बिलासपुर। पुलिस विभाग में तैनात निरीक्षक मनीष तम्बोली के स्थानांतरण को लेकर उत्पन्न विवाद ने एक बार फिर सरकारी स्थानांतरण प्रक्रिया की जटिलताओं को उजागर किया है। उच्च न्यायालय, बिलासपुर ने मामले में हस्तक्षेप करते हुए निरीक्षक तम्बोली को उनके स्थानांतरित स्थल, जिला-जांजगीर चाम्पा के लिए तत्काल कार्यमुक्त (रिल्हीव) करने का आदेश जारी किया।
निरीक्षक मनीष तम्बोली, जो पहले रायपुर स्थित एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) में प्रतिनियुक्ति पर कार्यरत थे, का स्थानांतरण 27 सितंबर 2019 को पुलिस महानिदेशक (डीजीपी), रायपुर के आदेशानुसार जिला-जांजगीर चाम्पा कर दिया गया था। हालांकि, एसीबी रायपुर में उनकी प्रतिनियुक्ति के चलते उन्हें तत्काल स्थानांतरित स्थल के लिए कार्यमुक्त नहीं किया गया।
इसके बाद जून 2023 में मनीष तम्बोली की प्रतिनियुक्ति समाप्त कर उन्हें पुलिस विभाग में वापस भेज दिया गया। बावजूद इसके, उन्हें जिला-जांजगीर चाम्पा के लिए कार्यमुक्त करने की प्रक्रिया अब तक लंबित थी।
इस असमंजस और देरी से क्षुब्ध होकर निरीक्षक तम्बोली ने अधिवक्ता अभिषेक पाण्डेय के माध्यम से उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। याचिका में तर्क दिया गया कि प्रतिनियुक्ति समाप्त होने के बाद भी उनके स्थानांतरण आदेश को निरस्त या संशोधित नहीं किया गया है, अतः वह अपने स्थानांतरित स्थल पर कार्यभार ग्रहण करने के हकदार हैं।
अधिवक्ता पाण्डेय ने अदालत में “मनीषा अग्रवाल बनाम छत्तीसगढ़ शासन” मामले में दिए गए उच्च न्यायालय के एक पूर्व निर्णय का हवाला दिया, जिसमें स्पष्ट किया गया है कि यदि स्थानांतरण आदेश को निरस्त या संशोधित नहीं किया गया है, तो कर्मचारी को स्थानांतरित स्थल पर ज्वाइन करने का अधिकार है।
सभी पक्षों की दलील सुनने के बाद उच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से आदेश दिया कि निरीक्षक मनीष तम्बोली को तत्काल जिला-जांजगीर चाम्पा के लिए कार्यमुक्त किया जाए। अदालत ने यह भी कहा कि स्थानांतरण प्रक्रिया में देरी से प्रशासनिक कार्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और इसे शीघ्रता से निपटाना चाहिए।
यह मामला सरकारी स्थानांतरण प्रक्रिया की खामियों को भी उजागर करता है, जहां समय पर निर्णय न होने से कर्मचारी और प्रशासन दोनों को असुविधा का सामना करना पड़ता है। यह घटना एक बार फिर यह रेखांकित करती है कि स्थानांतरण आदेशों का पालन समयबद्ध तरीके से होना चाहिए।
उच्च न्यायालय के आदेश से निरीक्षक मनीष तम्बोली को न्याय मिला है। यह निर्णय अन्य कर्मचारियों के लिए भी एक महत्वपूर्ण उदाहरण साबित हो सकता है, जो स्थानांतरण संबंधी विवादों से जूझ रहे हैं। अब यह देखना होगा कि संबंधित विभाग उच्च न्यायालय के आदेश का पालन कितनी शीघ्रता और सटीकता से करता है।