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राजनीति

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की कुर्सी बचाने के लिए शिवसेना आजमाएगी ये तीन विकल्प, लेकिन आखिरी में पेंच है…

27 मई, 2020 महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे और शिवसेना की अगुवाई वाली कांग्रेस-एनसीपी-सेना गठबंधन सरकार के लिए एक ऐसी डेडलाइन बन गई है जिसे कोरोना लॉकडाउन ने गले की फांस बना दिया है। ये वो तारीख है जिस दिन महाराष्ट्र विकास अगाड़ी सरकार के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे राज्य के सीएम की कुर्सी पर छह महीने पूरे कर लेंगे। ये वो तारीख है जिससे पहले उद्धव ठाकरे को महाराष्ट्र विधानमंडल के दोनों सदन- विधानसभा या विधान परिषद – में किसी एक का सदस्य बन जाना चाहिए। ऐसा नहीं होने पर संविधान के प्रावधानों के मुताबिक उद्धव ठाकरे को इस्तीफा देना होगा। शिवसेना उद्धव ठाकरे की कुर्सी बचाने के लिए तीन विकल्प आजमाने की तैयारी में है।

मसला मुश्किल नहीं था, राह भी आसान थी लेकिन लॉकडाउन के कारण चुनाव आयोग ने 24 अप्रैल को निर्धारित विधान परिषद की 9 सीटों का चुनाव टाल दिया। कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य महाराष्ट्र में कोरोना के ही कारण ऐसी राजनीतिक मुसीबत खड़ी हो गई है जो संवैधानिक संकट की तरफ बढ़ती दिख रही है। उद्धव ठाकरे को विधान परिषद में मनोनीत करने की कैबिनेट की दो-दो बार सिफारिश पर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी मौन धारण किए हैं। सरकार में बेचैनी ऐसी है कि उद्धव ठाकरे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक को फोन कर लिया। सीएम उद्धव ने पीएम मोदी से आग्रह किया है कि केंद्र सरकार राज्य को संवैधानिक संकट से बचाने के लिए राज्यपाल को कैबिनेट की सिफारिश को मंजूरी देने कहे।

शिवसेना सबसे ज्यादा परेशान है जिसने आदित्य ठाकरे को सीएम बनाने की मांग छेड़कर बीजेपी से चुनाव पूर्व गठबंधन तोड़कर कांग्रेस-एनसीपी से चुनाव बाद गठबंधन करके अध्यक्ष उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाया है। बाल ठाकरे के परिवार से पहली बार कोई मुख्यमंत्री बना है और वो संवैधानिक और कानूनी मझधार में फंस गया है। शिवसेना नेता अब उद्धव ठाकरे की कुर्सी बचाने के लिए तीन विकल्पों पर विचार कर रहे हैं और उन्हें लगता है कि इनमें से कोई ना कोई काम कर जाएगा। मातोश्री को तो ये भी लगता है कि उद्धव के फोन के बाद पीएमओ से राजभवन को संदेश जाएगा और संकट का समाधान हो जाएगा। शिवसेना पीएम मोदी का संदेश मुंबई पहुंचने का कुछ दिन इंतजार करेगी लेकिन ऐसा ना हुआ तो तीन विकल्प आजमाएगी।

शिवसेना का पहला विकल्प है कि वो चुनाव आयोग से कहेगी कि चुनाव 27 मई से पहले कराया जाए लेकिन अगर आयोग तैयार नहीं होता है तो दूसरा विकल्प है कि आयोग को ऐसा आदेश देने के लिए पार्टी सुप्रीम कोर्ट जाएगी। सुप्रीम कोर्ट से भी राहत नहीं मिली तो फिर पार्टी ने तीसरा विकल्प सोच रखा है कि उद्धव ठाकरे इस्तीफा दे देंगे लेकिन दोबारा शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस विधायक दल की मीटिंग बुलाकर नेता चुने जाएंगे। आखिरी विकल्प में पेंच ये है कि सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार बनाम एसआर चौधरी केस में फैसला दिया था कि बिना सदन की सदस्यता के मुख्यमंत्री या मंत्री बनने की विशेष सुविधा का इस्तेमाल सिर्फ एक बार किया जा सकता है।

उद्धव ठाकरे के मामले में एक मसला ये भी है कि वो राज्यपाल से मनोनीत होकर विधान परिषद जाना चाहते हैं जबकि आज तक देश में कोई सीएम या मंत्री इस रास्ते सदन नहीं पहुंचा है। ये बात जरूर है कि उद्धव ठाकरे इस संकट का दोष कोरोना लॉकडाउन और उसकी वजह से 24 अप्रैल के टले चुनाव पर डाल सकते हैं। अगर 24 अप्रैल को चुनाव हो गए होते तो ये संकट नहीं होता। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की कुर्सी बचाने का काम राजभवन से होगा, चुनाव आयोग से या सुप्रीम कोर्ट से, ये धीरे-धीरे साफ होगा।

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