बिलासपुर। जल संरक्षण और पर्यावरण सुरक्षा की दिशा में प्रशासन ने एक बार फिर कड़ा रुख अपनाया है। बिलासपुर के कोनी क्षेत्र में तालाब पाटकर खेत बनाने के मामले में प्रशासन ने सख्त कार्रवाई करते हुए तालाब को उसके मूल स्वरूप में लाने के आदेश दिए हैं। न्यायालय अनुभागीय अधिकारी (राजस्व) के आदेशानुसार, मौजा कोनी स्थित भूमि खसरा नंबर 126 को “पानी के नीचे” और “तालाब” के रूप में पुनः स्थापित करने का निर्देश दिया गया है।
पिछले महीने कलेक्टर अवनीश शरण के निर्देश पर नगर निगम क्षेत्र के तालाबों की जांच एसडीएम पीयूष तिवारी द्वारा कराई गई थी। इस जांच में यह पाया गया कि ग्राम कोनी के खसरा नंबर 126, रकबा 0.299 हेक्टेयर भूमि, जो मिसल के कालम 4 में “पानी के ऊपर” और वाजिबुल अर्ज के कालम 2 में “तालाब” के रूप में दर्ज है, को व्यासनारायण पाण्डेय और सुरेंद्र पाण्डेय द्वारा पाटकर खेत में बदल दिया गया है।
एसडीएम ने तहसीलदार से स्पष्ट प्रतिवेदन मांगा, जिसमें यह सिद्ध हुआ कि तालाब को जानबूझकर पाटकर कृषि भूमि के रूप में उपयोग किया गया। इसके बाद छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता की धारा 242 के तहत मामला दर्ज किया गया और संबंधित व्यक्तियों से जवाब मांगा गया। अनावेदकों ने अपने जवाब में यह स्वीकार किया कि उन्होंने तालाब की भूमि को पाटकर खेत बनाया है, लेकिन उनके जवाब संतोषजनक नहीं पाए गए।
एसडीएम ने इस मामले में छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता की धारा 242 और 253 के तहत अनावेदकों पर ₹25,000 का जुर्माना लगाया और तालाब को उसके मूल स्वरूप में पुनः स्थापित करने का आदेश दिया। आदेश का पालन सुनिश्चित करने के लिए सात दिन का समय दिया गया था।
आदेश का पालन न करने पर कलेक्टर ने सख्ती दिखाते हुए एसडीएम को तालाब को पुनः उसके मूल स्वरूप में लाने के निर्देश दिए। इसके तहत एसडीएम ने नगर निगम आयुक्त को ज्ञापन जारी कर तालाब को पुनर्स्थापित करने की प्रक्रिया शुरू करने और इस कार्य में होने वाले खर्च को संबंधित अनावेदकों से वसूलने का निर्देश दिया है।
यह कदम जल संरक्षण और पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने के प्रशासन के दृढ़ संकल्प को दर्शाता है। तालाबों का अतिक्रमण न केवल जल स्रोतों को खत्म करता है, बल्कि पर्यावरणीय संकट भी पैदा करता है। प्रशासन की यह सख्ती अन्य अतिक्रमणकारियों के लिए एक कड़ा संदेश है।
तालाबों का अस्तित्व केवल जल संचय के लिए नहीं, बल्कि भूजल स्तर बनाए रखने और पर्यावरण संरक्षण के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। प्रशासन की इस कार्रवाई ने स्पष्ट कर दिया है कि जल स्रोतों की सुरक्षा से कोई समझौता नहीं किया जाएगा। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि आगे किस प्रकार तालाब को उसके मूल स्वरूप में लाने का कार्य संपन्न होता है।