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बिलासपुर लोकसभा: जोगी कांग्रेस के नेताओं का कांग्रेस में शामिल होने के क्या हैं सियासी मायने…कांग्रेस प्रत्याशी अटल श्रीवास्तव को इससे कितना पहुंचेगा लाभ…पढ़िए राजनीतिक विश्लेषण…

बिलासपुर। वर्तमान समय में छत्तीसगढ़ की राजनैतिक फ़िज़ा की बात करें तो यह स्पष्ट है कि विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बड़े राजनैतिक क्षत्रप बनकर उभरे हैं और उनके इस प्रभाव में जिनका पराभव होता दिख रहा है, वो हैं प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री और छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के सुप्रीमो अजीत जोगी।

जोगी ने विधानसभा चुनाव 2018 के पूर्व अपनी राजनैतिक पार्टी खुद के बूते खड़ी की थी। यदि बिलासपुर जिले की बात की जाए तो यह जिला उनके सर्वाधिक प्रभाव में रहा। जिले के लगभग दर्जनभर कांग्रेसी नेता जो विधानसभा स्तर पर अपना गहरा प्रभाव रखते थे, उनके साथ उनकी पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ जे में जा मिले। इनमें लोकसभा क्षेत्र में शामिल और अपने विधानसभा क्षेत्र में गहरा प्रभाव रखने वाले पूर्व विधायक धर्मजीत सिंह, बिल्हा से विधायक रहे सियाराम कौशिक, जोगी की पत्नी और विधायक डॉ. रेणु जोगी, पूर्व विधायक चंद्रभान बारमते, बसपा से तख़तपुर विधानसभा का 2013 का चुनाव लड़ चुके संतोष कौशिक, कांग्रेस के टिकट पर बिलासपुर विधानसभा से लगातार दो बार और 1998 में बिलासपुर विधानसभा से निर्दलीय चुनाव लड़कर कांग्रेस से अधिक वोट प्राप्त करने वाले साथ ही जोगी परिवार के क़रीबी अनिल टाह प्रमुख हैं। इनमें से डॉ. रेणु जोगी कोटा और धर्मजीत सिंह लोरमी विधानसभा से चुनाव भी जीते। पराजित होने वाले प्रत्याशियों में बड़े नाम मुंगेली से चंद्रभान बारमते, तख़तपुर से संतोष कौशिक, बिल्हा से सियाराम कौशिक और बेलतरा से अनिल टाह हैं। इनमें से डॉ. जोगी और धर्मजीत सिंह को छोड़कर सभी कांग्रेस प्रवेश कर चुके हैं। अनिल टाह के तीन दिन पहले कांग्रेस प्रवेश के राजनैतिक मायने समझने का हमने प्रयास किया। टाह निश्चित ही जोगी परिवार में अपनी खास भूमिका रखते थे। उन्होंने 1998 में बिलासपुर विधानसभा से निर्दलीय चुनाव लड़कर उस समय के कद्दावर मंत्री और बिलासपुर विधायक बीआर यादव के पुत्र कृष्ण कुमार यादव (राजू) को पीछे छोड़ कर दूसरा स्थान हासिल किया था। बाद में कांग्रेस प्रवेश कर उन्होंने 2003 और 2008 में बिलासपुर विधानसभा से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और दूसरा स्थान हासिल किया। दोनों ही चुनाव में उन्हें टिकट दिलाने का श्रेय पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी को गया। यही नहीं, अजीत जोगी के लिए चुनौतीपूर्ण चुनावों में से एक महासमुंद लोकसभा चुनाव, जो जोगी कद्दावर नेता वीसी शुक्ल के विरुद्ध लड़ रहे थे का चुनाव प्रबंधन भी अनिल टाह ने ही किया था, लेकिन अब उन्होंने जोगी को छोड़कर कांग्रेस में प्रवेश किया। राजनीतिक पंडित इसका सिर्फ एक ही आशय निकाल रहे हैं कि इस

विधानसभा चुनाव के बाद जोगी का रंग फीका पड़ गया है। दूसरे शब्दों कहें तो भूपेश बघेल के दम के आगे जोगी का कद छोटा हो गया है। और ये तो होना भी था, क्योंकि जोगी को कांग्रेस से बाहर का रास्ता दिखाने का श्रेय बघेल को ही जाता है और उनकी ज़िद ही कांग्रेस को सत्ता तक पहुंचा पाई है। बघेल ने इस लोकसभा चुनाव में बिलासपुर से प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री अटल श्रीवास्तव को मैदान में उतारा है, जो उनके खास समर्थक हैं। सपाट शब्दों में कहें तो अटल की जीत का अर्थ है भूपेश की जीत और पूरे प्रदेश में बघेल की स्वीकार्यता पर मुहर। बघेल यह जानते हैं कि अटल की जीत और हार उनके साथ जोड़ी जाएगी। इसलिए वह कोई कसर बाकी नहीं रखना चाहते।मुख्यमंत्री का अनिल टाह को कांग्रेस में प्रवेश देने का आशय है कि उनके निजी वोट बैंक, जो उन्होंने बेलतरा और बिलासपुर विधानसभा में खड़ा किया है, उसे कांग्रेस की तरफ मोड़ना। साथ ही विधानसभा चुनाव में कम वोटों से हारने वाले मुंगेली के चंद्रभान और तख़तपुर के संतोष कौशिक का भी अपना पर्सनल वोट बैंक है। क्या यह वोट भी कांग्रेस को स्थानांतरित होगा? राजनीति के जानकारों का दावा है कि निश्चित ही ऐसा होता दिख रहा है। यदि उनका दावा पक्का निकला तो इसका अर्थ आसानी से समझा जा सकता है। यह संभव हुआ तो अटल की जीत और भूपेश की स्वीकार्यता यह दोनों एक साथ तय होगी और भूपेश एक बार फिर छत्तीसगढ़ प्रदेश के सबसे बड़े क्षत्रप साबित होंगे। …तो फिर क्या इसे मुख्यमंत्री का मास्टर स्ट्रोक करार दिया जाए, यह तो समय ही बताएगा।

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