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जानिए, वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने क्यों कहा- ‘न्यूज़ चैनल देखना कुछ दिनों के लिए बंद कर दिजिये’?

अगर आप अपनी नागरिकता को बचाना चाहते हैं तो न्यूज़ चैनलों को देखना बंद कर दें। अगर आप लोकतंत्र में एक ज़िम्मेदार नागरिक के रूप में भूमिका निभाना चाहते हैं तो न्यूज़ चैनलों को देखना बंद कर दें।

अगर आप अपने बच्चों को सांप्रदायिकता से बचाना से बचाना चाहते हैं तो न्यूज़ चैनलों को देखना बंद कर दें। अगर आप भारत में पत्रकारिता को बचाना चाहते हैं तो न्यूज़ चैनलों को देखना बंद कर दें। न्यूज़ चैनलों को देखना ख़ुद के पतन को देखना है।

मैं आपसे अपील करता हूं कि आप कोई भी न्यूज़ चैनल न देखें। न टीवी सेट पर देखें और न ही मोबाइल पर। अपनी दिनचर्या से चैनलों को देखना हटा दीजिए। बेशक मुझे भी न देखें लेकिन न्यूज़ चैनलों को देखना बंद कीजिए।

मैं यह बात पहले से कहता रहा हूं। मैं जानता हूं कि आप इतनी आसानी से मूर्खता के इस नशे से बाहर नहीं आ सकते लेकिन एक बार फिर अपील करता हूं कि बस इन ढाई महीनों के न्यूज़ चैनलों को देखना बंद कर दीजिए।

जो आप इस वक्त चैनलों पर देख रहे हैं, वह सनक का संसार है। उन्माद का संसार है। इनकी यही फितरत हो गई है। पहली बार ऐसा नहीं हो रहा है।

जब पाकिस्तान से तनाव नहीं होता है तब ये चैनल मंदिर को लेकर तनाव पैदा करते हैं, जब मंदिर का तनाव नहीं होता है तो ये चैनल पद्मावति फिल्म को लेकर तनाव पैदा करते हैं जब फिल्म का तनाव नहीं होता है तो ये चैनल कैराना के झूठ को लेकर हिन्दू-मुसलमान में तनाव में पैदा करते हैं। जब कुछ नहीं होता है तो ये फर्ज़ी सर्वे पर घंटों कार्यक्रम करते हैं जिनका कोई मतलब नहीं होता है।

क्या आप समझ पाते हैं कि यह सब क्यों हो रहा है? क्या आप पब्लिक के तौर पर इन चैनलों में पब्लिक को देख पाते हैं? इन चैनलों ने आप पब्लिक को हटा दिया है।

कुचल दिया है। पब्लिक के सवाल नहीं हैं। चैनलों के सवाल पब्लिक के सवाल बनाए जा रहे हैं। यह इतनी भी बारीक बात नहीं है कि आप समझ नहीं सकते। लोग परेशान हैं।

वे चैनल-चैनल घूम कर लौट जाते हैं मगर उनकी जगह नहीं होती। नौजावनों के तमाम सवालों के लिए जगह नहीं होती मगर चैनल अपना सवाल पकड़ा कर उन्हें मूर्ख बना रहे हैं।

चैनलों को ये सवाल कहां से आते हैं, आपको पता होना चाहिए। ये अब जब भी करते हैं, जो कुछ भी करते हैं, उसी तनाव के लिए करते हैं जो एक नेता के लिए रास्ता बनाता है। जिनका नाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी है।

न्यूज़ चैनलों, सरकार, बीजेपी और मोदी इन सबका विलय हो चुका है। यह विलय इतना बेहतरीन है कि आप फर्क नहीं कर पाएंगे कि पत्रकारिता है या प्रोपेगैंडा है। आप एक नेता को पसंद करते हैं। यह स्वाभाविक है और बहुत हद तक ज़रूरी भी।

लेकिन उस पसंद का लाभ उठाकर इन चैनलों के द्वारा जो किया जा रहा है, वो ख़तरनाक है। बीजेपी के भी ज़िम्मेदार समर्थकों को सही सूचना की ज़रूरत होती है। सरकार और मोदी की भक्ति में प्रोपेगैंडा को परोसना उस समर्थक का भी अपमान है।

उसे मूर्ख समझना है जबकि वह अपने सामने के विकल्पों की सूचनाओं के आधार पर किसी का समर्थन करता है। आज के न्यूज़ चैनल न सिर्फ सामान्य नागरिक का अपमान करते हैं बल्कि उसके साथ भाजपा के समर्थकों का भी अपमान कर रहे हैं।

मैं भाजपा समर्थकों से भी अपील करता हूं कि आप इन चैनलों को न देखें। आप भारत के लोकतंत्र की बर्बादी में शामिल न हों। क्या आप इन बेहूदा चैनलों के बग़ैर नरेंद्र मोदी का समर्थन नहीं कर सकते?

क्या यह ज़रूरी है कि नरेंद्र मोदी का समर्थन करने के लिए पत्रकारिता के पतन का भी समर्थन किया जाए? फिर आप एक ईमानदार राजनीतिक समर्थक नहीं हैं।

क्या श्रेष्ठ पत्रकारिता के मानकों के साथ नरेंद्र मोदी का समर्थन करना असंभव हो चुका है? भाजपा समर्थकों, आपने भाजपा को चुना था, इन चैनलों को नहीं। मीडिया का पतन राजनीति का भी पतन है। एक अच्छे समर्थक का भी पतन है।

चैनल आपकी नागरिकता पर हमला कर रहे हैं। लोकतंत्र में नागरिक हवा में नहीं बनता है। सिर्फ किसी भौगोलिक प्रदेश में पैदा हो जाने से आप नागरिक नहीं होते।

सही सूचना और सही सवाल आपकी नागरिकता के लिए ज़रूरी है। इन न्यूज़ चैनलों के पास दोनों नहीं हैं। प्रधानमंत्री मोदी पत्रकारिता के इस पतन के अभिभावक हैं। संरक्षक हैं।

उनकी भक्ति में चैनलों ने ख़ुद को भांड बना दिया है। वे पहले भी भांड थे मगर अब वे आपको भांड बना रहे हैं। आपका भांड बन जाना लोकतंत्र का मिट जाना होगा।

भारत पाकिस्तान तनाव के बहाने इन्हें राष्ट्रभक्त होने का मौका मिल गया है। इनके पास राष्ट्र को लेकर कोई भक्ति नहीं है। भक्ति होती तो लोकतंत्र के ज़रूरी स्तंभ पत्रकारिता के उच्च मानकों को गढ़ते।

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