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स्वास्थ्य

फिटनेस और हेल्थ एप बीमा का प्रीमियम घटाने में मददगार, 5 हजार रुपये की मिल सकती है छूट


आज की भागदौड़ और तनाव भरी जीवनशैली में स्वास्थ्य बीमा लेना जरूरत बन गया है। सेहत बेहतर रहती है तो इसके बीमा का प्रीमियम भी कम लगता है लेकिन बहुत कम लोगों को पता होगा कि फिटनेस मापने वाले गैजेट और मोबाइल एप भी आपके प्रीमियम को घटाने में मददगार हो सकते हैं।

दरअसल, कई बीमा कंपनियों ने हाल में फिटनेस टेक फर्म्स से हाथ मिलाकर उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य की जानकारी लेना शुरू कर दिया है। इन टेक फर्म्स की ओर जारी फिटनेस गैजेट्स या मोबाइल एप में सेहत को लेकर आपकी सक्रियता का पूरा डाटा संचित रहता है। इससे बीमा कंपनियों को यह जानने में मदद मिलती है कि कौन सा उपभोक्ता अपनी सेहत को लेकर सजग है और उसे बेहतर बनाए रखने को मेहनत करता है। इस आधार पर बीमा कंपनियां संबंधित उपभोक्ता को रिस्क कम होने के आधार पर प्रीमियम में छूट भी देती हैं।

कई कंपनियों ने मिलाया हाथ

मैक्स बूपा हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड ने गत फरवरी में फिटनेस टेक्नोलॉजी फर्म जीओक्यूआईआई और हेल्थकेयर कंपनी प्रैक्टो व 1एमजी से हाथ करार किया है। इसके बाद कंपनी ने डिजिटली इनएक्टिव स्वास्थ्य बीमा योजना ‘मैक्स बूपा गोएक्टिव’ लॉन्च किया। यह उत्पाद ऐसे उपभोक्ताओं के लिए है जो फिटनेस एप या गैजेट्स का इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा अपोलो म्यूनिक हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड और आदित्य बिड़ला हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड ने भी इसी तरह के बीमा उत्पाद बाजार में उतारे हैं।

उपभोक्ता-कंपनी दोनों को लाभ

इस करार का लाभ बीमा कंपनियों और उपभोक्ताओं को दोनों होगा। अपनी सेहत का ख्याल रखने वाले उपभोक्ताओं को जहां रिवार्ड के तौर प्रीमियत में छूट मिलेगी, वहीं बीमा कंपनियों को उनके उपभोक्ताओं की सेहत अच्छी रहने पर कम क्लेम का भुगतान करना होगा। इसके अलावा फिटनेस गैजेट्स व एप बनाने वाली कंपनियों को भी अपने उत्पादों की बिक्री बढ़ाने में मदद मिलेगी।

ऐसे तय होती है छूट

बीमा कंपनियां फिटनेस टैकर्स के माध्यम से उपभोक्ताओं के व्यवहार का अध्ययन करती हैं और जो स्वाथ्यकर जीवन बिताता है, उसे छूट का ऑफर देती हैं। इसके लिए उपभोक्ताओं को ‘हेल्थ स्कोर’ दिया जाता है, जो डाटा के आधार पर तय होता है। जिसका जितना ज्यादा स्कोर, उतनी अधिक छूट का लाभ।

कुछ चुनौतियां भी बरकरार

– उपभोक्ताओं की निजता बरकरार रखना सबसे बड़ी चुनौती।

– गैजेट्स कंपनियां अपने उपभोक्ताओं की सिर्फ सेहत संबंधी आंकड़े ही उपलब्ध कराएं।

– उपभोक्ता के किसी विशेष परिस्थिति में सेहत खराब होने का डाटा भी कंपनी के पास होगा और उस पर ज्यादा प्रीमियम का बोझ आ सकता है।

– ऐसे गैजेट्स के हैक होने का खतरा बहुत ज्यादा होता है, जिससे उपभोक्ता और कंपनी दोनों को नुकसान होगा।

– अधिकतर फिटनेस गैजेट चिकित्सीय रूप से प्रमाणित नहीं होते।

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