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राजनीति

क्या भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के बयान ने बिगाड़ा बिहार में गठबंधन का खेल, इन तीन बिंदुओं में जानें क्यों उठे सवाल?…

यूं तो नीतीश कुमार और भाजपा के बीच अनबन 2020 में सरकार बनने के बाद से ही शुरु हो गई थी। नीतीश कुमार भाजपा नेताओं के बयानबाजी से असहज महसूस करते थे। ऐसे में जेपी नड्डा के बयान ने दोनों के रिश्तों की खटास और अधिक बढ़ा दी।

बिहार में जदयू ने भाजपा से गठबंधन तोड़ लिया है। किसी भी वक्त इसका औपचारिक एलान हो सकता है। नीतीश कुमार ने राज्यपाल से मिलने का वक्त मांगा है। कहा जा रहा है कि नीतीश राजद, कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी के साथ मिलकर सरकार बनाएंगे। कुल मिलाकर भाजपा का सत्ता से बाहर होना तय है।

ये सब तब हुआ जब 10 दिन पहले यानी 31 जुलाई को। उस दिन भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने बिहार में कई कार्यक्रमों में शिरकत की थी। यहां उन्होंने एक ऐसा बयान दिया था, जिसने राजनीतिक गलियारे में हलचल पैदा कर दी थी। सवाल उठ रहा है कि क्या नड्डा के बयान ने ही भाजपा-जदयू गठबंधन में आखिरी कील ठोकी? आइए समझते हैं…

पहले जानिए नड्डा ने क्या-क्या कहा?

जेपी नड्डा ने कहा, ‘भाजपा एक विचारधारा से प्रेरित है। हम एक विचारधारा पर आधारित पार्टी हैं। हम एक कैडर-आधारित पार्टी हैं और ‘कार्यालयों’ की एक बड़ी भूमिका है। भाजपा कार्यालय कार्यकर्ताओं के लिए एक बिजलीघर है। एक ऐसी जगह है जहां से करोड़ों कार्यकर्ता पैदा होंगे।’

भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा, ‘मैं बार-बार कहता हूं कि देखो अगर ये विचारधारा नहीं होती तो हम इतनी बड़ी लड़ाई नहीं लड़ सकते थे। सब लोग (अन्य राजनीतिक दल) मिट गए। समाप्त हो गए और जो नहीं हुए वो हो जाएंगे। रहेगी तो केवल भाजपा ही रहेगी। भाजपा के विरोध में लड़ने वाली कोई राष्ट्रीय पार्टी बची नहीं। हमारी असली लड़ाई परिवारवाद और वंशवाद से है।’

तो क्या नीतीश समझ गए कि भाजपा उनकी पार्टी को भी खत्म कर देगी

यूं तो नीतीश कुमार और भाजपा के बीच अनबन 2020 में सरकार बनने के बाद से ही शुरु हो गई थी। भाजपा नेताओं के बयानबाजी से नीतीश कुमार असहज महसूस करते थे। इसके बाद नीतीश कुमार को यह लगने लगा कि भाजपा अब उनकी ही पार्टी खत्म करने पर तुली है।

पिछले एक साल के अंदर नीतीश कुमार को कई बार लगा कि भाजपा अब उनकी ही पार्टी में सेंध लगाने की कोशिश कर रही है। मतलब जदयू के विधायकों, सांसदों और नेताओं को तोड़कर भाजपा अकेले दम पर सरकार बना सकती है। ऐसे में उन्होंने अपनी पार्टी की निगरानी शुरू कर दी। ये देखने लगे कि उनकी पार्टी के किस-किस नेताओं के रिश्ते भाजपा से मजबूत हो रहे हैं। ऐसे लोगों को नीतीश चुन-चुनकर निकालने लगे।

सबसे पहले निशाने पर आए जदयू के प्रवक्ता अजय आलोक, पार्टी के प्रदेश महासचिव अनिल कुमार, विपिन कुमार यादव, भंग समाज सुधार सेनानी प्रकोष्ठ के अध्यक्ष जितेंद्र नीरज। इसके बाद नंबर आरसीपी सिंह का आया। चूंकि आरसीपी सिंह केंद्र सरकार में जदयू कोटे से मंत्री थे। जैसे ही आरसीपी की राज्यसभा सदस्यता खत्म हुई और उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। पार्टी ने उनपर कार्रवाई शुरू कर दी। पार्टी ने उनपर भ्रष्टाचार का आरोप लगा दिया। जिसके बाद आरसीपी सिंह ने खुद इस्तीफा दे दिया।

क्या वाकई में भाजपा सभी पार्टियों को खत्म कर देगी?

ये समझने के लिए हमने वरिष्ठ पत्रकार संजय मिश्र से बात की। उन्होंने कहा, ‘मौजूदा समय देश के 19 राज्यों में भाजपा सत्ता में है। इन राज्यों में देश की करीब 59% फीसदी आबादी रहती है। वहीं, कांग्रेस की सरकार अब चार राज्यों तक ही सिमटकर रह गई है। इन चार राज्यों में देश की करीब 16 फीसदी आबादी रहती है।’

आगे उन्होंने कहा, ‘मई 2014 में नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने। उस वक्त करीब 30 फीसदी आबादी पर भाजपा और उसकी सहयोगी सरकारें चल रही थीं। वहीं, 14 राज्यों में कांग्रेस और उसके सहयोगी पार्टियों की सरकार थी। कांग्रेस शासित इन राज्यों में देश की 27 फीसदी से ज्यादा आबादी रहती है। चार साल बाद मार्च 2018 में 21 राज्यों में भाजपा और उसके सहयोगियों की सरकार थी। इन राज्यों में देश की करीब 71 फीसदी आबादी रहती है। ये वो दौर था जब भाजपा शासन आबादी के लिहाज से पीक पर था। भाजपा का ग्राफ देखकर ये कहा जा सकता है कि अभी भाजपा काफी मजबूती से आगे बढ़ेगी।’

सिर्फ भाजपा ही बचेगी?

ये सवाल हमने वरिष्ठ पत्रकार अशोक श्रीवास्तव से पूछा। उन्होंने कहा, ‘यह सही है कि भाजपा तेजी के साथ आगे बढ़ रही है, लेकिन अन्य पार्टियों के खत्म होने की बात थोड़ी अटपटी है। भारत लोकतांत्रिक देश है। यहां विपक्ष का मजबूत होना जरूरी है। ये सही है कि अभी जिन-जिन राज्यों में विपक्षी दलों की सरकार है, उनमें से ज्यादातर पर परिवारवाद का आरोप है। ऐसे में भाजपा इन राज्यों में अपनी जड़ें मजबूत करने में जुटी है। हालांकि, यह इतना भी आसान नहीं है।’

अशोक आगे कहते हैं, ‘भाजपा के पास अभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा है। उन्हीं के चेहरे की बदौलत भाजपा सभी जगह लड़ाई लड़ते आई है। अब भाजपा के सामने क्षेत्रीय दलों से लड़ने के लिए क्षेत्रीय नेता तैयार करने की चुनौती है। भाजपा अगर वाकई में क्षेत्रीय दलों को खत्म करना चाहती है तो इसके लिए यह जरूरी है।’

अशोक कहते हैं, अब धीरे-धीरे एनडीए का साथ सभी छोटी पार्टियां छोड़ रहीं हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि उन्हें डर है कि भाजपा एक न एक दिन उनकी ही पार्टी को खत्म कर देगी। इसलिए वह तमाम वैचारिक मतभेद होने के बावजूद विपक्ष के अन्य दलों के साथ जा रहे हैं।

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