Advertisement
देश

पांच साल में भारत में बैन हो जाएगा पेट्रोल, केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी के दावे में कितना दम, क्या होगा असर?…

भारत के सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने दावा किया है, कि अगले पांच साल में भारत में गाड़ियों में पेट्रोल का इस्तेमाल खत्म हो जाएगा। नितिन गडकरी ने दावा करते हुए कहा कि, हरित ईंधन पेट्रोल की आवश्यकता को समाप्त कर देगा। इसके साथ ही उन्होंने यह भी दावा किया, कि कार और स्कूटर या तो हरे हाइड्रोजन, एथोनल फ्लेक्स ईंधन, या फिर सीएनजी या एलएनजी पर चलने वाले मिलेंगे। भारत को लेकर नितिन गडकरी का ये दावा काफी बड़ा है, क्योंकि, भारत दुनिया के टॉप पेट्रोल आयातक देशों में से एक है और पेट्रोल आयात करने की वजह से भारतीय डिप्लोमेसी भी प्रभावित होती रही है। ऐसे मे आइये जानने की कोशिश करते हैं, कि गडकरी के दावों में कितना दम है?

नितिन गडकरी का दावा क्या है?

महाराष्ट्र के अकोला में केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने बयान दिया है और संभावना जताई है, कि पांच साल के बाद भारत को तेल आयात करने की काफी कम जरूरत होगी। अपने भाषण के दौरान, केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री ने हरित हाइड्रोजन, एथोनल और अन्य हरित ईंधन के उपयोग के लिए एक मजबूत पिच बनाई। उन्होंने कहा कि, ‘मैं पूरे विश्वास के साथ कहना चाहता हूं, कि पांच साल बाद देश से पेट्रोल खत्म हो जाएगा। आपकी कारें और स्कूटर या तो ग्रीन हाइड्रोजन, एथोनल फ्लेक्स फ्यूल, सीएनजी या एलएनजी से चलेंगी।’ इसके साथ ही नितिन गडकरी ने कृषि शोधकर्ताओं और विशेषज्ञों से अगले पांच वर्षों में कृषि विकास को 12 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत करने पर काम करने की भी अपील की। उन्होंने नए शोध और प्रौद्योगिकी के साथ मार्गदर्शन और प्रशिक्षण की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि, महाराष्ट्र के किसान बहुत प्रतिभाशाली हैं। इससे पहले भी 17 जून को नितिन गडकरी ने कहा था कि एक साल के भीतर सभी इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) की कीमतें देश में पेट्रोल वाहनों की कीमत के बराबर हो जाएंगी। उन्होंने आगे कहा था कि, पेट्रोल और डीजल के विकल्प के तौर पर सरकार फसल अवशेषों से बनने वाले एथेनॉल को बढ़ावा दे रही है।

कितना पेट्रोल खरीदता है भारत?

भारत, चीन और जापान के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है। भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी तेल आयात करता है। रॉयटर्स के मुताबिक, कोरोना लॉकडाउन के बाद जब सऊदी अरब ने तेल प्रोडक्शन कम कर दिया और भारत के अनुरोध के बाद भी जब सऊदी तेल का उत्पादन बढ़ाने के लिए तैयार नहीं हुआ, तो पिछले साल भारत सरकार ने सऊदी अरब से कम तेल खरीदने का फैसला कर बड़ा झटका दिया था और उसके बाद से ही भारत सरकार लगातार तेल के विकल्प तलाश रही है। इसके साथ ही भारत ने साल 2060 तक जीवाश्म ईंधन से देश को मुक्त करने की प्रतिबद्धता पिछले साल सीओपी-26 की हुई बैठक में ली थी, लिहाजा अगर भारत में पेट्रोल को बैन कर दिया जाएगा, तो जीवाश्म ईंधन से आजादी की तरफ ये एक बड़ा कदम होगा। वहीं, आपको बता दें कि, ग्रीन हाइड्रोजन को 70 रुपये प्रति किलो में बेचा जा सकता है और इसे गहरे कुएं के पानी से बनाया जा सकता है। इसके साथ ही भारत में अडानी और अंबानी की कंपनियां ग्रीन हाइड्रोजन के निर्माण की तरफ आगे बढ़ चुकी हैं।

भारत की तेल कैपिसिटी

पिछले साल आई एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की रिफाइनरी कैपिसिटी 5 मिलियन बैरल रोजाना की है। जिसमें 60 फीसदी से ज्यादा कंट्रोल सरकारी तेल कंपनियों की है। भारत की सरकारी तेल कंपनियां 14.8 मिलियन बैरल तेल एक महीने में सऊदी अरब से आयात करती है। लेकिन, भारत सरकार ने पिछले साल ही इस योजना पर काम करना शुरू कर दिया था, कि भारत कैसे खाड़ी देशों पर तेल के लिए अपनी निर्भरता को कम करे। क्योंकि, पहले अकसर अरब देश तेल के नाम पर भारत को ब्लैकमेल करते आए हैं और अगर भारत पेट्रोल का आयात पूरी तरह से बंद कर देता है, तो फिर अरब देशों के पास भारत को ब्लैकमेल करने की कोई चाबी नहीं रहेगी। एक्सपर्ट्स का दावा है कि, अगर भारत वाकई ऐसा करने में कामयाब हो जाता है, तो फिर वैश्विक मंच पर एक नये भारत की एंट्री होगी, जिसकी निर्भरता अरब देशों के साथ साथ, यहां तक की रूस पर भी काफी कम हो जाएगी। इसके साथ ही, जिस तरह की जियोपॉलिटिक्स बनी है, उसमें कच्चे तेल की कीमत बढ़कर कहां तक जाएगी, कुछ नहीं कहा जा सकता है, लिहाजा भारत की कोशिश उन अनिश्चित वातावरण से भी बचने की है।

भारत की तेल कैपिसिटी

पिछले साल आई एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की रिफाइनरी कैपिसिटी 5 मिलियन बैरल रोजाना की है। जिसमें 60 फीसदी से ज्यादा कंट्रोल सरकारी तेल कंपनियों की है। भारत की सरकारी तेल कंपनियां 14.8 मिलियन बैरल तेल एक महीने में सऊदी अरब से आयात करती है। लेकिन, भारत सरकार ने पिछले साल ही इस योजना पर काम करना शुरू कर दिया था, कि भारत कैसे खाड़ी देशों पर तेल के लिए अपनी निर्भरता को कम करे। क्योंकि, पहले अकसर अरब देश तेल के नाम पर भारत को ब्लैकमेल करते आए हैं और अगर भारत पेट्रोल का आयात पूरी तरह से बंद कर देता है, तो फिर अरब देशों के पास भारत को ब्लैकमेल करने की कोई चाबी नहीं रहेगी। एक्सपर्ट्स का दावा है कि, अगर भारत वाकई ऐसा करने में कामयाब हो जाता है, तो फिर वैश्विक मंच पर एक नये भारत की एंट्री होगी, जिसकी निर्भरता अरब देशों के साथ साथ, यहां तक की रूस पर भी काफी कम हो जाएगी। इसके साथ ही, जिस तरह की जियोपॉलिटिक्स बनी है, उसमें कच्चे तेल की कीमत बढ़कर कहां तक जाएगी, कुछ नहीं कहा जा सकता है, लिहाजा भारत की कोशिश उन अनिश्चित वातावरण से भी बचने की है।

किस देश से कितना तेल खरीदता है भारत

भारत अपनी जरूरत का सबसे ज्यादा कच्चे तेल की आपूर्ति इराक से करता है। 2017-18 से पहले भारत तेल के लिए सबसे ज्यादा सऊदी अरब पर निर्भर रहता था। डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ कॉमर्शियल इंटेलीजेंस एंड स्टैटिस्टिक्स (DGCIS) के आंकड़ों के मुताबिक इराक ने 2018-2019 वित्तवर्ष में भारत को 4.66 करोड़ टम कच्चा तेल बेचा। यह 2017-18 के मुकाबले 2 प्रतिशत ज्यादा था। वहीं, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2020-21 में भारत ने अपनी पेट्रोलियम जरूरतों का 84 प्रतिशत हिस्सा आयात किया था। वहीं, भारत ने साल 2020-21 में 77 अरब अमेरिकी डॉलर का सिर्फ तेल आयात किया था, जो भारत की कुल आयात का 19 प्रतिशत है। ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन की रिपोर्ट के मुताबिक, 2020-21 में भारत को सबसे ज्यादा तेल निर्यात करने वाला देश इराक था और उसके बाद सऊदी अरब था, वहीं अब अमेरिका भी भारत को तेल निर्यात करने वाला अहम देश बन चुका है।

यूरोपीय देश नहीं दिखा सकते हैं धमक

अगर भारत अगले पांच सालों में, यानि 2027 तक पेट्रोल पर अपनी निर्भरता को पूरी तरह से खत्म कर देता है, तो हमें उन यूरोपीय देशों और अमेरिका को भी कोई जवाब देने की जरूरत नहीं होगी, जो हमें बार बार पेट्रोल को लेकर पेशोपेश में डाल देते हैं। भारत एक वक्त ईरान और वेनेजुएला से सबसे ज्यादा कच्चे तेल का आयात करता था और ये तेल हमारे के लिए काफी सस्ता भी पड़ता था, लेकिन एक दिन अचानक अमेरिका ने ईरान और वेनेजुएला पर प्रतिबंध लगा दिया और इसका सीधा असर हमारी अर्थव्यवस्था पर हुआ, क्योंकि हमें दूसरे देशों से ज्यादा कीमत पर तेल खरीदनी पड़ी।

रूस भी खेला डबल गेम

इस वक्त जब यूक्रेन युद्ध के बीच रूस ने भारत को काफी कम कीमत पर तेल बेचने का ऑफर दिया और भारत ने ऑफर स्वीकार कर लिया, तो अमेरिका और यूरोपीय देशों को मिर्ची लग गई और हमारे विदेश मंत्री एस. जयशंकर को कई प्लेटफॉर्म पर सख्ती के साथ अपनी बात रखनी पड़ी। इसके अलावा भी, रूस ने भारत को कम कीमत पर कच्चा तेल बेचने का तो ऑफर दिया, लेकिन रूस ने सिर्फ भारत की एक ही तेल कंपनी के साथ सौदा किया, बाकी की तेल कंपनियों के साथ रूस ने सौदा करने से इनकार कर दिया, लिहाजा अगर पांच सालों में तेल पर निर्भरता कम हो जाती है, तो ये देश तेल को लेकर हमें अपनी उंगली पर नही नचा सकते है।

error: Content is protected !!