दिया है. साथ ही आदेश की प्रति प्रमुख सचिव चिकित्सा स्वास्थ्य एवं डीजी चिकित्सा एवं स्वास्थ्य को भिजवाई है. यह आदेश जस्टिस अजय लांबा और जस्टिस संजय हरकौली की बेंच ने पप्पू सिंह आदि की ओर से दायर एक रिट याचिका को खारिज करते हुए पारित किया.
कोर्ट ने कहा कि बार-बार आदेश दिया जा रहा है कि डॉक्टर अपनी लिखावट में सरल शब्दों का प्रयोग करें परंतु आए दिन ऐसे वाकये सामने आ रहे हैं जिनमें डॉक्टरों की लिखावट को समझ पाना न्यायाधीशों, सरकारी और प्राइवेट वकीलों के लिए कठिन होता जा रहा है. कई बार चेतावनी के बावजूद डॉक्टरों पर कोई खास असर नहीं दिख रहा है.
गौरतलब है कि याचीगणों ने अपने खिलाफ सीतापुर के तंबौर थाने पर हत्या के प्रयास और एससी-एसटी एक्ट के तहत दर्ज एक प्राथमिकी को चुनौती दी थी. 25 सितंबर को याचिका पर सुनवाई करते समय कोर्ट को याचीगणों की ओर से पेश इंजरी रिपोर्ट पढ़ने में नहीं आ रही थी. डॉक्टर रिपोर्ट तैयार करने वाले डॉ. पीयूष कुमार गोयल जब कोर्ट में आए तो उन्होंने उक्त इंजरी रिपोर्ट की कॉपी दी.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कोर्ट ने जब उनसे पूछा कि क्या उन्हें डीजी चिकित्सा एवं स्वास्थ्य के सर्कुलर के बारे में जानकारी नहीं है तो उन्होंने कहा कि जानकारी तो है परंतु काम की अधिकता के कारण उनसे ऐसा हो गया. चलिए अब आपको बताते हैं कि जो कोर्ट ने सर्कुलर जारी किया है वो क्या है. बता दें कि कोर्ट के एक आदेश के अनुपालन में डीजी चिकित्सा एवं स्वास्थ्य ने आठ नवंबर, 2012 को सर्कुलर जारी कर प्रदेश के सभी सरकारी डॉक्टरों को आदेश दिया था कि मेडिको लीगल रिपोर्ट तैयार करते समय इस बात का ध्यान रखा जाए कि लेखनी सुस्पष्ट हो ताकि उसे जज, सरकारी वकील या डिफेंस के वकीलों द्वारा पढ़ा जा सके.