Saturday, November 9, 2024
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बिलासपुर: हिरासत में मौत पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, लहरा बाई तामरे केस में मुआवज़े का आदेश…

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय, ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में हिरासत में मौत के मामले में याचिकाकर्ता लहरा बाई तामरे और उनकी नाबालिग बेटियों को मुआवज़ा देने का आदेश दिया। इस मामले में याचिका श्रवण सूर्यवंशी उर्फ ​​सरवन तामरे की हिरासत में मौत के बाद दायर की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि श्रवण की मौत पुलिस और केंद्रीय जेल अधिकारियों द्वारा बेरहमी से पीटे जाने के कारण हुई थी।

श्रवण सूर्यवंशी को 18 जनवरी, 2024 को सीपत थाना के अधिकारियों द्वारा छत्तीसगढ़ आबकारी अधिनियम की धारा 34(2) के तहत गिरफ्तार किया गया था। गिरफ्तारी के बाद न्यायालय के आदेश पर श्रवण को केंद्रीय जेल बिलासपुर में रखा गया, जहाँ 22 जनवरी, 2024 को उसकी मौत हो गई। श्रवण की पत्नी लहरा बाई तामरे और उनकी बेटियों ने इस घटना के खिलाफ न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया और आरोप लगाया कि उसकी मौत हिरासत में हुई पिटाई के कारण हुई।

राज्य के प्रतिवादियों ने याचिकाकर्ताओं के आरोपों का खंडन किया और एक मेडिकल रिपोर्ट पेश की, जिसमें दावा किया गया कि श्रवण की मृत्यु का कारण उसकी आदतन शराब सेवन की आदतें थीं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि श्रवण की प्रारंभिक जांच में उसके शरीर पर कोई बाहरी चोट नहीं पाई गई थी। राज्य ने दावा किया कि मौत स्वाभाविक थी, और पुलिस या केंद्रीय जेल अधिकारियों की किसी प्रकार की लापरवाही का कोई सबूत नहीं था।

मामले की न्यायिक जांच के बाद, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा जारी की गई रिपोर्ट में पाया गया कि श्रवण की मौत सिर में चोट के कारण हुई जटिलताओं के परिणामस्वरूप हुई थी। इस निष्कर्ष ने याचिकाकर्ताओं के दावे को बल दिया कि श्रवण की मौत हिरासत में हिंसा के कारण हुई थी।

इस मामले पर फैसला सुनाते हुए उच्च न्यायालय ने कई प्रमुख न्यायिक उदाहरणों का हवाला दिया, जिनमें सहेली बनाम पुलिस आयुक्त और नीलबती बेहरा बनाम उड़ीसा राज्य जैसे मामले शामिल थे। इन मामलों में न्यायालय ने यह स्थापित किया था कि अगर हिरासत में किसी की मौत पुलिस या जेल अधिकारियों की लापरवाही के कारण होती है, तो राज्य को पीड़ितों को मुआवज़ा देना चाहिए।

न्यायालय ने कहा कि ऐसे मामलों में मुआवज़ा केवल पीड़ितों को राहत देने के लिए ही नहीं होता, बल्कि यह एक अनुकरणीय क्षति के रूप में भी दिया जाता है, जिससे भविष्य में इस प्रकार के घटनाओं को रोकने का उद्देश्य होता है।

न्यायालय ने राज्य को निर्देश दिया कि वह श्रवण सूर्यवंशी की गलत तरीके से हुई मौत के लिए लहरा बाई तामरे और उनकी बेटियों को 1,00,000 रुपये का मुआवज़ा आठ सप्ताह के भीतर प्रदान करे। इसके साथ ही, अगर मुआवज़े के भुगतान में कोई देरी होती है, तो उस पर ब्याज भी लागू होगा। न्यायालय ने छत्तीसगढ़ के जेल महानिदेशक को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि मुआवज़ा समय पर पीड़ित परिवार को दिया जाए।

यह फैसला उन मामलों के लिए एक महत्वपूर्ण उदाहरण प्रस्तुत करता है जहाँ हिरासत में मौतों के कारण उत्पन्न होने वाले मानवाधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ न्याय की मांग की जाती है। उच्च न्यायालय के इस फैसले ने यह स्पष्ट किया कि राज्य और उसकी एजेंसियाँ हिरासत में रहते हुए व्यक्तियों की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार हैं, और उनकी लापरवाही या कृत्य से होने वाले नुकसान के लिए उन्हें उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।

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