फीस को लेकर निजी स्कूलों की मनमानी का मामला अब संसद तक पहुंच गया है। शुक्रवार को राज्यसभा के शून्य काल के दौरान सदस्यों ने यह मुद्दा उठाया। उन्होंने सरकार के सामने निजी स्कूलों की तेजी से बढ़ती फीस को नियंत्रित करने के लिए कानून बनाए जाने की मांग रखी है।
भाजपा के श्वेत मलिक ने कहा कि ‘कुछ उद्योगपति शिक्षा के क्षेत्र में आ गए हैं और इसे व्यापार और मुनाफा कमाने का जरिया बना लिया है। निजी स्कूलों में पहले तो इमारत के नाम पर शुल्क लिया जाता है। फिर लगातार निश्चित जगह से ही किताबें और स्कूल यूनिफॉर्म खरीदने के नाम पर अभिभावकों का शोषण किया जाता है। जबकि स्कूल जिन जगहों से किताबें और यूनिफॉर्म खरीदने के लिए कहते हैं, वहां इन चीजों की कीमत हमेशा अन्य जगहों से ज्यादा होती है। लेकिन अभिभावकों को न चाहते हुए भी दोगुने या ज्यादा पैसे चुकाकर किताबें व यूनिफॉर्म खरीदने पड़ते हैं।’ मलिक ने कहा कि ‘बच्चों के अभिभावक अपने लिए घर नहीं बनवा पाते और एक ही स्कूल की एक से अधिक इमारतें खड़ी हो जाती हैं।’ ये बातें करते हुए उन्होंने सरकार से फीस नियंत्रित करने की मांग की।
मनमानी फीस और कानून पर किसने क्या कहा
वहीं, सपा के सुरेंद्र सिंह नागर ने कहा कि ‘उत्तर प्रदेश के स्कूलों की फीस में 150 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है। 2018 में प्रदेश में निजी स्कूलों के नियंत्रण के लिए कानून तो बनाया गया, लेकिन इसका क्रियान्वयन नहीं हो सका है। अब केंद्र को निजी स्कूलों द्वारा अभिभावकों का शोषण रोकने के लिए कानून बनाना चाहिए।’
राज्यसभा में इस चर्चा के दौरान कई अलग-अलग दलों के प्रतिनिधियों ने निजी स्कूलों की मनमानी के खिलाफ कानून बनाए जाने पर अपनी राय रखी। सालों से जगह-जगह अभिभावकों द्वारा भी ये मुद्दा उठाया जाता रहा है। लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। सवाल ये है कि राज्यसभा में मांग उठने के बाद क्या अब सरकार निजी स्कूलों की फीस पर नियंत्रण करने के लिए कोई कानून बनाएगी?