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बिलासपुर लोकसभा: सांसद लखनलाल साहू की निष्क्रियता बड़ा मुद्दा…साव की राह नहीं दिख रही आसान…ग्रामीण कह रहे- 5 साल तक भुगत लिए…अब आया है हमारा समय…ये वोटर अब भी प्रभावित… पढ़िए अखलाख खान की ग्राउंड रिपोर्ट…

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ प्रदेश की हाईप्रोफाइल लोकसभा सीटों में से एक बिलासपुर पर सभी की नजर है। प्रदेश के सभी सांसदों की तरह यहां के सांसद लखनलाल साहू का टिकट काटकर बीजेपी ने पेशे से वकील अरुण साव पर दांव लगाया है तो कांग्रेस ने सीएम भूपेश बघेल के करीबी अटल श्रीवास्तव पर भरोसा जताया है। यह चर्चा आम है कि यहां से अटल श्रीवास्तव एक चेहरा है, लेकिन चुनाव तो सीएम भूपेश बघेल लड़ रहे हैं। पांच साल तक सांसद साहू की निष्क्रियता वोटरों की जुबान पर है। यही वजह है कि बीजेपी से सांसद प्रत्याशी अरुण साव की लोकसभा पहुंचने की राह थोड़ी कठिन लग रही है। दूसरी ओर, राज्य की कांग्रेस सरकार के तीन महीने के बेहतर परफार्मेंस की वजह से अटल श्रीवास्तव को वोटरों की ओर से बेहतर प्रतिसाद मिल रहा है।

आठ विधानसभा क्षेत्र मस्तूरी, बिल्हा, बेलतरा, बिलासपुर, कोटा, तखतपुर, मुंगेली और लोरमी बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं। हर विधानसभा की समस्याएं और जरूरतें अलग-अलग हैं। मसलन, तखतपुर, बिल्हा और पथरिया क्षेत्र में गर्मी के सीजन में पानी के लिए लोग तरसते हैं। विधायक और सांसद वो इस उम्मीद से चुनते हैं, ताकि चुनाव जीतने के बाद पानी की समस्या से उन्हें निजात मिल सके। ताजाखबर36गढ़.कॉम की टीम ने सभी आठ विधानसभा क्षेत्र का जायजा लिया। वोटरों के मन को सांसद साहू की कार्यशैली और उनके कामकाज की कसौटी पर तौला तो कमोबेश हर जगह सांसद साहू की निष्क्रियता की चर्चा ही सुनाई दी।

बिल्हा विधानसभा: ताजाखबर36गढ़ की टीम ने बिल्हा विधानसभा क्षेत्र के नगपुरा, धमनी, कड़ार, सेंवार, हरदीकला, कोरमी, बरतोरी, लोहदा, झल्फा, पथरिया, ढनढनह, कोकड़ी कुकुसदा, बदरा, चंदली आदि गांवों का दौरा किया। हर गांव के ग्रामीण दोनों राष्ट्रीय पार्टियों भाजपा और कांग्रेस के बड़े लीडरों के नाम जानते हैं, लेकिन सांसद लखन लाल साहू का नाम पढ़े-लिखे मतदाताओं को ही मालूम है। बिल्हा विधानसभा क्षेत्र के गांवों में सड़क की समस्या तो नहीं है, लेकिन बुनियादी सुविधाएं जैसे पानी, राशन, पेंशन को लेकर थोड़ी शिकायत है। ग्रामीणों को सबसे ज्यादा शिकायत यह है कि उनके गांव में पांच साल में एक या दो बार ही सांसद आए, लेकिन गांव को ऐसी सौगात नहीं दी, जिसे याद रखा जाए।

मस्तूरी विधानसभा: टीम ने मस्तूरी विधानसभा क्षेत्र के खैरा, जयरामनगर, कोहरौदा, पचपेड़ी, बकरकुदा, धनगवां, सरगवां, खोरसी, मुड़पार, परसदा वेद, चिल्हाटी आदि गांवों का दौरा किया। अभी लगभग गांवों में पीएम आवास का काम चल रहा है। पीएम आवास को लेकर वोटर बीजेपी सरकार के खिलाफ बात कर रहे हैं। उनका कहना है कि आवास के नाम पर एक लाख 20 हजार रुपए तो आ रहे हैं, लेकिन ठेका प्रथा की वजह से उनका आवास स्तरहीन बन रहा है। गुणवत्ता की बात करने पर ठेकेदार दो टूक कहता है कि सरकारी आवास ऐसे ही बनेंगे। नहीं बनवाना है तो लिखकर दे दीजिए। आवास छीन जाने के डर से ग्रामीण मौन साध ले रहे हैं। सांसद लखन लाल साहू के बारे में ग्रामीण सिर्फ इतना जानते हैं कि वो भाजपा से हैं। कामकाज के बारे में कहते हैं कि उनसे ही पूछ लीजिए कि उन्होंने हमारे गांव के लिए क्या किया है।

बेलतरा विधानसभा: बेलतरा, खैरा (लगरा), लगरा, पंधी, धनिया, लुतरा, कुकदा, लखराम, खमतराई, बहतराई, सेलर आदि गांवों के ग्रामीण भी सांसद लखनलाल साहू के कामकाज को लेकर संतुष्ट नहीं दिखे। उनका कहना था कि आसपास के गांवों में आयोजित कार्यक्रम में उन्हें शामिल होते हुए देखा गया है, लेकिन उनके गांव के लिए उन्होंने कोई खास काम नहीं किया, जिससे उनका नाम याद रखा जाए। कुछ गांवों में सांस्कृतिक मंच जरूर दिए गए हैं।

तखतपुर विधानसभा: यहां के जरेली, कुरेली, नगोई, खम्हरिया, बहतराई, कोनी, सैदा, अमेरी, लाखासार, सागर आदि गांवों का जायजा लिया गया। अधिकांश गांवों की गली कच्ची है। ग्रामीणों का कहना था कि रोड मांग-मांगकर थक गए, पर सिर्फ आश्वासन ही मिला। बरसात में कीचड़ के बीच चलना उनकी मजबूरी है। कुछ गांवों के ग्रामीणों ने सांसद साहू से इस समस्या से निजात दिलाने की गुहार लगाई थी। सांसद ने उन्हें भरोसा दिलाया था, लेकिन पांच साल बाद भी उनकी मांग पूरी नहीं हुई। यहां के ग्रामीण कहते हैं कि पांच साल तो भुगत लिए। अब उनकी बारी है।

मुंगेली विधानसभा: इस विधानसभा के जरहागांव, बरदुली, दशरंगपुर के आसपास के गांवों का तो ज्यादा विकास नहीं हुआ है, लेकिन यहां के वोटर सांसद साहू के प्रति सहानुभूति रखते हैं। उनका कहना है कि क्षेत्र बहुत बड़ा है। इसलिए एक आदमी सभी तरफ ध्यान नहीं दे पाता। यही सांसद साहू के साथ हुआ। उन्होंने यह बात जरूर स्वीकार की कि निष्क्रियता के चलते ही उनका टिकट कटा, लेकिन उन्हें अब भी भाजपा के कामकाज पर ही भरोसा है।

कोटा और लोरमी विधानसभा: दोनों विधानसभा में अभी जोगी कांग्रेस के विधायक हैं। इससे साफ जाहिर है कि यहां की जनता ने विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों प्रमुख दलों को नकार दिया। राज्य की कांग्रेस सरकार के तीन महीने के कामकाज के चलते वोटर अब सोचने को मजबूर हो गए हैं। वोटरों का कहना है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों ने सभी वर्गों के हितों को ध्यान में रखकर घोषणा पत्र जारी किया है। एक दल गरीबों को हर साल 72 हजार रुपए देने की बात कह रहा है तो दूसरे दल ने किसानों को 6 हजार के साथ ही पेंशन देने का वादा किया है। राज्य सरकार की कर्जमाफी और धान का समर्थन मूल्य 25 सौ रुपए भी उनकी जेहन में है। वोटरों का कहना है कि अभी थोड़ा वक्त है। किसी को चुनने से पहले वे इस बात पर मंथन करेंगे कि कौन अपना वादा पूरा कर सकता है।

बिलासपुर विधानसभा: इन सातों विधानसभाओं से बिलासपुर की तासीर अलग है। यहां शहरी और पढ़े-लिखे मतदाता निवास करते हैं। मेहनतकश मजदूरों से लेकर नौकरीपेशा, व्यापारी और पूंजिपतियों की संख्या भी अधिक है। हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनाव से पहले बिलासपुर को बीजेपी का गढ़ माना जाता था। यहां से लगातार चार बार अमर अग्रवाल विधायक रहे। पांचवीं बार उन्हें कांग्रेस के शैलेश पांडेय ने घर बिठा दिया। विधानसभा चुनाव की तरह लोकसभा चुनाव में भी सीवरेज, सड़क, पेयजल आदि मुद्दे हैं। सांसद लखनलाल साहू भी बिलासपुर में रहते हैं, लेकिन यहां के वोटर भी यह नहीं बता पाए कि सांसद ने बिलासपुर के लिए ऐसा क्या खास काम किया है, जिसे गिनाया जाए। यहां जितने भी काम हुए हैं, वो राज्य की पूर्ववर्ती भाजपा सरकार और पूर्व मंत्री अग्रवाल की देन है। बिलासपुर के लोग अटल श्रीवास्तव से भली-भांति परिचित हैं और लोगों को अब भी याद है कि भाजपा सरकार के कार्यकाल में अटल ने कांग्रेस भवन में पुलिस के डंडे खाए थे। लोगों का कहना है कि अटल पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं। इसलिए उनकी उपलब्धि कुछ नहीं है, लेकिन भूपेश सरकार ने तीन माह में जिस तरह से लोगों के हित में फैसले लिए हैं, उससे अटल का दावा मजबूत दिख रहा है।

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