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लोकसभा चुनाव: रणनीति में कहां रह गई कमी? कैसे पहुंचा नुकसान? जानें कांग्रेस की हार के कारण…

लोकसभा चुनाव प्रचार की कमान संभालते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सभी प्रदेशों में आक्रामक प्रचार किया। कर्जमाफी, न्याय और राफेल को चुनावी मुद्दा बनाते हुए ताबड़तोड़ रैलियां और रोड शो कर भीड़ भी जुटाई। लेकिन उनकी मेहनत वोट में नहीं बदल पाई।

कांग्रेस अध्यक्ष करीब दो माह लंबे चुनाव प्रचार में डेढ़ सौ से अधिक जनसभाएं और रोड शो किए। सबसे ज्यादा प्रचार उत्तर प्रदेश में किए। इंटरव्यू के जरिए भी लोगों तक अपनी बात पहुंचाने की कोशिश की। पर जमीनी स्तर पर संगठन और ठोस रणनीति के अभाव में उन्हें अपनी सीट अमेठी में भी चुनौती का सामना करना पड़ा।

सामंजस्य का अभाव

कांग्रेस ने महाराष्ट्र, कर्नाटक, बिहार, झारखंड, केरल और तमिलनाडु सहित कई राज्यों में गठबंधन में चुनाव लड़ा। इन प्रदेशों में आखिरी वक्त तक सीट को लेकर सहयोगियों से सामंजस्य का अभाव दिखा। चार माह पहले जिन राज्यों में पार्टी ने जीत दर्ज की थी वहां का प्रदर्शन 2014 से भी खराब रहा है। जबकि कांग्रेस ने किसानों की कर्जमाफी को बड़ा मुद्दा बनाया था।

रणनीति तय नहीं हो पाई

2014 में कांग्रेस को इतिहास में सबसे कम 44 सीट मिली थी। तब वजह यूपीए-दो की विफलताएं थी। 2014 के बाद विपक्ष में रहते हुए पार्टी को संगठन मजबूत करने और रणनीति को जमीन पर उतारने का पूरा मौका था। पर कई प्रदेशों में नामांकन के आखिरी दिन तक रणनीति तय नहीं कर पाई।

अपने बूते लड़ना होगा

लोकसभा चुनाव में लगातार दूसरी बार हार के बाद कांग्रेस के अंदर आवाज उठने लगी है। कई नेता संगठन में हुए बदलावों से खुश नहीं है। एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि जब तक कांग्रेस जीत के लिए सरकार की गलतियों का इंतजार करती रहेगी, स्थिति नहीं बदलेगी। पार्टी को अपने बूते पर जीत की तैयारी करनी होगी।

बदलाव करने होंगे

कांग्रेस के लिए मौजूदा संगठन, रणनीति, कार्य संस्कृति और कार्यकर्ताओं की बदौलत मोदी की अगुवाई वाली भाजपा को शिकस्त देना बेहद मुश्किल है। इसके लिए तत्काल बड़े बदलाव करने होंगे।

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