बिलासपुर, 17 जनवरी। धान खरीदी प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए जिला प्रशासन लगातार सख्ती बरत रहा है। इस कड़ी में संयुक्त जांच टीम द्वारा की गई सत्यापन कार्रवाई में कई चौंकाने वाले मामले सामने आए हैं। कुछ किसानों ने धान बेचने के लिए बड़ी मात्रा में टोकन कटवा लिए, जबकि उनके पास वास्तव में धान की पर्याप्त मात्रा उपलब्ध नहीं थी। इन मामलों में रकबा समर्पण कराते हुए कार्रवाई की गई। यह स्थिति इस ओर इशारा करती है कि कहीं-न-कहीं कोचिया अथवा दलालों द्वारा अपने धान को खपाने का प्रयास किया जा रहा था।
जिला खाद्य अधिकारी अनुराग भदौरिया ने बताया कि गनियारी उपतहसील के ग्राम नेवरा में तहसीलदार सकरी और नायब तहसीलदार गनियारी ने जांच के दौरान पाया कि कृषक रामनारायण ने 386 क्विंटल धान बेचने का टोकन कटवाया था, लेकिन भौतिक सत्यापन में केवल 100 क्विंटल धान उपलब्ध था। शेष 286 क्विंटल के लिए उनका रकबा समर्पण कराया गया।
इसी तरह, गनियारी के किसान छोटेलाल ने 75 क्विंटल धान का टोकन कटवाया, लेकिन जांच में केवल 20 क्विंटल धान पाया गया। शेष 55 क्विंटल के लिए भी रकबा समर्पण की कार्रवाई की गई। तहसील बेलतरा के ग्राम लिम्हा के कृषक शुकवार सिंह गौर ने 100 क्विंटल का टोकन कटवाया था, जबकि जांच में केवल 29.6 क्विंटल धान मिला।
धान उपार्जन केंद्र पिपरतराई में निरीक्षण के दौरान, किसान रम्हाई पिता खोरबहरा द्वारा लाया गया 59 बोरी धान पुराना और खराब किस्म का पाया गया। इस धान को जप्त कर समिति प्रबंधक के सुपुर्द कर दिया गया। इसे 31 जनवरी 2025 के बाद मुक्त करने के निर्देश दिए गए।
तहसील बेलगहना में भी राजस्व विभाग ने धान सत्यापन के दौरान गड़बड़ियां पाईं। ग्राम मझगवा के किसान जाहितर सिंह ने 160 क्विंटल धान के लिए टोकन कटवाया था, लेकिन सत्यापन में उनके पास कोई धान उपलब्ध नहीं था। ग्राम कटरा के किसान रवि प्रकाश ने 300 क्विंटल का टोकन कटवाया, लेकिन जांच में धान नहीं मिला।
कलेक्टर ने सत्यापन प्रक्रिया को तेज करने के निर्देश दिए हैं। प्रशासन की यह सख्ती साफ संकेत देती है कि धान खरीदी प्रक्रिया में किसी भी तरह की गड़बड़ी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। गड़बड़ी करने वालों पर कड़ी निगरानी रखी जा रही है, जिससे किसानों और प्रशासन के बीच पारदर्शिता बनी रहे।
धान खरीदी प्रक्रिया में अनियमितताओं को रोकने के लिए जिला प्रशासन द्वारा उठाए गए कदम सराहनीय हैं। यह कार्रवाई किसानों के लिए एक स्पष्ट संदेश है कि कोई भी फर्जीवाड़ा प्रशासन की नजरों से बच नहीं सकता। इससे न केवल प्रक्रिया की पारदर्शिता बढ़ेगी, बल्कि वास्तविक किसानों को भी उनका हक मिलने में सहूलियत होगी।


