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प्रसिद्ध समाजसेवी और प्रोफेसर पीडी खेड़ा की तबीयत बिगड़ी, अपोलो में भर्ती, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इलाज कराने कलेक्टर को दिया निर्देश, जानिए कौन है प्रोफेसर खेड़ा…

बिलासपुर/ प्रसिद्ध समाजसेवी और प्रोफेसर पीडी खेड़ा की तबीयत अचानक बिगड़ गई है। उन्हें इलाज के लिए अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया है। प्रोफेसर खेड़ा की तबीयत खराब होने की जानकारी मिलते ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने चिंता जाहिर की है। उन्होंने उनके इलाज में किसी तरह की कोई कमी नहीं होने के निर्देश कलेक्टर संजय अलंग को दिए हैं। प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री अटल श्रीवास्तव और कलेक्टर अलंग ने शनिवार को अपोलो पहुंचकर प्रोफेसर की कुशलक्षेम पूछी। कलेक्टर ने अपोलो प्रबंधन को उनके इलाज में गंभीरता बरतने की हिदायत दी है। प्रदेश महामंत्री श्रीवास्तव का कहना है कि प्रोफेसर खेड़ा जैसे विरले इंसान मिलते हैं। उन्होंने सभी तरह की भौतिक सुविधाओं को त्यागकर अचानकमार जैसे जंगल को सेवा के लिए चुना। उन्होंने अपना पूरा जीवन आदिवासी बच्चों को संस्कारी और शिक्षित बनाने के लिए समर्पित कर दिया है। सरकार और स्थानीय प्रशासन उनके इलाज में किसी तरह की कोई कसर नहीं छोड़ेगी।

जानिए कौन है प्रोफेसर खेड़ा

दिल्ली यूनिवर्सिटी से रीडर के पद पर सेवानिवृत्त प्रो. पीडी खेड़ा 1980 के बाद से अचानकमार क्षेत्र में बैगाओं के लिए काम कर रहे हैं। पेंशन की 80 प्रतिशत राशि वे बैगाओं के बीच ही खर्च कर देते हैं। ग्राम लमनी में 8 बाई 10 की कच्ची झोपड़ी में बैगाओं के बीच रहने वाले प्रो. खेड़ा की दिनचर्या बैगा बच्चों को नहलाने-धुलाने से शुरू होती। 89 वर्ष की उम्र में भी अपने हाथ से भोजन बनाने के बाद वे चिर्री बस में बैठकर छपरवा जाते, जहां अभयारण्य शिक्षण समिति छपरवा द्वारा संचालित हायर सेकेंडरी स्कूल में चार पीरिएड शिक्षण का कार्य करते। एक पीरिएड एक घंटे का होता है। आस-पास के बैगा बाहुल्य 15 गांवों में हायर सेकेंडरी स्कूल की समस्या को देखते हुए अभयारण्य शिक्षण समिति छपरवा का गठन कर 2008 में यह स्कूल खोला गया था। 2014 तक जहां मानदेय पर पढ़ाने वाले शिक्षकों के वेतन की व्यवस्था नहीं होने से चार शिक्षकों को अपनी पेंशन से मानदेय दे रहे थे।

क्षेत्र रिजर्व होने से बैगा चिंतित

अचानकमार को टाइगर रिजर्व क्षेत्र घोषित करने की घोषणा के बाद बैगा चिंतित हैं। बैगा जंगली जानवरों का शिकार करते हैं। वे शराब पीने के आदी हैं। पर एटीआर में जब शिकार ही प्रतिबंधित है तो उन्हें खाने को क्या मिलेगा? सिर्फ शराब पीने से उनका शरीर नष्ट हो रहा है। प्रो. खेड़ा का मानना था कि शिकार के प्रतिबंध के बाद बैगाओं को सरकार सफेद सूअर पालने दे तो उनके खान-पान का वैकल्पिक प्रबंध हो सकता है। बैगाओं की नसबंदी पर उन्होंने कहा जब कानून बना है कि इनकी नसबंदी नहीं होगी तब इनकी नसबंदी कैसे हो रही है, यह सरकार को अपने आप से पूछना होगा। बीच-बीच में नसबंदी के मामले प्रकाश में आते रहे हैं पर कार्रवाई न होने से बैगाओं की नसबंदी आम बात हो गई है। उन्होंने आरोप लगाया कि बैगा विकास अभिकरण के तहत चलाई जा रही योजनाओं की कभी समीक्षा ही नहीं की गई।

आसपास के गांवों में स्वास्थ्य केंद्र तक नहीं
अचानकमार अभयारण्य के ग्राम छिरहिटा, बिरारपानी, रंजकी, महामाई, बोईरहा, अतरिया, तिलईडबरा, लमनी, छपरवा, बिंदावल, अचानकमार, सारसडोल, सुरही, कटामी, बम्हनी, निवासखार, पटपहरा में बड़ी संख्या में बैगा जनजाति के लोग रहते हैं। यहां एक स्वास्थ्य केंद्र तक नहीं है तो डाक्टर कहां से होंगे। न नर्स है…न मलेरिया वर्कर…और सरकार कहती है हमने बैगाओं को संरक्षित करने के लिए गोद ले रखा है। अब क्षेत्र को टाइगर रिजर्व क्षेत्र घोषित कर उन्हें विस्थापन के नाम पर जंगल से बेदखल करना चाहती है।

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