बिलासपुर, छत्तीसगढ़। देशभर के होनहार बाल वैज्ञानिकों के बीच 31वीं राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस में छत्तीसगढ़ ने अपनी प्रतिभा का परचम लहराया। इस प्रतिष्ठित कार्यक्रम में बिलासपुर के दिव्यवीर सिंह का प्रोजेक्ट ‘द गार्जियन स्टिक’ राष्ट्रीय स्तर के लिए चुना गया। दिव्यवीर के साथ प्रदेश के तीन अन्य प्रोजेक्ट भी चयनित हुए हैं, जिनमें रायपुर की शिखा देवांगन का ‘ग्रेन प्रोटेक्शन पिल’, कोंडागांव की भूमिका पद्माकर का ‘कार्बन फुटप्रिंट’ और सूरजपुर की प्रतिमा प्रजापति का ‘मेकिंग हार्ड बोर्ड फ्रॉम मेज’ शामिल हैं।
दिव्यवीर सिंह द्वारा निर्मित ‘द गार्जियन स्टिक’ दृष्टिबाधित, वृद्धजनों और दिव्यांगों के लिए एक अभिनव आविष्कार है। इस छड़ी में आधुनिक तकनीक का उपयोग कर इसे बेहद उपयोगी बनाया गया है। इसमें सेंसर और इलेक्ट्रॉनिक झटका देने वाला डिवाइस शामिल है, जो उपयोगकर्ता को छोटे-मोटे जीव-जंतुओं से बचाने में मदद करता है। इसके अलावा, छड़ी में एक आपदा-सूचना तंत्र भी है, जो किसी दुर्घटना के समय उपयोगकर्ता के परिजनों को तुरंत सूचना भेज देता है।
दिव्यवीर ने बताया कि यह प्रोजेक्ट उन लोगों के लिए एक बड़ा सहारा बनेगा, जिन्हें चलने-फिरने में मुश्किल होती है। इसका मुख्य उद्देश्य उनकी सुरक्षा और स्वतंत्रता सुनिश्चित करना है।
कलेक्टर और एसपी से सराहना
बिलासपुर के कलेक्टर अवनीश शरण और पुलिस अधीक्षक रजनेश सिंह ने प्रोजेक्ट का अवलोकन करते हुए दिव्यवीर की मेहनत और रचनात्मकता की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि यह प्रोजेक्ट सामाजिक रूप से बेहद उपयोगी है और दिव्यांगजन व वृद्धजनों के जीवन को आसान बनाने में अहम भूमिका निभा सकता है।
प्रोजेक्ट्स की उपलब्धि
इस साल छत्तीसगढ़ के बाल वैज्ञानिकों ने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। पहली बार राज्य से चार प्रोजेक्ट का चयन हुआ है। सभी प्रोजेक्ट्स को भोपाल के मैपकास्ट, रविंद्र भवन में 3 से 6 जनवरी के बीच आयोजित राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस में प्रदर्शित किया गया।
- ग्रेन प्रोटेक्शन पिल: शिखा देवांगन का यह प्रोजेक्ट अनाज को कीड़ों से बचाने के लिए उपयोगी है।
- कार्बन फुटप्रिंट: भूमिका पद्माकर का प्रोजेक्ट पर्यावरण के अनुकूल जीवनशैली को प्रोत्साहित करता है।
- मेकिंग हार्ड बोर्ड फ्रॉम मेज: प्रतिमा प्रजापति का प्रोजेक्ट मकई के कचरे से हार्ड बोर्ड बनाने की प्रक्रिया पर केंद्रित है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर की तैयारी
दिव्यवीर के ‘द गार्जियन स्टिक’ को अब पेटेंट कराने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह आविष्कार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सराहना हासिल करेगा।
समर्पण और मार्गदर्शन का परिणाम
दिव्यवीर की इस सफलता में उनके शिक्षकों और प्रिंसिपल निवेदिता शोम का अहम योगदान रहा। उनके लगातार मार्गदर्शन और दिव्यवीर की मेहनत ने इस प्रोजेक्ट को संभव बनाया।
नवाचार और समाज सेवा का संगम
दिव्यवीर का ‘द गार्जियन स्टिक’ केवल एक प्रोजेक्ट नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव का एक साधन है। यह प्रोजेक्ट तकनीक और मानवीय सेवा का अद्भुत संगम है, जो समाज के कमजोर वर्गों को आत्मनिर्भर बनाने में मदद करेगा।
छत्तीसगढ़ के बाल वैज्ञानिकों की इस उपलब्धि ने न केवल राज्य का गौरव बढ़ाया है, बल्कि यह दिखा दिया है कि सही मार्गदर्शन और मेहनत से बड़ी से बड़ी चुनौती को पार किया जा सकता है।