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छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ / बच्चों को लोकतंत्र का महत्व बताने के लिए आदिवासी इलाके के स्कूल में चुनाव हुआ, जीतने वालों ने शपथ ली

कोरबा के पिछड़े इलाके गढ़कटरा के सरकारी स्कूल में यह अनोखा चुनाव हुआ

बच्चों ने पूछा- पोलिंग बूथ के अंदर क्या होता है; शिक्षक ने असल अनुभव देने के लिए चुनाव कराया

कोरबा. छत्तीसगढ़ के कोरबा में गांव गढ़कटरा के सरकारी स्कूल के बच्चों के बीच चुनाव हुआ। आदिवासी क्षेत्र के इस स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों ने अपनी कॉपी के पेज पर पसंदीदा उम्मीदवार का नाम लिखकर वोट डाला। नतीजों के बाद जीतने वाले बच्चों ने मंत्री पद की शपथ भी ली। ये शपथ उसी अंदाज में हुई, जैसे प्रधानमंत्री और उनकी कैबिनेट के मंत्री शपथ लेते हैं। मंत्री बनने वाले लड़के धोती पहनकर स्कूल आए। छोटी बच्चियों ने साड़ी पहनी। यह सब इसलिए हुआ ताकि पहली से पांचवीं कक्षा में पढ़ने वाले बच्चे वोट का महत्व समझें और लोकतांत्रिक प्रक्रिया जानें।

बच्चों के सवाल से आइडिया आया

दरअसल, चुनाव के दौरान गांव का यह एकमात्र स्कूल पोलिंग बूथ बना दिया जाता है। यहां सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए जाते हैं। इस वक्त बच्चों को भी यहां आने की मनाही होती है। स्कूल के शिक्षक श्रीकांत सिंह ने बताया कि बड़ी कक्षाओं के बच्चों को पाठ्यक्रम में ही चुनाव प्रक्रिया के बारे में बताया जाता है, लेकिन छोटे बच्चों के लिए यह उत्सुकता का विषय होता है। बच्चे लगातार क्लास में पूछा करते थे कि चुनाव क्या होता है? पोलिंग बूथ के अंदर क्या होता है? इसलिए हमने बच्चों के लिए इस सांकेतिक चुनाव की शुरुआत की।

गणित की आकृतियां चुनाव चिह्न बनीं

श्रीकांत बताते हैं कि चुनाव के लिए बच्चों को चिह्न भी आवंटित किए गए। गणित की आकृतियों को चुनाव चिह्न बनाया गया। वोटिंग के बाद            नतीजे आए तो बच्चों को मिठाई भी बांटी गई। पूरी चुनावी प्रक्रिया को सभी बच्चों ने खूब एन्जॉय किया।

ज्यादातर गांव वाले पढ़े-लिखे नहीं, बच्चे भी तीर लेकर घूमा करते थे

2006 से इस गांव में पदस्थ शिक्षक श्रीकांत ने बताया कि गढ़कटरा पूरी तरह से आदिवासी बहुल इलाका है। यहां रहने वाले ज्यादातर आदिवासी ग्रामीण पढ़े-लिखे नहीं हैं। कुछ साल पहते तक बच्चे भी स्कूल जाने की बजाए तीर और धनुष लेकर जंगलों में घूमा करते थे। हमने घर-घर जाकर शिक्षा के प्रति जागरूकता लाने का काम किया।

बच्चों की रुचि बनी रहे, इसलिए गाकर पढ़ाते हैं

शुरू-शुरू में हमें देखकर परिजन रास्ता बदल लिया करते थे। मगर कोशिश जारी रही। इसके बाद परिजन ने बच्चों को स्कूल भेजना शुरू किया। हमने पढ़ाई को दिलचस्प बनाने पर जोर दिया ताकि बच्चों का मन स्कूल में लगे। चुनावी प्रक्रिया इसी का हिस्सा है। श्रीकांत यहां बच्चों को गाकर और डांस की मदद से भी कविताएं और पहाड़े सिखाते हैं। अंग्रेजी के शब्दों को भी खेलों की मदद से समझाते हैं। पिछले कुछ सालों में बदलाव ऐसा आया कि अब इस स्कूल के पुराने छात्र भी यहां आकर बच्चों को पढ़ाते हैं।

गांव वालों के साथ मिलकर बना रहे स्मार्ट स्कूल

इस छोटे सरकारी स्कूल को बाहर से देखने पर यह किसी शहरी प्ले स्कूल की तरह दिखता है। स्कूल के बाहर बाउंड्री नहीं थी। आए दिन मवेशी क्लास रूम के पास आ जाया करते थे। इस समस्या को दूर करने शिक्षकों ने अभिभावकों की मदद ली। इस ग्रामीण इलाके में बांस के बहुत से पेड़ हैं। सभी ग्रामीणों ने बांस लाकर स्कूल के बाहर बाउंड्री बनाई। शिक्षक श्रीकांत और बच्चों ने मिलकर पुराने टायरों को रंगकर बाउंड्री पर सजाया। वेस्ट प्लास्टिक की पुरानी बोतलों को काटकर हैंगिंग गमले भी बनाए गए हैं।

शिक्षक ने अपने पैसे से बनाया ई-क्लास रूम

दीवारों पर किसी प्ले स्कूल की तरह मोटू-पतलू जैसे कार्टून कैरेक्टर्स और गणित की आकृतियां पेंट की गई हैं। स्कूल के बच्चों को कम्प्यूटर की जानकारी देने की इच्छा के कारण श्रीकांत ने एलआईसी की पॉलिसी से मिले रुपयों से कम्प्यूटर, प्रोजेक्टर, लैपटॉप, की-बोर्ड माउस खरीदकर ई-क्लास रूम तैयार किया। जिला स्तर पर उत्कृष्ठ शिक्षक का पुरस्कार पा चुके श्रीकांत को बीते रविवार को संकुल स्तर पर भी सम्मानित किया गया।

 

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