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जस्टिस चेलमेश्वर का CJI को पत्र, न्यायपालिका-सरकार के बीच भाईचारा लोकतंत्र के लिए ‘मौत की घंटी’

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर ने चीफ जस्टिस (सीजेआई) को एक बार फिर पत्र लिखा है. जस्टिस चेलमेश्वर ने सीजेआई से उनसे न्यायपालिका में कार्यपालिका के कथित हस्तक्षेप के मुद्दे पर पूर्ण पीठ बुलाने पर विचार करने को कहा है. जस्टिस चेलमेश्वर ने 21 मार्च को लिखे पत्र में आगाह किया, न्यायपालिका और सरकार के बीच किसी भी तरह का भाईचारा लोकतंत्र के लिए मौत की घंटी है.

सुप्रीम कोर्ट के 22 अन्य न्यायाधीशों को भी भेजे गए इस अभूतपूर्व पत्र में कर्नाटक हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दिनेश माहेश्वरी द्वारा केन्द्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय के इशारे पर जिला एवं सत्र न्यायाधीश कृष्ण भट के खिलाफ शुरू की गई जांच पर सवाल उठाए गए. खास बात है कि कॉलेजियम ने दो बार पदोन्नति के लिए उनके नाम की सिफारिश की थी. जस्टिस चेलमेश्वर ने छह पेज के पत्र में लिखा कि बेंगलुरू से किसी एक ने रसातल पर जाने की दौड़ में हमें पहले ही हरा दिया है. कर्नाटक हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश कार्यपालिका के आदेश पर काम करने के बहुत इच्छुक हैं.

न्यायिक स्वतंत्रता का मुद्दा उठाते हुए उन्होंने कहा, हम सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों पर कार्यपालिका के बढ़ते अतिक्रमण के सामने अपनी निष्पक्षता और अपनी संस्थागत ईमानदारी खोने का आरोप लग रहा है. सीजेआई द्वारा मामलों के आवंटन पर तीन अन्य वरिष्ठ न्यायाधीशों के साथ 12 जनवरी को अभूतपूर्व प्रेस कांफ्रेंस करने वाले न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने उच्चतर न्यायपालिका में नियुक्ति के लिए कॉलेजियम द्वारा नामों की सिफारिश के बाद भी सरकार के फाइलों पर बैठे रहने को लेकर नाखुशी वाले अनुभव का जिक्र किया. उन्होंने सीजेआई से इस मुद्दे पर पूर्ण पीठ बुलाकर न्यायपालिका में कार्यपालिका के हस्तक्षेप के विषय पर गौर करने को कहा. उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि सुप्रीम कोर्ट संविधान के नियमों के तहत प्रासंगिक बना रहे.

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बता दें कि 12 जनवरी 2018 को भारतीय न्यायिक इतिहास में एक अभूतपूर्व और असाधारण घटना के तहत सुप्रीम कोर्ट के चार सेवारत न्यायाधीशों ने संवाददाता सम्मेलन किया और आरोप लगाया कि सुप्रीम कोर्ट की प्रशासनिक व्यवस्था ठीक नहीं है. सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठता के आधार पर दूसरे नंबर के न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर के आवास पर जल्दबाजी में बुलाए गए संवाददाता सम्मेलन में न्यायाधीशों ने कहा कि यह भारतीय न्याय व्यवस्था, खासकर देश के इतिहास और यहां तक कि सर्वोच्च न्यायालय के लिए एक असाधारण घटना है. हमें इसमें कोई खुशी नहीं है जो हम यह कदम उठाने पर मजबूर हुए हैं.

उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट का प्रशासन ठीक से काम नहीं कर रहा है. पिछले कुछ महीनों में ऐसा बहुत कुछ हुआ है, जो नहीं होना चाहिए था. देश और संस्थान के प्रति हमारी जिम्मेदारी है. हमने प्रधान न्यायाधीश को संयुक्त रूप से समझाने की कोशिश की कि कुछ चीजें ठीक नहीं हैं और तत्काल उपचार की आवश्यकता है. दुर्भाग्यवश इस संस्थान को बचाने के कदम उठाने के लिए भारत के प्रधान न्यायाधीश को राजी करने की हमारी कोशिश विफल साबित हुई है. न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ और न्यायमूर्ति मदन बी.लोकुर की मौजूदगी में न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने कहा कि हम चारों इस बात से सहमत हैं कि लोकतंत्र को जिंदा रखने के लिए निष्पक्ष न्यायाधीश और न्याय प्रणाली की जरूरत है.

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