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उपलब्धि / रायपुर के चित्रसेन साहू ने अफ्रीका की 5685 मीटर ऊंची चोटी किलिमंजारो पर लहराया तिरंगा

अफ्रीका के शिखर किलिमंजारो पर हमारे चित्रसेन ऐसे पहले भारतीय जिन्होंने दोनों पैर न होने के बावजूद ये पहाड़ चढ़ा

अपनी उपलब्धि के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा- हमें दया नहीं, सभी के साथ एक समान जिंदगी जीने का हक चाहिए

रायपुर. राजधानी रायपुर के 27 साल के चित्रसेन साहू ने अफ्रीका महाद्वीप के पहाड़ किलिमंजारो की 5685 मीटर ऊंची चोटी गिलमंस पर तिरंगा लहराया। उन्होंने 23 सितंबर दोपहर 2 बजे चोटी पर फतह हासिल की। हाउसिंग बोर्ड के सिविल इंजीनियर चित्रसेन ट्रेन हादसे में दोनों पैर गंवा चुके हैं। उन्होंने प्रोस्थेटिक लेग के दम पर ये चढ़ाई की। ये पहाड़ चढ़ने वाले वे देश के पहले दिव्यांग हैं।

ट्रेन हादसे में अपने दाेनाें पैर गंवा चुके शहर के 27 साल के चित्रसेन साहू ने अफ्रीका महाद्वीप के सबसे ऊंचे पहाड़ किलिमंजारो पर तिरंगा लहराया। प्रोस्थेटिक पैर और बुलंद हौसलों के दम पर 144 घंटे चढ़ाई के बाद उन्होंने 5685 मीटर ऊंची चोटी गिलमंस फतह की। चित्रसेन डबल लेग एंप्युटी यानी दोनों पैर के बिना किलिमंजारो पर तिरंगा लहराने वाले देश के पहले माउंटेनियर बन गए हैं।

छत्तीसगढ़ शासन और मोर रायपुर स्मार्ट सिटी लिमिटेड के ब्रांड एम्बेसडर चित्रसेन ने किलिमंजारो की चोटी से छत्तीसगढ़ को प्लास्टिक फ्री राज्य बनाने का संदेश भी दिया। उन्होंने माउंट एवरेस्ट फतह करने वाले राज्य के इकलौते माउंटेनियर राहुल गुप्ता के मार्गदर्शन में ये सफर तय किया। हाउसिंग बोर्ड में सिविल इंजीनियर के पद पर कार्यरत चित्रसेन ने सिटी भास्कर से खास बातचीत में अपनी जर्नी शेयर की। पढ़िए उन्हीं की जुबानी…

सपना सच होने के बाद प्रोस्थेटिक लेग निकालकर बैठ गया पहाड़ पर…

19 सितंबर दोपहर 1 बजे मैंने चढ़ाई शुरू की। कुछ दूरी तय करने के बाद ही समझ आ गया था कि सफर आसान नहीं होगा। वहां का तापमान माइनस 3 से 5 के बीच था। दोनों पैर प्रोस्थेटिक के हैं। दोनों हाथ में छड़ी थी। पीठ पर पांच किलो का बैग था। चढ़ाई के आखिरी 12 घंटे में धूल वाला ठंडा तूफान शुरू हो गया। लेफ्ट लेग में एंजरी के कारण असहनीय दर्द होने लगा। एक वक्त तो हिम्मत टूटने लगी थी। फिर मन पर काबू पाया अाैर लक्ष्य की तरफ बढ़ चला।

मिशन के तहत मुझे उहरु चोटी जो कि 5895 मीटर की ऊंचाई पर है वहां तक पहुंचना था। लेकिन मौसम के चलते गिलमंस पाॅइंट जिसकी ऊंचाई 5685 मीटर है तक ही जाने की अनुमति मिली। 23 सितंबर दोपहर 2 बजे जब चोटी पर पहुंचा तो अलग ही खुशी महसूस कर रहा था। थोड़ा इमोशनल भी हुआ। वहां छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया… का नारा लगाया। फिर भारत माता की जय कहते हुए तिरंगा फहराया।

छत्तीसगढ़ को प्लास्टिक फ्री राज्य बनाने का मैसेज भी दिया। सपना सच होने के बाद दोनों प्रोस्थेटिक लैग निकालकर पहाड़ पर बैठ गया। कुछ मिनटों में ही थकान छूमंतर हो चुकी थी। मैंने इस मिशन को नाम दिया था- पैरों पर खड़े हैं… मेरा मानना है कि जो व्यक्ति जन्म से या किसी हादसे में शरीर का कोई अंग गंवा देते है, उनके साथ कोई भेदभाव न किया जाए। हमें दया नहीं आप सबके साथ एक समान जिंदगी जीने का हक चाहिए। – चित्रसेन साहू

अरुणिमा की कहानी से मिला हौसला
4 जून, 2014 को भाटापारा स्टेशन में पैर फिसलने से चित्रसेन ट्रेन के बीच फंस गए। घटना के अगले दिन एक पैर और 24 दिन बाद दूसरा पैर काटना पड़ा। वो जिंदगी का सबसे बुरा दौर था। पर्वतारोही अरुणिमा सिन्हा की कहानी पढ़कर हौसला बढ़ा।

  • शरीर के किसी अंग का न होना कोई शर्म की बात नहीं, न ही ये हमारी सफलता के आड़े आता है। हम किसी से कम नहीं, न ही अलग हैं, तो बर्ताव में फर्क क्यों करना? हमें दया नहीं, आप सब के साथ एक समान जिंदगी जीने का हक चाहिए – चित्रसेन साहू

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