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इस्लामी नया साल का हुआ आगाज, 1438 हिजरी शुरू

मुहर्रम का चांद होते ही इस्लामी कैलेन्डर का नव वर्ष प्रारम्भ
गोरखपुर.  मुहर्रम का चांद होते ही इस्लामी कैलेन्डर का नव वर्ष प्रारम्भ हो गया।  मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर यानी हिजरी वर्ष का पहला महीना है । रविवार को चांद होने के साथ 1438 हिजरी शुरू हो गई । मस्जिदों में जिक्र हुसैन की महफिल हुई। इमामबाड़ो पर ढ़ोल ताशे बजने लगे। शिया समुदाय द्वारा मातमी जुलूस निकाला गया।

मोहम्मद आजम ने बताया कि  इस माह को इस्लाम के चार पवित्र महीनों में शुमार किया जाता है। अल्लाह के रसूल हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहौ अलैही वसल्लम ने इस माह को अल्लाह का महीना कहा है। साथ ही इस माह में रोजा रखने की खास अहमियत बयान की है। मुख्तलिफ हदीसों,  व अमल से मुहर्रम की पवित्रता व इसकी  अहमियत का पता चलता है। एक हदीस के अनुसार अल्लाह के रसूल ने कहा कि रमजान के अलावा सबसे उत्तम रोजे वे हैं, जो अल्लाह के महीने मुहर्रम में रखे जाते है। खुदावन्दे कुद्दूस अपने मुकद्दस कलाम पाक में इरशाद फरमाता है बेशक महीनों की गिनती अल्लाह के नजदीक बारह महीने है। अल्लाह की किताब में जब से उसने आसमान व जमीन बनाए उनमें से चार हुरमत (ज्यादा इज्जत एवं इबादत करने) वाले है। उन ही हुरमत वाले महीनों में माहे मुहर्रम भी शामिल है । इस महीने की दसवीं तारीख जिसे आशूरह के नाम से याद किया जाता है दुनिया की तारीख में इतनी अजमत व बरकत वाला दिन है कि जिसमें खुदा की कुदरतों और नेमतों की बड़ी-बड़ी निशानियां जाहिर हुई ।
                     

उसी दिन हजरत आदम अलैहिस्सलाम की तौबा कुबूल हुई। हजरत इदरीस अलैहिस्सलाम व हजरत ईसा अलैहिस्सलाम आसमान पर उठाए गये। हजरत नूह अलैहिस्सलाम की कश्ती तुफाने  नूह में सलामती के साथ जूदी पहाड़ पर पहुंची  उसी दिन हजरत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की विलादत हुई। हजरत यूनुस अलैहिस्सलाम मछली के पेट से जिन्दा सलामत बाहर आए। अर्श व कुर्सी, लौह व कलम, आसमान व जमीन, चाॅंद व सूरज, सितारे व जन्नत बनाए गए। हजरत युसूफ अलैहिस्सलाम गहरे कुंए से निकाले गए। उसी दिन याकूब अलैहिस्सलाम की अपने बेटे युसूफ से मुलाकात हुई। हजरत दाऊद अलैहिस्सलाम की लगजिश माफ हुई।

उसी दिन हजरत मूसा अलैहिस्सलाम को फिरऔन से नजात मिली और फिरऔन अपने लश्कर समेत दरिया में गर्क हो गया। उसी दिन आसमान से जमीन पर सब  से पहले बारिश हुई। उसी दिन कयामत (प्रलय) आएगी और उसी दिन हजरत इमाम हुसैन और आपके रूफाका-ए- किराम ने मैदाने करबला में तीन दिन के भूखे प्यासे रह कर इस्लाम की बका व तहफ्फुज के लिए जामे शहादत नोश फरमा कर हक के परचम को सरबुलन्द फरमाया।

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