बिलासपुर। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में हाल ही में एक महत्वपूर्ण सुनवाई हुई, जिसमें सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने निजता के अधिकार के उल्लंघन के मुद्दे पर जोरदार बहस की। मामला भिलाई के खूबचंद बघेल कॉलेज के प्रोफेसर विनोद वर्मा से जुड़ा हुआ है, जिनके साथ हुई मारपीट के संबंध में यह कानूनी लड़ाई शुरू हुई। इस मामले में छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य बघेल और उनसे जुड़े कुछ अन्य लोगों की संलिप्तता की भी जांच हो रही है।
इस प्रकरण में पुलिस पहले ही कुछ आरोपियों की कॉल डिटेल रिकॉर्ड (सीडीआर) हासिल कर चुकी है, लेकिन अब वे आरोपियों की गूगल आईडी और पासवर्ड की मांग कर रहे हैं। यहीं से निजता के अधिकार पर बहस का मुद्दा उठता है। कपिल सिब्बल, जो इस मामले में याचिकाकर्ता का पक्ष रख रहे थे, ने यह तर्क दिया कि गूगल आईडी और पासवर्ड मांगना सीधे तौर पर व्यक्ति की निजता का उल्लंघन है, और यह संविधान के अनुच्छेद 21 में वर्णित निजता के अधिकार का हनन है।
मुख्य न्यायाधीश का नजरिया
सुनवाई के दौरान छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रमेश कुमार सिन्हा और उनकी डबल बेंच ने इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार किया। मुख्य न्यायाधीश ने भी माना कि इस तरह की जानकारी मांगने से व्यक्ति के निजता अधिकार पर खतरा उत्पन्न हो सकता है। अदालत ने दोनों पक्षों की बात सुनने के बाद यह मामला दो सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया और अगली सुनवाई की तारीख तय की।
मामला: प्रोफेसर से मारपीट और जांच
यह पूरा प्रकरण तब शुरू हुआ जब प्रोफेसर विनोद वर्मा के साथ मारपीट हुई, और इस मामले में 9 आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है। इनमें से कुछ आरोपी चैतन्य बघेल से जुड़े हुए बताए जा रहे हैं, जो पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बेटे हैं।
मामला इस वजह से और भी संवेदनशील हो गया है क्योंकि इसमें राजनीतिक हस्तियों की संलिप्तता के आरोप भी लगे हैं। मामले की गहन जांच हो रही है, और इस दौरान पुलिस ने कई तकनीकी जानकारियाँ, जैसे कॉल रिकॉर्ड्स, और अब गूगल आईडी व पासवर्ड की मांग की है, जिससे याचिकाकर्ता का पक्ष और मजबूत हुआ।
निजता का अधिकार और डिजिटल जानकारी
यह मामला केवल कानूनी नहीं, बल्कि तकनीकी और नैतिक दृष्टिकोण से भी अहम हो गया है। कपिल सिब्बल ने अपनी दलील में इस बात पर जोर दिया कि डिजिटल जानकारी, जैसे गूगल आईडी और पासवर्ड, किसी व्यक्ति की निजी और संवेदनशील जानकारियों तक पहुंच प्रदान करती हैं, और इसका दुरुपयोग किया जा सकता है। निजता का अधिकार, जो सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के अनुसार भारतीय संविधान का अभिन्न हिस्सा है, इस मामले में मुख्य मुद्दा बन गया है।
यह मामला केवल एक कानूनी लड़ाई नहीं, बल्कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और तकनीकी अधिकारों के उल्लंघन पर एक गहन बहस है। आने वाले समय में न्यायालय का निर्णय न केवल इस केस को प्रभावित करेगा, बल्कि देशभर में डिजिटल निजता के अधिकार पर भी एक उदाहरण बनेगा।