हिसार कोर्ट ने हरियाणा के बरवाला स्थित सतलोक आश्रम संचालक रामपाल के खिलाफ चल रहे दो मामलों पर अपना फैसला सुना दिया है. उन्हें सरकारी कार्य में बाधा डालने और आश्रम में जबरन लोगों को बंधक बनाने के मामलों में बरी कर दिया गया है. फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि रामपाल पर लगे आरोप निराधार हैं. रामपाल के वकील एपी सिंह ने इस फैसले को सच्चाई की जीत बताया है. हालांकि उनपर देशद्रोह और हत्या के दो और मामले अभी चल रहे हैं, जिसकी वजह से वो फिलहाल जेल में ही रहेंगे.
जज मुकेश कुमार ने हिसार जेल में बने विशेष कोर्ट रूम में मामले की सुनवाई की थी. सुनवाई वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए हिसार सेंट्रल जेल नंबर एक में हुई थी. कोर्ट का फैसला आने के बाद किसी तरह का तनाव न फैले, इसके मद्देनजर एहतियात के तौर पर हिसार में धारा 144 लागू की गई थी. बीते बुधवार को संत रामपाल के खिलाफ दर्ज एफआईआर नंबर 201, 426, 427 और 443 के तहत पेशी हुई थी, तब कोर्ट ने एफआईआर नंबर 426 और 427 का फैसला सुरक्षित रख लिया था, जो कि आज सुनाया गया है.
क्या था मामला
संत रामपाल पर सरकारी कार्य में बाधा डालने और आश्रम में जबरन लोगों को बंधक बनाने का मामला दर्ज था. इन दोनों केसों में संत रामपाल के अलावा प्रीतम सिंह, राजेंद्र, रामफल, विरेंद्र, पुरुषोत्तम, बलजीत, राजकपूर ढाका, राजकपूर और राजेंद्र को आरोपी बनाया गया था . गौरतलब है कि बरवाला में हिसार-चंडीगढ़ रोड स्थित सतलोक आश्रम में नवंबर 2014 में सरकार के आदेश के बाद पुलिस ने आश्रम संचालक रामपाल के खिलाफ कार्रवाई की थी. पुलिस ने रामपाल को 20 नवंबर 2014 को गिरफ्तार किया था. रामपाल दास देशद्रोह के एक मामले में इन दिनों हिसार जेल में बंद हैं.
कौन है संत रामपाल
संत रामपाल दास का जन्म हरियाणा के सोनीपत के गोहाना तहसील के धनाना गांव में हुआ था. पढ़ाई पूरी करने के बाद रामपाल को हरियाणा सरकार के सिंचाई विभाग में जूनियर इंजीनियर की नौकरी मिल गई. इसी दौरान इनकी मुलाकात स्वामी रामदेवानंद महाराज से हुई. रामपाल उनके शिष्य बन गए और कबीर पंथ को मानने लगे.
21 मई, 1995 को रामपाल ने 18 साल की नौकरी से इस्तीफा दे दिया और सत्संग करने लगे. उनके समर्थकों की संख्या बढ़ती चली गई. कमला देवी नाम की एक महिला ने करोंथा गांव में बाबा रामपाल दास महाराज को आश्रम के लिए जमीन दे दी. 1999 में बंदी छोड़ ट्रस्ट की मदद से संत रामपाल ने सतलोक आश्रम की नींव रखी.
2006 में स्वामी दयानंद की लिखी एक किताब पर संत रामपाल ने एक टिप्पणी की. आर्यसमाज को ये टिप्पणी बेहद नागवार गुजरी और दोनों के समर्थकों के बीच हिंसक झड़प हुई. घटना में एक शख्स की मौत भी हो गई. इसके बाद एसडीएम ने 13 जुलाई, 2006 को आश्रम को कब्जे में ले लिया और रामपाल को उनके 24 समर्थकों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया.