
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय, बिलासपुर ने राज्य के शैक्षणिक संस्थानों में पुस्तकों और बुनियादी सुविधाओं की कमी के खिलाफ छात्रों के सड़कों पर उतरने की घटनाओं को गंभीरता से लिया है। न्यायालय ने स्वतः संज्ञान जनहित याचिका बनाम छत्तीसगढ़ राज्य के मामले में एक महत्वपूर्ण निर्देश जारी करते हुए राज्य के मुख्य सचिव से रिपोर्ट मांगी है।
यह मामला तब प्रकाश में आया जब विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों के छात्रों ने बुनियादी सुविधाओं की कमी, जैसे किताबों और अन्य आवश्यक संसाधनों के अभाव के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। न्यायालय में प्रफुल एन. भरत, विद्वान महाधिवक्ता और शशांक ठाकुर, उप महाधिवक्ता द्वारा राज्य का प्रतिनिधित्व किया गया।
विद्वान महाधिवक्ता ने न्यायालय को बताया कि इस मामले को संबंधित प्राधिकरण द्वारा संज्ञान में लिया गया है और उस पर कार्यवाही की जा रही है। हालांकि, न्यायालय ने इस बात पर चिंता जताई कि छात्रों को संस्थानों में आवश्यक सुविधाओं की अनुपलब्धता के चलते सड़क पर आकर विरोध प्रदर्शन करना पड़ रहा है। न्यायालय ने यह भी कहा कि यह समझ से परे है कि ऐसे मामलों में संस्थान का प्रबंधन क्या कर रहा है और छात्रों को विरोध करने की नौबत क्यों आ रही है।
न्यायालय ने इस स्थिति को चिंताजनक मानते हुए कहा कि राज्य प्रशासन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसी घटनाएं भविष्य में दोबारा न हों। इसके लिए, राज्य के मुख्य सचिव को निर्देश दिया गया कि वह इस मामले की पूरी जांच कर रिपोर्ट प्रस्तुत करें। न्यायालय ने यह भी कहा कि अगर संस्थानों में बुनियादी सुविधाओं की कमी के संबंध में कोई अनियमितता पाई जाती है, तो छात्रों को विरोध करने के बजाय अपने अभिभावकों के माध्यम से संबंधित प्राधिकरण से संपर्क करना चाहिए।
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि उसकी मंशा यह सुनिश्चित करना है कि शैक्षणिक संस्थान सही ढंग से संचालित हों और छात्रों को अपनी शिक्षा के अधिकार के लिए संघर्ष न करना पड़े। यह निर्णय राज्य के शिक्षा क्षेत्र में सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है, ताकि छात्रों को उचित शिक्षा और संसाधन मिल सकें।
न्यायालय ने मुख्य सचिव को निर्देश दिया है कि अगली सुनवाई तक वह एक हलफनामा दाखिल करें जिसमें यह स्पष्ट हो कि राज्य सरकार इस समस्या को कैसे हल करने की योजना बना रही है। न्यायालय ने यह भी कहा कि छात्रों के विरोध की घटनाएं न्यायालय के संज्ञान में दोबारा न आएं, इसके लिए आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिए।
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय का यह आदेश यह सुनिश्चित करने की दिशा में एक मजबूत संदेश है कि शैक्षणिक संस्थानों में आवश्यक सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए और छात्रों को अपनी आवाज उठाने के लिए सड़कों पर आने की जरूरत न पड़े।